सुरक्षा परिषद में अधिक प्रभावी भूमिका का मौका, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Published: January 9, 2021 12:12 PM2021-01-09T12:12:11+5:302021-01-09T12:14:09+5:30

सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यताः भारत गत 17 जून में 192 में से 184 मतों के साथ इस विश्व संस्था की इकाई का अस्थायी सदस्य चुना गया था. भारत 1950-51 में पहली बार परिषद का अस्थायी सदय बना था.

United Nations Security Council India two-year term temporary member Opportunity effective role Shobhana Jain's blog | सुरक्षा परिषद में अधिक प्रभावी भूमिका का मौका, शोभना जैन का ब्लॉग

भारत की अस्थायी सदस्यता से आतंकवाद, आतंकवाद को फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग, कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत की स्थिति मजबूत होगी. (file photo)

Highlightsअगस्त में भारत अब संयुक्त राष्ट्र नियमों के अनुसार एक माह के लिए परिषद के अध्यक्ष पद का कार्यभार भी संभालेगा.दुनिया में  यह दो साल की अस्थायी सदस्यता भारत के लिए अहम या यूं कहें एक बड़ा मौका साबित हो सकती है. भारत की सदस्यता को रोकने की कोशिश जैसे मुद्दों को ले कर भी दुनिया के काफी देशों ने भारत के पक्ष को समझा.

नए साल के पहले दिन यानी एक जनवरी को, न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सम्मेलन कक्ष में भारतीय ध्वज के  फहराने के साथ  ही संयुक्त राष्ट्र की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नीति निर्धारण इकाई, सुरक्षा परिषद में भारत का अस्थाई सदस्य के रूप में दो साल का कार्यकाल शुरू हो गया.

भारत के लिए अहम जिम्मेवारी उठाने का हालांकि यह आठवां मौका है लेकिन   2011-12  के भारत के अस्थाई सदस्य के रूप में आखिरी  कार्यकाल के बाद से दुनिया काफी बदल चुकी है और भारत भी बदला है, इसके चलते इस बार इस जिम्मेवारी की खासी अहमियत है. दुनिया में महाशक्तियों के बीच नए शक्ति समीकरण बने हैं और बन रहे हैं, नई प्रतिद्वंद्विताएं, नई दोस्तियां और नई दूरियां उभरी हैं.

आतंकवाद  से निबटना दुनिया भर के लिए बेहद गंभीर चिंता है. दुनिया में आ रही नित नई चुनौतियों से सक्षम और प्रभावी ढंग से नहीं निबट पाने की वजह से खुद इस विश्व संस्था के वर्तमान स्वरूप के औचित्य, प्रभाव, विश्वसनीयता और प्रासंगिकता को लेकर  सवाल उठते रहे हैं.

सवाल यह भी उठता रहा है कि बदली हुई दुनिया में परिषद का स्थायी सदस्यता के लिए प्रतिनिधित्व सही मायने में नहीं माना जा सकता है और वक्त की जरूरत है कि संयुक्त राष्ट्र सुधार जल्द किए जाएं. पिछले माह ही विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर ने भी इस विश्व संस्था में दुनिया को बेहतर प्रतिनिधित्व दिए जाने पर जोर देते हुए इसका ‘रिफ्रेश बटन’ फिर से दबाने की बात कही थी. बहरहाल  बदली हुई इस दुनिया में भारत की भूमिका भी दुनिया भर में बदली है ऐसे में भारत इस नई जिम्मेवारी में ‘संतुलन’ के साथ इस विश्व संस्था में चुनौतियों से निबटने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है.

इस बार भारत बदली हुई दुनिया में यह नई जिम्मेवारी संभाल रहा है. अमेरिका, चीन और रूस के बीच गहरे मतभेद हैं. आज का चीन एक बड़ी ताकत बन चुका है और उसका विस्तारवादी एजेंडा पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. भारत की अस्थायी सदस्यता से आतंकवाद, आतंकवाद को फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग, कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत की स्थिति मजबूत होगी.

भारत के पड़ोस की बात करें तो 2020 में जिस तरह भारत ने वास्तविक नियंत्नण रेखा पर चीन की आक्रामकता का करारा जवाब देने  के साथ संयम का प्रदर्शन किया है, उसके मद्देनजर दुनिया भर की निगाहें भारत पर टिकी हैं. सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के रास्ते में चीन द्वारा तमाम रोड़े अटकाने, उसके द्वारा भारत के खिलाफ पाकिस्तान के सीमा पार के आतंकवाद और पाकिस्तान का साथ देते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाने, न्यूक्लियर परमाणु ग्रुप में भारत की सदस्यता को रोकने की कोशिश जैसे मुद्दों को ले कर भी दुनिया के काफी देशों ने भारत के पक्ष को समझा.

इस नई जिम्मेवारी के प्रति भारत की भूमिका की प्राथमिकता संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि  टी.एस. त्रिमूर्ति  की इस टिप्पणी से समझी जा सकती है कि भारत अपने इस कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए मानवीय आधार तथा समावेशी समाधान पर जोर  देगा. आतंकवाद जैसे मानवता के शत्नुओं के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में वह कतई नहीं हिचकिचाएगा. परिषद में शांति प्रयासों, शांति कायम करने, समुद्रीय सुरक्षा, महिलाओं, युवाओं विशेष तौर पर संघर्ष वाले क्षेत्नों में उनकी सुरक्षा तथा प्रौद्योगिकी के समझदारी से इस्तेमाल पर उसका ध्यान रहेगा.

गौरतलब है कि भारत गत 17 जून में 192 में से 184 मतों के साथ इस विश्व संस्था की इकाई का अस्थायी सदस्य चुना गया था. भारत 1950-51 में पहली बार परिषद का अस्थायी सदय बना था. आगामी अगस्त में भारत अब संयुक्त राष्ट्र नियमों के अनुसार एक माह के लिए परिषद के अध्यक्ष पद का कार्यभार भी संभालेगा.

परिषद में भारत नॉर्वे, कीनिया, आयरलैंड और मैक्सिको के अलावा वीटो पावर से लैस पांच स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका तथा अस्थायी सदस्यों एस्तोनिया, नाइजर, सेंट विंसेंट, ट्यूनीशिया और वियतनाम के साथ बैठेगा. हर अस्थायी सदस्य देश बारी-बारी से एक माह के लिए परिषद की अध्यक्षता करता है.

आज की बदली हुई दुनिया में  यह दो साल की अस्थायी सदस्यता भारत के लिए अहम या यूं कहें एक बड़ा मौका साबित हो सकती है. वह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर संतुलन बिठाते हुए अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभाने के साथ-साथ सीमा पार के आतंकवाद जैसी अपनी चिंताओं और सरोकारों को भी दुनिया के सम्मुख अधिक मजबूती से रख सकेगा.

भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों के क्रम में परिषद में स्थायी सदस्यता की अपनी दावेदारी मजबूती से रखता रहा है, काफी देशों ने उसका समर्थन भी किया है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. त्रिमूर्ति ने नई जिम्मेवारी ग्रहण करते हुए कहा, ‘‘हम  वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श को प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करने को उत्सुक हैं.’’ उम्मीद की जानी चाहिए कि वसुधैव कुटुंबकम की भावना से प्रेरित भारत की प्रभावी भूमिका से आगे चल कर उसकी स्थायी सदस्यता की दावेदारी को और मजबूती मिलेगी.

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