अमेरिका और ईरान के बीच तनाव क्या गल्फ वॉर-2 का संकेत है?

By विकास कुमार | Published: May 14, 2019 12:34 PM2019-05-14T12:34:52+5:302019-05-14T15:41:55+5:30

ईरान आर्थिक रूप से गर्त में जा रहा है और अब बात उसके सर्वाइवल तक पहुंच चुकी है. देश में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है. ईरान ने धमकी दी है कि अगर उसके कच्चे तेल के व्यापार से रोका गया तो वो होरमुज जलसन्धि को ब्लॉक कर देगा.

Tention Between America and Iran would impose gulf war-2 in middle-east | अमेरिका और ईरान के बीच तनाव क्या गल्फ वॉर-2 का संकेत है?

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव ख़तरनाक मोड़ ले सकता है.

Highlightsअमेरिका कतर स्थित अपने सैन्य एयरबेस पर B-52 बमवर्षक विमान भेज चुका है.ईरान ने इसे 'आर्थिक आतंकवाद' की संज्ञा दी है. यूएई के पोर्ट सिटी फुजैरा में सऊदी अरब के दो तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया है.

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव चरम पर पहुंचा चुका है. डोनाल्ड ट्रंप ने इस महीने की शुरूआत में उन देशों को प्रतिबंधों का डर दिखाया जो ईरान से कच्चे तेल का आयात कर रहे थे. भारत और चीन, दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के दम पर ईरान के ट्रेड का बैलेंस शीट संभला हुआ था लेकिन ट्रंप के आंख दिखाने के बाद अब इस पर लाल निशान लग चुका है. ईरान ने इसे 'आर्थिक आतंकवाद' की संज्ञा दी है. 

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा है कि हालात इराक युद्ध से भी ज्यादा बिगड़ चुके हैं, क्योंकि उस दौर में ईरान पर केवल हथियार खरीदने को लेकर ही प्रतिबन्ध लगा था. इस बार तो डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान की अर्थव्यवस्था को ही कुचलने का प्रण ले लिया है. डोनाल्ड ट्रंप ईरान से उसी तरह का समझौता करना चाहते हैं जो अमेरिका नार्थ कोरिया के तानाशाह किम जोग उन से करना चाहता है, ऐसे दो मुलाकातों के बाद भी अमेरिका का डॉलर उत्तर कोरिया को रिझा नहीं पाया है. 

बीते दिनों यूएई के पोर्ट सिटी फुजैरा में सऊदी अरब के दो तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया है. अमेरिका ने इसे ईरान का प्रॉक्सी वॉर कहा है. ईरान ने इस हमले को चिंताजनक बताया और जांच की मांग की है. अमेरिका और ईरान के तनाव का हलचल मध्य-पूर्व में सुनाई देने लगा है. 

ईरान का अस्तित्व ख़तरे में 

ईरान आर्थिक रूप से गर्त में जा रहा है और अब बात उसके सर्वाइवल तक पहुंच चुकी है. देश में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है. विदेशी निवेश नहीं आने के कारण रोज़गार की समस्या विकराल रूप ले चुकी है. कच्चे तेल के निर्यात से ईरान को बड़े पैमाने पर नकदी मिलती थी जो अमेरिकी प्रतिबन्ध के बाद थम चुकी है. ट्रंप ईरान के तेल निर्यात को शून्य तक पहुंचाना चाहते हैं. 

ईरान ने यूरोपीय ताकतों से कहा है कि परमाणु डील को बचाने की जिम्मेवारी अब उनकी है. फ्रांस और जर्मनी ने कहा है कि ईरान परमाणु डील को तोड़ने की धमकी नहीं दे तो हम मिल कर इस समस्या का समाधान निकालेंगे. 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ यह डील किया था जिसमें सुरक्षा परिषद के 5 सदस्यों के अलावा जर्मनी भी शामिल था. 

डोनाल्ड ट्रंप के बारे में एक बात स्पष्ट है कि वो अपनी शर्तों पर परमाणु डील के बाद ही ईरान को कोई राहत दे सकते हैं जिसके हालात अभी मुश्किल हैं. डोनाल्ड ट्रंप इस बार इतने आक्रामक दिख रहे हैं कि कोई भी देश अपनी मुद्रा में ईरान के साथ व्यापार करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है.   

ईरान की धमकियां 

ईरान और अमेरिका के रिश्ते 1960 के दशक में ही खराब हो चुके थे. अमेरिका और ब्रिटेन के वफादार राजा शाह पहलवी का 1979 में ईरान के इस्लामिक क्रांति के दौरान सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में तख्तापलट कर दिया गया था. इसके बाद अमेरिकी दूतावास के लोगों को ईरानी छात्रों ने 444 दिनों तक बंधक बना कर रखा था. 1980 से 1988 तक हुए ईरान-इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने इराक का साथ दिया था. 

उस वक्त पश्चिमी दुनिया एक तरफ थी और ईरान एक तरफ था. यहां तक कि रुस ने भी इराक का साथ दिया था. इस युद्ध में दोनों तरफ के 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे. ईरान पिछले छह दशकों में लगातार संघर्ष करता रहा लेकिन कभी भी पश्चिमी ताकतों के सामने नहीं झुका. डोनाल्ड ट्रंप ईरान के इसी हिम्मत और हौसले के ट्रैक रिकॉर्ड को ध्वस्त करना चाहते हैं लेकिन ईरान भी लगातार धमकियों के द्वारा ही उनसे निपटना चाहता है. 

गल्फ वॉर के संकेत क्यों 

ईरान ने धमकी दी है कि अगर उसके कच्चे तेल के व्यापार से रोका गया तो वो होरमुज जलसन्धि को ब्लॉक कर देगा. दुनिया भर में होने वाले कुल तेल के व्यापार का 20 प्रतिशत हिस्सा इसी रास्ते से हो कर गुजरता है. ईरान ने अगर इस रास्ते को रोका तो मध्य-पूर्व के बाकी देश खुल कर उसके विरोध में आ सकते है. सऊदी अरब और यूएई धार्मिक और राजनीतिक कारण से पहले ही ईरान के विरोधी रहे हैं. 

अमेरिका कतर स्थित अपने सैन्य एयरबेस पर B-52 बमवर्षक विमान भेज चुका है. इसके साथ ही मध्य-पूर्व में अपने युद्धपोत अब्राहम लिंकन करियर स्ट्राइक की तैनाती की है जिसे ईरान के ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव के रूप में देखा जा रहा है.

1990-91 में हुए गल्फ वॉर के दौरान इराक के खिलाफ सऊदी अरब और पश्चिमी ताकतों ने युद्ध छेड़ा था जिसके कारण इराकी अर्थव्यवस्था और उसकी सामरिक शक्ति को जबरदस्त नुकसान पहुंचा था जिससे इराक कभी नहीं उबर पाया.

ट्रंप आर्थिक नाकेबंदी के जरिये किम जोंग उन को बातचीत के टेबल पर लाने में सफल हुए थे, यही मॉडल वो ईरान के साथ भी आजमाना चाहते हैं. अमेरिका के अलावा कोई भी देश परमाणु डील से बाहर नहीं आया है. फ्रांस और जर्मनी भी चीन की तरह ईरान से व्यापार को अनवरत जारी रखने के लिए रास्ता तलाश रहे हैं.

ट्रंप अगर अपने मकसद में सफल नहीं हुए तो वो उकसावे की कार्रवाई कर सकते हैं. इसमें उन्हें सऊदी अरब का साथ भी मिल सकता है. लेकिन मध्य-पूर्व के  समृद्ध भविष्य के लिए ईरान को छेड़ना उचित नहीं होगा क्योंकि उसके पास ताकतवर सेना, भौगोलिक शक्ति और इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का जखीरा है. 
 

Web Title: Tention Between America and Iran would impose gulf war-2 in middle-east

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