रहीस सिंह का ब्लॉगः श्रीलंका के दंगे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 18, 2019 05:45 AM2019-05-18T05:45:18+5:302019-05-18T05:45:18+5:30

श्रीलंका में सांप्रदायिक हमले भले ही अब हुए हों लेकिन सच तो यह है कि पिछले कुछ वर्षो से सांप्रदायिकता की जो आग उसकी सामाजिक सतहों के नीचे सुलग रही थी, वह इससे पहले भी कुछ मौकों पर प्रकट हुई लेकिन अब वह फूट पड़ी. पिछले दिनों हुए चर्च पर हमले के बाद मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगों ने अपील की थी कि उन सबको आतंकवादी न माना जाए, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए. 

Sri Lankan riots warn for South Asia | रहीस सिंह का ब्लॉगः श्रीलंका के दंगे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी

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रहीस सिंह

अप्रैल महीने में श्रीलंका में ईस्टर के मौके पर चर्च और पंचसितारा होटलों सहित विभिन्न जगहों पर हुए बम विस्फोटों के प्रभाव से श्रीलंका अभी उबर ही रहा था कि सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया. अभी पिछले सप्ताह ही श्रीलंका सरकार ने यह घोषणा की थी कि देश अब आतंकवाद से मुक्त हो गया है, क्योंकि सारे आतंकवादी या तो मारे गए या पकड़े गए हैं. यह वास्तव में बहुत बड़ा काम था, जिसकी वाहवाही भी श्रीलंका सरकार को मिली. लेकिन एक मुस्लिम दुकानदार की सोशल मीडिया पर की गई एक पोस्ट ने श्रीलंका को एक बार फिर हिंसा के गर्त में धकेल दिया. 

सवाल यह उठता है कि श्रीलंका में हुई इस हिंसा की वजह सिर्फ तात्कालिक है या फिर देर से पक रही कुछ चीजों का परिणाम? क्या ऐसा नहीं लगता कि लगभग एक दशक पहले वहां पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने एक खेल शुरू किया था जिसका नतीजा अब सामने आ रहा है? 

श्रीलंका में सांप्रदायिक हमले भले ही अब हुए हों लेकिन सच तो यह है कि पिछले कुछ वर्षो से सांप्रदायिकता की जो आग उसकी सामाजिक सतहों के नीचे सुलग रही थी, वह इससे पहले भी कुछ मौकों पर प्रकट हुई लेकिन अब वह फूट पड़ी. पिछले दिनों हुए चर्च पर हमले के बाद मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगों ने अपील की थी कि उन सबको आतंकवादी न माना जाए, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए. 

मुस्लिम समाज ने सेना, पुलिस और प्रशासन के आदेश का पूरी तरह से पालन भी किया था. लेकिन सिंहलियों एवं मुसलमानों के बीच जो पिछले पांच वर्षो से जगह-जगह टकराव होता रहा है, उससे एकत्रित ऊर्जा को सिर्फ इतने से प्रयासों से रोका नहीं जा सकता था. इसी ऊर्जा को चिंगारी मुस्लिम दुकानदार की सोशल मीडिया पर डाली गई उस पोस्ट से मिली जिसने सिंहली समुदाय को हिंसा के लिए उकसाया. इसके बाद इस छोटे से देश के पश्चिम तटीय शहर में दंगा भड़क उठा और देखते-देखते यह व्यापक स्तर पर फैल गया.  

यदि श्रीलंका की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना पर नजर डालें तो पाएंगे कि अधिकतर सिंहली बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं. चूंकि श्रीलंका का सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचा बेहद संवेदनशील है, इसलिए यदि दक्षिण एशिया या पूर्वी एशिया में कहीं पर भी ऐसे तनाव होते हैं तो उसका असर श्रीलंका में दिखता है. उदाहरण के तौर पर जब म्यांमार में रोहिंग्याओं और बौद्धों में हिंसक संघर्ष शुरू हुआ था तो उसका प्रभाव श्रीलंका में भी सांप्रदायिक दंगे के रूप में दिखा था. ऐसे सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने को गंभीरता से देखने की जरूरत होती है.

ध्यान रहे कि श्रीलंका में अप्रैल में जो हमला हुआ था वह सूचनाओं के मुताबिक नेशनल तौहीद जमात नाम के एक आतंकी संगठन द्वारा किया गया था. नेशनल तौहीद जमात ज्यादा चर्चा में नहीं रहा है और न ही इसका आकार बहुत बड़ा है. इसका मतलब यह हुआ कि समूह को दो प्रकार की मैकेनिज्म अपनानी पड़ी होगी. 

एक बाहर से सहयोग और दूसरा आंतरिक सहयोग. वैसे श्रीलंका की खुफिया एजेंसियों को भी ऐसे इनपुट मिले थे कि इस जमात में इस्लामिक स्टेट से वापस आए आतंकी शामिल हुए हैं. मैसेजिंग एप्लीकेशन टेलीग्राम पर इस्लामिक स्टेट के कुछ समर्थकों ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से लिखा है कि नेशनल तौहीद जमात के प्रमुख जाहरान हाशमी ने आईएस प्रमुख अबू बकर अल-बगदादी के प्रति निष्ठा घोषित करने की अपील की थी. 

यही वजह है कि कई देशों की खुफिया एजेंसियों ने भी श्रीलंका सरकार को संभावित आतंकी वारदातों के बारे में चेतावनी दी थी. समाज के अंदर से कितना सहयोग मिला होगा यह भी सेना की कार्रवाई से स्पष्ट हो गया है. ऐसी स्थिति में सामाजिक विभाजन की खाई और अधिक चौड़ी हुई होगी. यही खाई खासकर सिंहली और मुस्लिम समाज को आमने-सामने लाकर खड़ा कर देती है. 

यहां पर एक पक्ष पाकिस्तान भी बनता दिख रहा है. वैसे भी पाकिस्तान दक्षिण एशिया भर में ऐसी गतिविधियों के लिए जाना जाता है. हम सब जानते हैं कि लिट्टे को खत्म करने में किसकी अहम भूमिका रही और कौन इसके बाद श्रीलंका में अहम किरदार निभाने की स्थिति में आ गया. सिर्फ एक ही उत्तर मिलेगा चीन. श्रीलंका में चीनी सिक्का जम जाने के कारण उसके सदाबहार मित्र को भी अवसर प्राप्त होने लगे और उसके साथ-साथ पाकिस्तानी सेना और  आईएसआई को भी. 

बहरहाल श्रीलंका सरकार के कार्यवाहक रक्षा और विधि-व्यवस्था मंत्री रुवान विजयवद्र्घने पूरी सक्रियता से पूरे देश को संभालने में जुटे हुए हैं. जरूरत के हिसाब से कफ्यरू लगाया और उठाया जा रहा है. शासन ज्यादा सतर्क है. लेकिन इसके बावजूद न केवल श्रीलंका को बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशिया को आतंकवाद एवं चरमपंथ के संयुक्त समीकरण पर नजर रखनी होगी जो कि अब घातक रूप लेता दिख रहा है. कारण यह है कि द. एशिया का सामाजिक-सांस्कृतिक तानाबाना और राजनीतिक तंत्र लगभग इसी तरह से काम कर रहा है.

Web Title: Sri Lankan riots warn for South Asia

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