रहीस सिंह का ब्लॉग: श्रीलंकाई दंगे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी
By रहीस सिंह | Published: May 16, 2019 08:02 PM2019-05-16T20:02:58+5:302019-05-16T20:02:58+5:30
इस पोस्ट में इस मुस्लिम दुकानदार ने लिखा था, ’हंसो मत, एक दिन तुम रोओगे।’ इसकी यह पोस्ट ही साम्प्रदायिक दंगों को तात्कालिक कारण बन गयी।
अप्रैल महीने में श्रीलंका में ईस्टर के मौके पर चर्च और पंचसितारा होटलों सहित विभिन्न जगहों पर हुए बम विस्फोटों के प्रभाव से श्रीलंका अभी उबर ही रहा था कि साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया। अभी पिछले सप्ताह ही श्रीलंका सरकार ने यह घोषणा की थी कि देश अब आतंकवाद से मुक्त हो गया है, क्योंकि सारे आतंकवादी या तो मारे गए या पकड़े गए हैं। यह वास्तव में बहुत बड़ा काम था, जिसकी वाहवाही भी श्रीलंका सरकार को मिली। लेकिन एक मुस्लिम दुकानदार की सोशल मीडिया पर की गयी एक पोस्ट ने श्रीलंका को एक बार फिर हिंसा के गर्त में धकेल दिया।
इस पोस्ट में इस मुस्लिम दुकानदार ने लिखा था, ’हंसो मत, एक दिन तुम रोओगे।’ इसकी यह पोस्ट ही साम्प्रदायिक दंगों को तात्कालिक कारण बन गयी। सवाल यह उठता है कि श्रीलंका में हुयी इस हिंसा की वजह सिर्फ तात्कालिक है या फिर देर से पक रही कुछ चीजों का परिणाम? क्या ऐसा नहीं लगता कि लगभग एक दशक पहले वहां पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने एक खेल शुरू किया था जिसका नतीजा अब सामने आ रहा है?
श्रीलंका में साम्प्रदायिक हमले भले ही अब हुए हों लेकिन सच तो यह है कि पिछले कुछ वर्षो से सांप्रदायिकता की जो आग उसकी सामाजिक सतहों के नीचे सुलग रही थी, वह इससे पहले भी कुछ मौकों पर प्रकट हुयी लेकिन अब वह फूट पड़ी। चूंकि पिछले दिनों हुए चर्च पर हमले मुस्लिम आतंकवादियों की करतूत थे इसलिए मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगों ने अपील की थी कि उन सबको आतंकवादी न माना जाए, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। मुस्लिम समाज ने सेना, पुलिस और प्रशासन के आदेश का पूरी तरह से पालन भी किया था। लेकिन सिंहलियों एवं मुसलमानों के बीच जो पिछले पांच वर्षों से जगह-जगह टकराव होता रहा है, उससे एकत्रित ऊर्जा को सिर्फ इतने से प्रयासों से रोका नहीं जा सकता था।
इसी ऊर्जा से चिंगारी के रूप में मुस्लिम दुकानदार की सोशल मीडिया पर डाली गयी वह पोस्ट रही जिसने सिंहली समुदाय को हिंसा के लिए उकसाया। इसके बाद इस छोटे से देश के पश्चिम तटीय शहर चिलॉ में भीड़ द्वारा एक मस्जिद और मुस्लिमों की कुछ दुकानों पर हमला किए जाने के साथ दंगा भड़क उठा और देखते-देखते यह व्यापक स्तर पर फैल गया। पहले उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के चार शहरों-कुलियापिटिया, हेटिपोला, बगिरिया और डूमलसूरिया में कफ्र्यू लगाया गया। पूरा उत्तर और पश्चिम प्रांत भी हिंसा की चपेट में आ गया। अभी भी बहुसंख्यक सिंहलियों और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच तनाव के जो मुद्दे हैं, वे खत्म नहीं हो पा रहे।
श्रीलंका की सामाजिक संरचना
यदि श्रीलंका की सामाजिक-सांस्कृति संरचना पर नजर डालें तो पाएंगे अधिकतर सिंहली बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, जिनका मूल सिद्धांत अहिंसा है। वे अगर हिंसा को मजबूर हुए हैं तो यह अवश्य कहा जाएगा कि बात साधारण नहीं रही होगी। चूंकि श्रीलंका का सामाजिक-सांस्कृति ढांचा बेहद संवदेनशील है, इसलिए यदि दक्षिण एशिया या पूर्वी एशिया में कहीं पर भी ऐसे तनाव होते हैं तो उसका असर श्रीलंका में दिखता है। उदाहरण के तौर पर जब म्यांमार में रोहिंग्याओं और बौद्धों में हिंसा संघर्ष शुरू हुआ था तो उसका प्रभाव श्रीलंका में भी सांप्रदायिक दंगे के रूप में दिखा था। ऐसे सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने को गम्भीरता से देखने की जरूरत होती है। ध्यान रहे कि श्रीलंका में अप्रैल में जो हमला हुआ था वह सूचनाओं के मुताबिक नेशनल तौहीद जमात नाम के एक आतंकी संगठन द्वारा किया गया था।
नेशनल तौहीद जमात भी ज्यादा चर्चा में नहीं रहा है और न ही इसका आकार बहुत बड़ा है। इसका मतलब यह हुआ कि समूह को दो प्रकार की मैकेनिज्म अपनानी पड़ी होगी। एक बाहर से सहयोग और दूसरा आंतरिक सहयोग। वैसे श्रीलंका की खुफिया एजेंसियों को भी ऐसे इनपुट मिले थे कि इस जमात में इस्लामिक स्टेट से वापस आये आतंकी शामिल हुए हैं। मैसेजिंग एप्लीकेशन टेलीग्राम पर इस्लामिक स्टेट के कुछ समर्थकों ने मीडिया रिपोट्र्स के हवाले से लिखा है कि नेशनल तौहीद जमात के प्रमुख ज़ाहरान हाशमी ने आईएस प्रमुख अबू बकर अल-बग़दादी के प्रति निष्ठा घोषित करने की अपील की थी। यही वजह है कि कई देशों की खुफिया एजेंसियों ने भी श्रीलंका सरकार को संभावित आतंकी वारदातों के बारे में चेतावनी दी थी। समाज के अंदर से कितना सहयोग मिला होगा यह भी सेना की कार्रवाई से स्पष्ट हो गया है। ऐसी स्थिति में सामाजिक विभाजन की खाई और अधिक चैड़ी हुयी होगी। यही खाई खासकर सिंहली और मुस्लिम समाज को आमने-सामने लाकर खड़ा कर देती है।
यहां पर एक पक्ष पाकिस्तान भी बनता दिख रहा है। वैसे भी पाकिस्तान दक्षिण एशिया भर में ऐसी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। हम सब जानते हैं कि लिट्टे को खत्म करने में किसकी अहम भूमिका रही और कौन इसके बाद श्रीलंका में अहम किरदार निभाने की स्थिति में आ गया। सिर्फ एक ही उत्तर मिलेगा चीन। श्रीलंका में चीनी सिक्का जम जाने के कारण उसके सदाबहार मित्र को भी अवसर प्राप्त होने लगे और उसके साथ-साथ अवसरों के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी। उस समय भारत की खुफिया एजेंसियों ने यह मत सामने रखा था कि आईएसआई श्रीलंका के मुसलमानों को हथियारों की आपूर्ति कर रही है। उसकी सक्रियता का प्रमाण फ्रंटियर पोस्ट का वह लेख था जिसमें लिखा गया था-‘श्रीलंका में राॅ का खेल बिगड़ चुका है ......।’
श्रीलंका और पाकिस्तान के रिश्ते
यह अखबार पाकिस्तानी फौजी इस्टैब्लिसमेंट का नजदीकी माना जाता है। एक खास बात और भी है कि इसी समय पाकिस्तान के इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व चीफ और आईएसआई में बड़े ओहदे पर रह चुके कर्नल बशीर को पाकिस्तान और श्रीलंका की सेनाओं के बीच गहरे रिश्ते बनाने के लिए कोलंबो में पाकिस्तान का उच्चायुक्त बनाकर भेजा गया था। कर्नल बशीर को यह यह कार्य सौंपा गया था कि अधिकांश तमिल हिन्दू हैं इसलिए श्रीलंका के पूर्वोत्तर में रहने वाले मुसलमानों को तमिलों की काउंटर पावर के रूप में विकसित करें। उस समय यह बात श्रीलंका की सरकार ने बिल्कुल नहीं सोची कि तमिलों के खिलाफ इस्लामी चरमपंथ को विकसित करना श्रीलंका के लिए एक नए नासूर को तैयार करना है।
बहरहाल श्रीलंका सरकार के कार्यवाहक रक्षा और विधि-व्यवस्था मंत्री रुवान विजयवर्द्धने पूरी सक्रियता से पूरे द्वीप या देश को संभालने में जुटे हुए हैं। जरूरत के हिसाब से कफ्र्यू लगाया और उठाया जा रहा है। शासन ज्यादा सतर्क है। आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल महेश सेनानायके ने साफ संदेश दिया है कि दंगे की वजह से हमें कर्फ्यू लगाना पड़ा है। कुछ घटनाएं हुई हैं, जिनमें कुछ युवा संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, तबाह कर रहे हैं। एक आर्मी कमांडर के रूप में मैं निवेदन करता हूं और साथ ही, चेतावनी भी देता हूं, जिसने भी सरकार या सैन्य बलों के आदेशों का अनादर करने की साजिश रची, उसके खिलाफ हम कड़ी कार्रवाई करेंगे। लेकिन इसके बावजूद न केवल श्रीलंका को बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया को आतंकवाद एवं चरमपंथ के संयुक्त समीकरण पर नजर रखनी होगी जो कि अब घातक रूप लेता दिख रहा है। कारण यह है कि दक्षिण एशिया का सामाजिक-सांस्कृतिक तानाबाना और राजनीतिक तंत्र लगभग इसी तरह से काम कर रहा है।