शोभना जैन का ब्लॉग: नई खेमेबंदियों की कोशिश में लगा है चीन

By शोभना जैन | Published: July 23, 2021 11:29 AM2021-07-23T11:29:08+5:302021-07-23T11:32:19+5:30

चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे पर अंकुश लग जाने से आशंकित है. इसलिए वह क्वाड को सैन्य गठबंधन की परिभाषा देता रहा है. चीन द्वारा इसे एशियाई नाटो बताए जाने पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर सख्त आपत्ति जता चुके हैं.

Shobhna Jain blog: China is trying to make new groups in world politics | शोभना जैन का ब्लॉग: नई खेमेबंदियों की कोशिश में लगा है चीन

नई खेमेबंदियों की कोशिश में जुटा चीन (फाइल फोटो)

इन दिनों दुनिया तेजी से घूम रही है. कोविड, अफगानिस्तान को लेकर दुनिया में बड़ी ताकतें तेजी से देशों के नए गठबंधन बना रही हैं, नए समीकरण बन रहे हैं. इस दौर में दुनिया भर में अपना दबदबा बनाने की जुगत में लगे चीन ने हाल ही में कोविड टीका बनाने और कोविड की वजह से आई गरीबी के साझा प्रयासों से उन्मूलन के बहाने हाल ही में छह दक्षिण एशियाई देशों का एक समूह बनाया है. 

अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के उसके एजेंडे में भारत को दूर रखने की मंशा साफ झलकती है. उधर अमेरिकानीत भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के चर्चित क्वाड गठबंधन के मुकाबले चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान का क्वाड जैसा ही एक काफी अहम गठबंधन उभर रहा है, जिस पर दुनिया भर की नजर है. 

इसमें भी चीन के मंसूबों की बिसात साफ नजर आ रही है. अपने निहित स्वार्थो की वजह से चीन के वरदहस्त प्राप्त पाकिस्तान की बात अगर छोड़ दें तो रूस सहित इन देशों के साथ इस समूह में चीन के तथा अन्य देशों  के समीकरण आने वाली परिस्थितयों में कैसे रहेंगे, यह एक अहम सवाल है. इन्हीं नए समीकरणों में सामने आ रहा है एक और ग्रुप. 

अफगानिस्तान में तेजी से घटते घटनाक्रम के बीच अमेरिका ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान को मिलाकर समूह बनाया, जिसके बारे में कहा गया कि इससे क्षेत्र में बेहतर संपर्क यानी कनेक्टिविटी बढ़ेगी, क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बढ़ेगी.

अपने विस्तारवादी एजेंडे पर अंकुश लग जाने से आशंकित चीन क्वाड को सैन्य गठबंधन की परिभाषा देता रहा है. चीन द्वारा इसे एशियाई नाटो बताए जाने पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर सख्त आपत्ति जताते हुए कह भी चुके हैं कि इस तरह की शब्दावली वे ही इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनके दिमाग में ये सब चलता है. 

ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि एक तरफ जब दुनिया के चार बड़े लोकतांत्रिक देशों  के  समूह  क्वाड के शिखर नेता मिलकर इस वर्ष अपने कार्यक्रमों और रणनीति पर  आगे विचार करने वाले हैं, ऐसे में चीन यह गठबंधन बना रहा है.

वैसे चीन और रूस के बीच आपसी संबंध उथल-पुथल भरे और जटिल रहे हैं लेकिन अमेरिका के चीन के साथ 36 के आंकड़े और रूस के साथ भी अमेरिका के उलझते रिश्तों के दौर में हाल ही में रूस और चीन के बीच मैत्नी काफी बढ़ी है. हाल ही में दोनों देशों ने मिल कर मैत्री सहयोग संधि की 20वीं सालगिरह मनाई. 

दरअसल माना जाता है कि यह संधि अमेरिकानीत पश्चिम की रूस-चीन के खिलाफ लामबंदी है ताकि वैश्विक मामलों में उनका भी प्रभाव रहे. बहरहाल, भारत रूस संबंधों की बात करें तो अमेरिका के साथ हाल के वर्षो में बढ़ती नजदीकियों के बीच भारत रूस संबंधों में कुछ ठहराव सा आया था लेकिन अब फिर से दोनों देश वही पुरानी प्रगाढ़ता के दौर में आ रहे हैं. 
हाल ही में रूस ने ईरान और भारत को पहली बार रूस-अमेरिका-चीन ट्रॉइका प्लस में बुलाया है. अफगानिस्तान में शांति वार्ता को लेकर पहले  रूस ने जो कॉन्फ्र ेंस की थी उसमें अमेरिका, पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भारत को नहीं बुलाया गया. 

पाकिस्तान किसी भी अफगान शांति वार्ता में भारत को शामिल किए जाने पर आपत्ति जताता रहा है. भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की हाल की ताशकंद यात्रा के दौरान अब रूस का रुख बदलता दिख रहा है. 
रूस और भारत अफगानिस्तान को लेकर कई तरह के मंचों पर गहराई से जुड़े हुए हैं. रूस अफगान मुद्दे पर भारत के साथ सहयोग को लेकर काफी समर्पित है. चीन का मंसूबा अफगानिस्तान में अपना बेल्ट रोड इनिशिएटिव ले जाने का है ताकि काबुल को सामरिक केंद्र बनाकर दुनिया भर में अपना प्रभाव बढ़ा सके.

इस उभरते चतुष्कोणीय समूह के तीसरे देश ईरान की बात करें तो अमेरिका के साथ अपने परमाणु कार्यक्र म को लेकर चल रहे भीषण टकराव की वजह से चीन और ईरान अपने इस साझा शत्रु को ध्यान में रख कर आपसी रिश्ते मजबूत कर रहे हैं. 

चीन ने वहां के आर्थिक विकास में 25 वर्षो तक सहयोग देने की बात कही है और ईरान से गैस और तेल की दीर्घकालिक आपूर्ति मिलने के बदले उसने वहां भारी निवेश की योजना बनाई है. रही बात पाक की तो वह भारत को इस क्षेत्र में अपनी चौधराहट जमाने में चुनौती मानता है,  ऐसे में सामरिक स्वार्थो की वजह से यह दोस्ती बढ़ना स्वाभाविक है.

बात अगर करें चीन-दक्षिण एशिया देशों के समूह की जिसका मुख्यालय चीन में बनाए जाने का प्रस्ताव है तो इसमें भारत के अलावा क्षेत्न के दो ही देश, मालदीव और भूटान शामिल नहीं हैं. नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश इसके सदस्य बने हैं. 

हाल ही में इस ग्रुप में भारत के नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा कि भारत का इस ग्रुप में शामिल होने पर स्वागत है. लेकिन यह साफ जाहिर होता है कि कोविड के टीकों की भारी किल्लत को देखते हुए चीन ने यह पैंतरा खेला. भारत अपने ही देश में टीकों की भारी किल्लत की वजह से आश्वासन के बावजूद इन देशों को टीके  नहीं भेज पाया.

इसके बाद ही चीन ने इन देशों के  साथ बैठक  की तथा कोविड टीके उपलब्ध कराए जाने के साथ कोविड की वजह से क्षेत्र में उत्पन्न आर्थिक मसलों के लिए एक गरीबी उन्मूलन केंद्र भी बनाए जाने का सुझाव दिया. लेकिन जब क्षेत्न के देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग संगठन दक्षेस पहले से ही है और चीन भारत के साथ सीमा मुद्दे को लेकर टकराव का रवैया अपनाता है ऐसे में भारत के इस तरह के ग्रुप में शामिल होने का कोई अर्थ नहीं है.

बहरहाल, इन नए समीकरणों और खेमेबंदियों के बीच भारत को भी सतर्कता से अपने हितों की रक्षा करनी होगी.

Web Title: Shobhna Jain blog: China is trying to make new groups in world politics

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