लोकतंत्र में भरोसा नहीं करने वाले पाकिस्तान का पड़ोसी देश में लोकतांत्रिक गतिविधियाें को देख बेचैन होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि जब से जम्मू-कश्मीर में चुनाव की तैयारियां आरंभ हुई हैं, तब से वह किसी न किसी तरह से आतंकवाद को बढ़ावा देने में जुटा हुआ है। ऐसा दावा किया गया है कि करीब छह सौ सैनिकों को उसने आतंकवादी के रूप में घुसपैठ की तैयारी की है, जिनसे आए दिन सुरक्षा बल सख्ती के साथ निपट रहे हैं।
अनेक भारतीय जवानों की शहादत भी हो रही है, क्योंकि इस दौरान होने वाले हमलों के तरीके अलग हैं और कश्मीर घाटी के अलावा जम्मू क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों से निशाना बनाया जा रहा है। फिलहाल राज्य में तीनों चरणों के चुनावों के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्तूबर को मतदान होगा और परिणाम 8 अक्तूबर को आएंगे। हालांकि चुनाव के मद्देनजर पूरे जम्मू-कश्मीर में अलर्ट जारी है और सीमा पर खास निगरानी रखी जा रही है, फिर भी चुनाव को बाधित करने के लिए दहशतगर्द चुनाव के बीच ही किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी में हैं। लंबे समय से आतंकवाद का सामना कर रहे जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। वहां पिछला विधानसभा चुनाव वर्ष 2014 में हुआ था। पिछले दस सालों में यहां के राजनीतिक हालात बदल चुके हैं।
केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा हटा दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच ने भी सर्वसम्मति से फैसला देते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा को खत्म करने का फैसला बरकरार रखा था। इसके साथ ही नए वातावरण में चुनाव होने का रास्ता साफ हो गया था।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन के साथ राज्य में शांति की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। जिससे पर्यटन की दृष्टि से बीते कुछ साल काफी अच्छे गुजरे। इसी के बीच परिस्थितियों का आंकलन कर वहां लोकतांत्रिक सरकार को बहाल करने के लिए चुनाव की प्रक्रिया आरंभ की गई। निश्चित ही अलगाववादियों और पाकिस्तानियों को यह दृश्य गले नहीं उतर रहा है।
वह आम जनता का रुख देख चुके हैं। इसलिए वे अब सीधे सैनिक बलों को निशाना बना रहे हैं, जिसका सेना और अर्धसैनिक बल मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। संभव है कि यह स्थितियां चुनाव और उसके कुछ दिन बाद तक बनी रहेंगी, लेकिन इतना तय है कि आतंकवाद को खत्म करने का प्रण किसी भी हाल में अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। आवश्यक यह है कि पाकिस्तान अपना घर संभाले और भटके नौजवानों को सही राह पर चलने की सीख दे, जिससे दोनों देश प्रगति कर सके और जनता खुशहाल रह सके।