राजेश बादल का ब्लॉग: बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का पश्चिम से संबंध
By राजेश बादल | Published: August 13, 2024 09:58 AM2024-08-13T09:58:38+5:302024-08-13T09:59:42+5:30
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से उसने तीन वर्ग किलोमीटर का एक छोटा सा सेंट मार्टिन द्वीप खरीदना चाहा. वहां से भी उसे टका सा जवाब मिल गया. इस पर बौखलाए अमेरिका ने बांग्लादेश में फौज की मदद से उनकी सरकार गिरा दी.
अमेरिका उतावला है. भारतीय उपमहाद्वीप में वह अपना ताकतवर सैनिक अड्डा बनाना चाहता है. चीन और रूस की घेराबंदी के लिए दशकों से वह जगह की खोज में है. पाकिस्तान, मालदीव और श्रीलंका में चीन और भारत के कारण उसकी दाल नहीं गली. भारत में मजबूत लोकतंत्र और सार्वभौमिकता के मद्देनजर बात नहीं बनी.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से उसने तीन वर्ग किलोमीटर का एक छोटा सा सेंट मार्टिन द्वीप खरीदना चाहा. वहां से भी उसे टका सा जवाब मिल गया. इस पर बौखलाए अमेरिका ने बांग्लादेश में फौज की मदद से उनकी सरकार गिरा दी. अमेरिका की यह पुरानी तरकीब है. कम-से-कम शेख हसीना तो यही कहती हैं. अपदस्थ किए जाने के बाद पहली बार उन्होंने मुंह खोला है.
उन्होंने कहा है कि अमेरिका की इच्छा पूरी नहीं करने के कारण उन्हें अपनी निर्वाचित सरकार खोनी पड़ी है. अगर वे ऐसा नहीं करतीं तो मुल्क में रक्तपात और व्यापक हिंसा की आशंका थी. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि वे अमेरिका की ख्वाहिश के अनुसार काम करतीं तो न उनकी सरकार जाती और न मुल्क में खून-खराबा होता. शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने जो भी फैसला किया, वह बांग्लादेश की भूमि बचाने के लिए किया.
उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही स्वदेश लौटेंगी और देशवासियों की एक बार फिर सेवा करेंगी. बता दूं कि लगभग तीन साल पहले भी यह द्वीप अमेरिका को देने का मामला संसद में उठा था. बांग्लादेश वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष रशीद खान ने इस मामले को उठाया था. इस द्वीप को अमेरिका को देने के लिए खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने समर्थन किया था. इस बार तख्तापलट के पीछे यही सौदेबाजी है. यह अवामी लीग का दावा है.
अब पाकिस्तान का उदाहरण देखिए. अमेरिका में एक गोपनीय दस्तावेज से खुलासा हुआ था कि जो बाइडेन सरकार के इशारे पर इमरान खान की निर्वाचित सरकार गिराई गई थी. इमरान खान नियाजी प्रधानमंत्री थे तो अमेरिका ने उनसे भी पाकिस्तान में अपना सैनिक अड्डा बनाने की इजाजत देने के लिए कहा था. चीन के दबाव में इमरान खान ने इनकार कर दिया.
यही नहीं, अमेरिकी राजदूत की बात अनसुनी करके वे फरवरी 2022 में राष्ट्रपति पुतिन से मिलने मास्को चले गए. बकौल इमरान वे रूस से सस्ता क्रूड आयल खरीदने के लिए बातचीत करने गए थे, जैसा कि भारत करता है. इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना की मदद से इमरान की सरकार गिरा दी. अमेरिका पहले भी नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में यह प्रस्ताव रख चुका है.
वह सैनिक संधियों के जरिये अपना अड्डा कराची के आसपास बनाना चाहता है. इमरान खान चीख-चीख कर कहते रहे कि उनकी सरकार गिराने के पीछे अमेरिका का हाथ है. उनके पास पर्याप्त सुबूत हैं. लेकिन इस क्रिकेटर रहे प्रधानमंत्री की किसी ने नहीं सुनी? अंततः वे जेल में डाल दिए गए. माना जा सकता है कि वे तब तक सलाखों के पीछे रहेंगे, जब तक अमेरिका चाहेगा.
अब इमरान की पार्टी के लोग अमेरिकी राजनेताओं से माफीनामा भेज रहे हैं मगर अमेरिका के कान पर जूं नहीं रेंग रही. अमेरिका का यही तरीका है. इमरान खान ने तो चीन को भी नाराज कर लिया था. चीन ने भी इस मामले में चुप्पी साधे रखी. आमतौर पर चीन संवेदनशील मामलों में मुंह नहीं खोलता. पाकिस्तान में सेना इस परिवर्तन के पीछे थी और बांग्लादेश में भी आईएसआई के माध्यम से बांग्ला सेना ने शेख हसीना को चलता किया.
आईएसआई ने एक तीर से दो निशाने साधे. एक तो शेख हसीना वाजेद की सरकार गिरा दी और दूसरा हिंदुओं के खिलाफ विष वमन कर बांग्लादेश की अवाम को भारत के खिलाफ भड़काने का काम किया. अब वह अप्रत्यक्ष रूप से बांग्लादेश में भारतीय निकटता के सारे सुबूत मिटाने के प्रयास कर रही है.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में बांग्लादेश का घटनाक्रम देखें तो जो बाइडेन की राष्ट्रपति पद से उम्मीदवारी से हटने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस के लिए संभावनाएं बढ़ती दिखाई दे रही हैं. उन्हें कश्मीर के मामले में पाकिस्तान समर्थक सांसदों का समर्थन भी मिल रहा है. यह पार्टी अमेरिका की परंपरागत विदेश नीति पर ही चलने की पक्षधर है.
ऐसे में पाकिस्तान और बांग्लादेश का साथ-साथ आना उनके लिए फायदेमंद है. कमला भले ही भारतीय मूल की हों, लेकिन वे भारत की कश्मीर नीति की मुखर आलोचक रही हैं. बांग्लादेश में अमेरिका समर्थक सरकार आने से उसका रौब समूचे उपमहाद्वीप पर पड़ सकता है. रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प चीन के कट्टर आलोचक हैं. आप उन्हें चीन का दुश्मन कह सकते हैं.
मगर बराक ओबामा, जो बाइडेन और कमला हैरिस चीन से रिश्तों में सुधार भी चाहते हैं. ताइवान के मामले में गंभीर मतभेद होते हुए भी डेमोक्रेट्स चीन से अच्छे नहीं तो सामान्य संबंध चाहते हैं. हाल के दिनों में कुछ ऐसे संकेत मिले भी हैं. चीन चाहेगा कि वहां ट्रम्प की वापसी नहीं हो लेकिन बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रम से शायद चीन की पेशानी पर बल पड़ें. फिर भी वह चाहेगा कि डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आए.
ऐसे में इन शिखर ताकतों के बीच कूटनीतिक संबंधों का नए सिरे से निर्धारण हो सकता है. भारत के लिए बांग्लादेश का घटनाक्रम निश्चित रूप से चिंता बढ़ाने वाला हो सकता है. उसके लिए अनेक मोर्चे एक साथ खुल गए हैं. अमेरिका ने दोस्त होने का दम भरते हुए भी बांग्लादेश में भारत हितैषी सरकार गिरा दी तो यह दोस्ती वाला धर्म तो नहीं निभाया. दूसरी तरफ पाकिस्तान की हेकड़ी देखने लायक होगी.
भारत को पूरब और पश्चिम दोनों सीमाओं पर सतर्क रहना होगा. उत्तर में चीन ने पहले से ही भारतीय परेशानी बढ़ा रखी है. इसके अलावा बांग्लादेश के साथ कारोबार को तगड़ा झटका लगेगा. लगभग पंद्रह अरब डॉलर का व्यापार दोनों देशों के बीच है. इसके अलावा रेल संपर्क, सड़क संपर्क, बिजली उत्पादन, दाल निर्यात और रक्षा संबंधी कई समझौते चल रहे हैं. अब पाकपरस्त सरकार की नीति पर सब कुछ निर्भर करेगा.