रहीस सिंह का ब्लॉगः अलग-अलग खेमों में बंटती हुई दुनिया को कैसे देखे भारत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 18, 2019 09:04 AM2019-08-18T09:04:45+5:302019-08-18T09:04:45+5:30

हमें बार-बार बताया जा रहा है कि अमेरिका और चीन लड़ रहे हैं लेकिन क्या सच यही है? यदि हां तो उनके असल मुद्दे क्या हैं. अमेरिका और चीन के बीच इस लड़ाई में भारत कहां पर है. चूंकि अब इसमें एक तीसरा पहलू भी जुड़ रहा है यानी पाकिस्तान, इसका अर्थ हमें समझने की जरूरत है. 

Rahis Singh's blog: How India should see the world divided into different camps | रहीस सिंह का ब्लॉगः अलग-अलग खेमों में बंटती हुई दुनिया को कैसे देखे भारत

रहीस सिंह का ब्लॉगः अलग-अलग खेमों में बंटती हुई दुनिया को कैसे देखे भारत

दुनिया इस समय ऐसे विभाजनों और खेमेबंदियों के साथ आगे बढ़ रही है जिन्हें माइक्रोस्कोपिक नजर से देखने की जरूरत है. चूंकि इन विभाजनों में हिंद-प्रशांत और फारस की खाड़ी भी शामिल होंगे और दुनिया की बड़ी ताकतें इन्हें लेकर निर्णायक स्थिति तक जा सकती हैं इसलिए भारत को इन पर निगहबानी रखने की जरूरत होगी. हमें बार-बार बताया जा रहा है कि अमेरिका और चीन लड़ रहे हैं लेकिन क्या सच यही है? यदि हां तो उनके असल मुद्दे क्या हैं. अमेरिका और चीन के बीच इस लड़ाई में भारत कहां पर है. चूंकि अब इसमें एक तीसरा पहलू भी जुड़ रहा है यानी पाकिस्तान, इसका अर्थ हमें समझने की जरूरत है. 

दरअसल अमेरिका और चीन के बीच में जो टकराव दिख रहा है वह सामान्य तौर पर ट्रेड, टैरिफ और टेक्नोलॉजी को लेकर है. लेकिन सीधी सी दिखने वाली इस लड़ाई के पीछे असल पक्ष कुछ और भी हैं. इसकी एक वजह तो दोनों देशों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं या फिर उनका साम्राज्यवादी चरित्र. ध्यान रहे कि अमेरिका फारस की खाड़ी या फिर संपूर्ण मध्य-पूर्व में और हिंद-प्रशांत में पॉलिसी रीसेट के दौर से गुजर रहा है. यही वजह है कि कभी वह भारत की तरफ हाथ फैलाता है और कभी पाकिस्तान की पीठ थपथपाता है. कभी वह भारत के साथ हिंद-प्रशांत में ‘स्ट्रेटेजिक ट्रैंगल’ का निर्माण करता है जिसका उद्देश्य चीन को घेरना है तो कभी वह ‘बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव’ के लिए ज्वाइंट फंड निर्मित कर चीन को खुश करने की कोशिश करता है, यह जानते हुए भी कि भारत इसका विरोध करता है. 

इस स्थिति में भारत के लिए जरूरी है कि वह दोनों देशों की नीतियों में सहयोगी बनने के बजाय रीयल पॉलिटिक के आधार पर आगे बढ़े और साङोदारी करे. इस समय अमेरिका को कुछ नए मित्र चाहिए. भारत उनमें एक हो सकता है. लेकिन भारत अमेरिका से पूरी तरह से डिक्टेट नहीं हो सकता इसलिए ट्रम्प मित्रता के साथ-साथ दबाव की रणनीति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं. उनका नया पाकिस्तान प्रेम इसी की बानगी है. दूसरी तरफ शी जिनपिंग चीन को ‘एडवान्स्ड सोशलिस्ट कंट्री’ बनाने का मंत्र दे रहे हैं जो 2049 तक दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ताकत के रूप में चीन की प्रतिष्ठा कराएगा. यह न केवल अमेरिका को बल्कि पूरी दुनिया को डरा रहा है. चीन अब चाहता है कि दक्षिण एशिया में भारत उसका अहम साथी बने. इसी उद्देश्य से भारत को शंघाई सहयोग संगठन में जगह दी गई, लेकिन साथ में पाकिस्तान को जगह देकर भारत के कद को कमजोर भी किया गया. 

 सवाल यह है कि अमेरिका और चीन के बीच लड़ाई किस तरह की है और भारत को उसे किस नजरिए से देखना चाहिए? असल पक्ष यह है कि चीन की कई ऐसी योजनाएं हैं जो दुनिया को आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ डरा भी रही हैं. इनमें पहली है बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई), जो चीन को एक ग्लोबल सॉफ्ट पावर बना सकती है. दूसरी है ‘मेड इन चाइना 2025’. यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की योजना है जिसका लक्ष्य है चीन को नई तकनीकों का केंद्र बनाना. चीन की यह महत्वाकांक्षी योजना व्यापार और बौद्घिक संपदा के लिए लंबी जंग का कारण बन सकती है. 

बहरहाल एक नई किस्म की लामबंदी दुनिया में देखी जा सकती है जो नए शीतयुद्घ का भय दिखा रही है. जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संसद के निर्णय के बाद पाकिस्तान अमेरिका और चीन के और निकट पहुंचता दिख रहा है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जुन का यह बयान कि कश्मीर में बहुत खतरनाक स्थिति होने जा रही है, बेहद गंभीरता से समझने योग्य है.

Web Title: Rahis Singh's blog: How India should see the world divided into different camps

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