रहीस सिंह का ब्लॉग: हांगकांग में लोकतंत्र खत्म करने पर आमादा चीन
By रहीस सिंह | Published: July 18, 2019 04:01 AM2019-07-18T04:01:02+5:302019-07-18T04:01:02+5:30
दरअसल यह विवाद प्रत्यर्पण कानून में बदलाव को लेकर उत्पन्न हुआ. प्रस्तावित कानून के अनुसार यदि व्यक्ति अपराध करके हांगकांग भाग जाता है तो उसे जांच प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चीन भेज दिया जाएगा.
स्वतंत्रता की भी अपनी विशेषता है, वह है तो व्यक्त होना चाहती है लेकिन दूसरी तरफ तानाशाही है जो स्वतंत्रता को हर कीमत पर दबाए रखना चाहती है. यही स्थिति इस समय हांगकांग और चीन की है. हांगकांग अपने मूल्यों पर आगे बढ़ना चाहता है जिसमें स्वतंत्रता और लोकतंत्र है लेकिन बीजिंग इन्हें खत्म करना चाहता है क्योंकि वह बहुलतावाद से डरता है. लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए हांगकांग द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई में हांगकांग के साथ वह दुनिया खड़ी नहीं है जिसने लोकतंत्र की रक्षा के बहाने बड़ी सभ्यताएं और मानवीय मूल्य ध्वंस कर दिए. क्या इस स्थिति में हांगकांग अपनी लड़ाई एक महाशक्ति से जीत पाएगा या उसका भी वही हश्र होगा जो तिब्बत का हुआ?
हांगकांग को इन दिनों न ही हम थमा हुआ मान सकते हैं और न आगे सरकता हुआ. पिछले काफी दिनों से उसकी सड़कें दसियों लाख लोगों की गतिमान भीड़ से भरी हैं जो काम नहीं संघर्ष कर रही है. यह संघर्ष उस बिल के खिलाफ है जो एक ही क्षण में हांगकांग की हैसियत को खतरे में डालने वाला है. इस भीड़ में ऐसे युवा छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं जो यह कहते दिखे हैं कि अगर हम खड़े नहीं होंगे तो हम अपने अधिकारों को खो देंगे. दरअसल यह विवाद प्रत्यर्पण कानून में बदलाव को लेकर उत्पन्न हुआ. प्रस्तावित कानून के अनुसार यदि व्यक्ति अपराध करके हांगकांग भाग जाता है तो उसे जांच प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चीन भेज दिया जाएगा.
यह कानून चीन को उन देशों के संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने और उनकी संपत्ति का अधिग्रहण करने की अनुमति देगा, जिनके साथ हांगकांग के समझौते नहीं हैं. जबकि अभी तक हांगकांग ब्रिटिशकालीन कॉमन लॉ सिस्टम से काम कर रहा था और उसकी 1997 से पहले जिन देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि थी उन्हीं को ही वह वांछित अपराधियों को प्रत्यर्पित करता था जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं. अब उसे सभी को चीन को प्रत्यर्पित करना पड़ेगा.
इससे हांगकांग के लोगों में यह भय पनपने लगा है कि चीन इस कानून के जरिए किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो राजनीतिक आंदोलन से जुड़ा है, हांगकांग से प्राप्त कर लेगा और इस तरह से हांगकांग के लोगों के सभी राजनीतिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे. हांगकांग के लोगों का यह डर वाजिब है क्योंकि नया कानून निश्चित रूप से स्वतंत्र, लोकतांत्रिक दौर का अंत कर देगा क्योंकि इसके बाद कानून हांगकांग के नियंत्रण में न होकर चीन के नियंत्रण में होगा.
यह भी संभव है कि इसी के साथ चीन ‘एक देश-दो व्यवस्था’ (वन कंट्री-टू सिस्टम) का भी ध्वंस कर दे जबकि 1997 में ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को हस्तांतरित करते समय यह गारंटी हासिल की थी कि चीन ‘वन कंट्री-टू सिस्टम’ के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी अवस्था को बनाए रखेगा.