रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत विरोधी मनोग्रंथि में डूबता पाकिस्तान
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 21, 2018 05:30 AM2018-10-21T05:30:44+5:302018-10-21T05:30:44+5:30
जुलाई 2018 में संपन्न चुनावों से पहले इमरान खान एक तरफ सेना के साथ मिलकर नवाज शरीफ और उनकी पार्टी के खिलाफ कुचक्रों के निर्माण में साझीदार बन रहे थे तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के लोगों को यह सपना भी दिखा रहे थे कि पाकिस्तान के अच्छे दिन आने वाले हैं।
पाकिस्तान दिवालिया होने की ओर बढ़ रहा है। पाकिस्तानी रुपया धूल चाट रहा है और सरकार कटोरा लेकर दर-दर भटकने पर विवश है। सवाल यह है कि पाक को इन स्थितियों का सामना क्यों करना पड़ा?
जुलाई 2018 में संपन्न चुनावों से पहले इमरान खान एक तरफ सेना के साथ मिलकर नवाज शरीफ और उनकी पार्टी के खिलाफ कुचक्रों के निर्माण में साझीदार बन रहे थे तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के लोगों को यह सपना भी दिखा रहे थे कि पाकिस्तान के अच्छे दिन आने वाले हैं।
अपने पहले प्रयास में तो वे सफल हो गए और सेना के सहयोग से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए लेकिन दूसरे मोर्चे पर वे पूरी तरह से अभी असफल दिख रहे हैं। हालांकि जब वे पाकिस्तान की जनता को सपने दिखा रहे थे उसी समय रेटिंग एजेंसी मूडीज (जून 2018) ने पाकिस्तान की साख को कम करते हुए नकारात्मक श्रेणी में डाल दिया था जिसकी उस समय पूरी तरह से अनदेखी की गई थी।
मूडीज के निर्णय के कुछ समय बाद ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में डालने का निर्णय लिया था। यह निर्णय सही अर्थो में पाकिस्तान को जोखिम में डालने का संकेत था लेकिन पाक बेखबर रहा।
आईएमएफ के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पाकिस्तान की ग्रोथ रेट 3 प्रतिशत से नीचे और मुद्रा स्फीति 14 प्रतिशत के आसपास रहेगी। अब यदि पाकिस्तान को आईएमएफ से कर्ज लेना है तो उसे आईएमएफ के साथ सीपेक के दस्तावेज पेश करने होंगे, जो चीन कभी नहीं चाहेगा।
दूसरी तरफ अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज और मदद पर बारीकी से नजर रखी जाए ताकि वह इसका उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा चीन को कर्ज चुकाने में न कर सके। मेरी दृष्टि में पाकिस्तान अब अपने ही जाल में फंस रहा है।
उसने अमेरिका से मिलने वाली मदद का प्रयोग अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने में नहीं बल्कि आतंकवाद को पोषण देने और भारत भारत के खिलाफ लड़े जा रहे छद्म युद्ध में किया।
दूसरा, उसने भारत को ईष्र्या/शत्रुतावश मोस्ट फेवर्ड नेशन की श्रेणी नहीं प्रदान की जिससे उसे महंगी और दूरस्थ वस्तुओं का आयात करना पड़ा। फलत: निर्यात बिल बढ़े। तीसरा, सेना द्वारा गाइडेड सरकारों ने रक्षा पर भरपूर खर्च किया लेकिन विकास पर कटौतियां कीं जिससे आर्थिक उत्पादन कमजोर पड़ा और समग्र आर्थिक परिदृश्य शिथिल व नि:शक्त हुआ।
बेहतर होता कि भारत से पाकिस्तान दोस्ती कर लेता जिससे उसके आतंकवाद और सेना पर व्यय घटते और आयात सस्ते हो जाते।