प्रमोद भार्गव का नजरियाः जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम
By प्रमोद भार्गव | Published: February 17, 2019 03:14 PM2019-02-17T15:14:10+5:302019-02-17T15:14:10+5:30
जलवायु परिवर्तन तेजी से विकराल रूप लेता दिखाई देने लगा है. इसे हम अपने आसपास बढ़ती सर्दी और गर्मी के साथ अनावृष्टि और अतिवृष्टि के रूप में भी अनुभव कर रहे हैं.
रूस के व्यस्ततम आवासीय क्षेत्र की सड़कों और घरों में ध्रुवीय भालुओं ने डेरा डाल लिया है. इस हिंसक जीव ने नोवा जिमिया द्वीप समूह के लोगों पर जानलेवा हमले भी किए हैं. इस कारण इस इलाके में हड़कंप है और लोग डरे हुए हैं. नतीजतन क्षेत्र में आपातकाल घोषित कर दिया गया है. इनकी संख्या 52 बताई जा रही है. इस इलाके में 3000 लोग रहते हैं. रूस में इन भालुओं के शिकार पर प्रतिबंध है, इसलिए मारा नहीं जा सकता. सुरक्षा दल इन भालुओं को खदेड़कर इनके पारंपरिक रहवासों में पहुंचाने की कठिन कोशिश में लगे हैं. किसी तरह की अनहोनी से बचने के लिए लोगों के घरों से निकलने और विद्यार्थियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई है. 2016 में भी इस क्षेत्र में इस तरह की घटना घट चुकी है. प्राणी विशेषज्ञ इस आपदा के पीछे जलवायु परिवर्तन के कारण आहार में आई कमी बता रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन तेजी से विकराल रूप लेता दिखाई देने लगा है. इसे हम अपने आसपास बढ़ती सर्दी और गर्मी के साथ अनावृष्टि और अतिवृष्टि के रूप में भी अनुभव कर रहे हैं. अब इसके नकारात्मक परिणाम वन्य जीवों पर भी देखने में आने लगे हैं. कुछ समय पहले हुए एक अध्ययन से पता चला था कि बढ़ते वैश्विक तापमान के चलते मछलियों का आकार छोटा होने लगा है. इसी कड़ी में दूसरा चिंताजनक पहलू सामने आया है कि पोलर बीयर यानी ध्रुवीय भालू भूख से दम तोड़ रहे हैं. यह सुंदर और भारी भरकम जीव जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते ठीक से शिकार नहीं कर पा रहा है जिसके चलते इन्हें पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पा रही है. इस वजह से इनकी संख्या इनके आवास स्थलों में तेजी से घट रही है. भोजन के लिए यही भालू ग्रामों की ओर कूच कर रहे हैं.
बढ़ते तापमान का असर हिमालय पर भी पड़ रहा है. हिमालय के हिमनद या तो सिकुड़ रहे हैं, या टूट रहे हैं. जलवायु परिवर्तन भालुओं के लिए संकट की नई खबर है, लेकिन इस बदलाव की जद में दुनिया भर की 72 प्रतिशत पक्षी-प्रजातियां पहले ही आ गई हैं. यह संकट अनेक कीटभक्षियों के साथ ठंडे पानी में रहने वाले पक्षी पेंगुइन पर भी है. ये दिखाते हैं कि ग्लोबल वार्मिग ने जीव-जंतुओं पर कयामत ढाना शुरू कर दिया है. कालांतर में मनुष्य भी इसकी चपेट में आ सकता है.