ब्लॉग: इजराइल में लोकतंत्र के लिए जनता का संघर्ष...न्यायिक व्यवस्था को स्वतंत्र रखने की जंग

By शोभना जैन | Published: March 31, 2023 09:40 AM2023-03-31T09:40:13+5:302023-03-31T09:51:51+5:30

इजराइल में जनता सड़कों पर है. न्याय व्यवस्था में कुछ बदलाव की प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की योजना को लेकर लोगों में रोष है. जनता का कहना है कि ये बदलाव वहां की न्यायिक व्यवस्था को कमजोर कर देंगे.

People's struggle for democracy in Israel, the fight to keep the judicial system independent | ब्लॉग: इजराइल में लोकतंत्र के लिए जनता का संघर्ष...न्यायिक व्यवस्था को स्वतंत्र रखने की जंग

इजराइल में लोकतंत्र के लिए जनता का संघर्ष (फाइल फोटो)

इन दिनों जबकि आगामी मई में इजराइल अपनी स्थापना की 75वीं सालगिरह मनाने की तैयारी कर रहा है, जनता न्यायपालिका में आमूलचूल बदलाव के सरकार के इरादों के खिलाफ देश भर में सड़कों पर है. हालांकि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने लगभग तीन माह से चल रहे जनाक्रोश के लगातार और तीव्र होने पर आखिर न्याय व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव की योजना को फिलहाल टालने का फैसला किया है.

इससे पीएम ने क्षणिक तौर पर तो शांति का जुगाड़ कर लिया है लेकिन माहौल में तनाव अभी भी बना हुआ है और जनता शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन भी कर रही है.

विरोध कर रही जनता का कहना है कि ये बदलाव वहां की न्यायिक व्यवस्था को कमजोर कर देंगे. लोकतंत्र में न्यायिक व्यवस्था कैसे स्वतंत्र रहे, उनकी सबसे बड़ी चिंता यही है. विरोध के बढ़ते स्वरों को देख नेतन्याहू ने विधेयक को फिलहाल एक माह तक ठंडे बस्ते में डाल कर उस पर सर्वसम्मति बनाने के बाद ही उसे फिर से वहां की संसद- नेसेट में पेश करने का आश्वासन दिया है. इसी सोमवार को विवादास्पद विधेयक पर फिलहाल चर्चा को रोकने की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि वे यह कदम इसलिए उठा रहे हैं ताकि लोगों के बीच पनपे आक्रोश और अलगाव को रोका जा सके. 

नेतन्याहू की घोषणा के बाद देश में अस्थाई शांति तो बनी है, लेकिन माहौल में तनाव है. सवाल है कि इजराइल में जबकि इस मुद्दे पर इतना आक्रोश है, जनता इस प्रस्तावित विधेयक को देश के लोकतंत्र की मजबूती के लिए खतरा मान रही है तो समाज के सभी वर्गों को लेकर यह सहमति आखिर बनेगी कैसे ?

आलोचकों का कहना है कि सरकार के प्रस्तावित बदलावों से देश में लोकतंत्र कमजोर होगा, कार्यपालिका के बेहद ताकतवर हो जाने की स्थिति में तानाशाही ताकतें हावी हो जाएंगी और न्यायपालिका का राजनीतिकरण होने का अंदेशा है. उनका कहना है कि सरकार को लोकतंत्र की मजबूती के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता की अहमियत को समझना होगा, उसे बरकरार रखना ही होगा. 

इस विवादास्पद विधेयक का सबसे विवादास्पद प्रावधान वो माना जा रहा है जिसके तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सरकार की तरफ से एक नौ सदस्यीय समिति गठित करने का प्रावधान रखा गया है, जिससे सरकार को न्यायाधीशों को नियुक्त करने के लिए ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे यानी न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश नहीं कर सकेंगे. प्रस्तावों का यह कह कर भी विरोध हो रहा है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और इजराइल कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग पड़ जाएगा.

इस प्रस्तावित विधेयक को लेकर समाज के विभिन्न वर्ग जिस तरह से अलग-अलग खानों में बंटते दिख रहे हैं, इस उथल-पुथल को इस बात से समझा जा सकता है कि  नेतन्याहू के नेतृत्व में गठबंधन वाली सरकार के इस प्रस्तावित विधेयक का विरोध करने पर रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया.

गौरतलब है कि न्यायिक बदलावों से जुड़े बिल की पहली रीडिंग को इजराइली संसद नेसेट ने पारित कर दिया था. 21 फरवरी की आधी रात के बाद हुई वोटिंग में सुधारों के पक्ष में 63 वोट पड़े और विरोध में 47 मत पड़े. इसी शोर-शराबे के बीच एक महत्वपूर्ण सम्बद्ध घटनाक्रम में इजराइल की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया जिसके तहत प्रधानमंत्री को या तो स्वयं या कैबिनेट के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा शारीरिक या मानसिक आधार पर पद के अयोग्य माना जा सकता है.

फिलहाल तो नेतन्याहू ने विधेयक पर सर्वसम्मति कायम करने के आश्वासन के साथ एक माह तक विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया है लेकिन देखना होगा कि क्या वे गठबंधन के अपने सभी सहयोगियों को साथ रख कर ऐसे विवास्पद विधेयक वापस लेते हैं, जिसे लेकर भारी जनाक्रोश है, जिसके बारे में लगभग आम राय है कि इससे लोकतंत्र कमजोर होगा, न्यापालिका की स्वतंत्रता बाधित होगी. मामला सिर्फ न्यायपालिका की स्वतंत्रता तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे देश में विभिन्न वर्गों के बीच अलगाव बढ़ रहा है. 

इजराइल के यहूदियों के बीच बढ़ती राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दूरियों जैसे अनेक मुद्दे, राजनयिक मुद्दे, फिलिस्तीन में बढ़ती हिंसा जैसे तमाम मुद्दे फौरन ध्यान चाहते हैं. ऐसे हालात में जरूरी है कि तमाम ऐसे विवादास्पद विधेयक, जिनसे देश बंटता है, उन्हें वापस लिया जाए और ध्यान देश के ज्वलंत मुद्दों के हल पर दिया जाए, जैसा कि विपक्षी नेता यायर लैपिड ने भी कहा है कि देश अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट से जूझ रहा है.

Web Title: People's struggle for democracy in Israel, the fight to keep the judicial system independent

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