रहीस सिंह का ब्लॉगः ड्राइविंग सीट पर बैठने को तैयार बाजवा
By रहीस सिंह | Published: October 14, 2019 02:47 PM2019-10-14T14:47:57+5:302019-10-14T14:47:57+5:30
पाकिस्तान के अंदर एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्चस्तरीय विश्लेषक तक के जेहन में यह बात बैठ चुकी है कि पाकिस्तानी सेना अब इमरान को सत्ता से बेदखल करने की पटकथा लिख रही है और प्रधानमंत्री इमरान खान का काउंटडाउन शुरू हो चुका है.
पिछले दिनों पाकिस्तानी सेना के चीफ कमर जावेद बाजवा ने कुछ देर के लिए अपनी वर्दी उतारी और संभ्रांत नेता की तरह कराची में पाकिस्तान के जगत सेठों की बैठक लेने पहुंच गए. यह बैठक गुपचुप नहीं हुई बल्कि आधिकारिक रूप से संपन्न हुई थी जबकि इससे पहले वे रावलपिंडी में दो बार गुपचुप बैठकें कर चुके थे. इसलिए इस बैठक के बाद यह कयास लगना शुरू हो गया कि क्या यह बैठक इमरान खान के तख्तापलट का ट्रेलर है? क्या पाकिस्तान एक बार फिर अपना पुराना इतिहास दोहराएगा?
पाकिस्तान के अंदर एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्चस्तरीय विश्लेषक तक के जेहन में यह बात बैठ चुकी है कि पाकिस्तानी सेना अब इमरान को सत्ता से बेदखल करने की पटकथा लिख रही है और प्रधानमंत्री इमरान खान का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. अब पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा अपना हुलिया ही नहीं बदल रहे हैं बल्कि मिजाज भी बदल रहे हैं. यह मिजाज इसलिए बदल रहा है, क्योंकि वे एक डिफैक्टो शासक की तरह काम करने लगे हैं यानी वे अब पाकिस्तान की ड्राइ¨वंग सीट पर बैठ चुके हैं.
अगर गौर से देखें तो यह पाकिस्तान में तख्तापलट या सत्ता हस्तांतरण का यह एक नरम तरीका है. ऐसा लगता है कि बाजवा अभी कुछ दिनों तक इमरान खान को मुखौटा बनाए रखना चाहते हैं ताकि लोकप्रिय सरकार को सत्ताच्युत करने का आरोप उन पर न लगे. लेकिन वे जनमत को जानने की कोशिश इन मीटिंगों के जरिये कर रहे हैं, विशेषकर उन वर्गो के जरिए जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पकड़ रखते हैं और बाजार के मर्म को पहचानते हैं. जैसे ही उन्हें यह लगेगा कि इस बिजनेस क्लास के साथ बाजार और बाजार के साथ जनता का मूड बदल गया है, वे इमरान को पूरी तरह से सत्ताच्युत कर देंगे. लेकिन तब तक वे इस नरम तख्तापलट के जरिए ही सत्ता चलाने की युक्ति पर चलेंगे.
अब कुछ सवाल हैं, जिनका उत्तर ढूंढना आवश्यक है. पहला यह कि पाकिस्तान में आखिर बार-बार ऐसा होता क्यों है? दूसरा यह कि बाजवा किस हद तक जा सकते हैं? जहां तक पहले प्रश्न का संबंध है तो इसके लिए पाकिस्तान के लोकतांत्रिक इतिहास को देखना होगा. सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र सही रूप में कभी जड़ें जमा ही नहीं पाया बल्कि वह सेना द्वारा नियंत्रित या गाइडेड ही रहा.
रही बात बाजवा की, कि वे किस हद तक जा सकते हैं तो इसका एक उदाहरण नवाज शरीफ के रूप में देखा जा चुका है. पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा की नियुक्ति नवाज शरीफ द्वारा की गई थी. लेकिन नवाज शरीफ को जेल पहुंचाने में भी बाजवा की ही मुख्य भूमिका रही.