शोभना जैन का ब्लॉग: चीन-रूस धुरी में शामिल होना चाहता है पाक?
By शोभना जैन | Published: February 25, 2022 11:09 AM2022-02-25T11:09:48+5:302022-02-25T11:12:03+5:30
इमरान खान के रूस दौरे का प्रमुख उद्देश्य रूस और पाकिस्तान के बीच गैस पाइप लाइन समझौता करना है। रूस-पाकिस्तान गैस पाइप लाइन समझौता 2015 में हुआ था, लेकिन रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण पाइप लाइन बिछाने का काम लगातार टलता रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमला शुरू किए जाने से पूरी दुनिया हिल गई है। यूक्रेन में युद्ध की आग धधक रही है, अमेरिका और नाटो देश इस भयावह स्थिति को लेकर अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार/विचार और शांति प्रयासों के नए विकल्पों को खोज रहे हैं। रूस अपने पक्ष पर टिका हुआ है। भारत इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से राजनयिक स्तर पर बातचीत के जरिये हल करने पर जोर दे रहा है और लामबंदी से दूर रहकर फिलहाल तटस्थ रवैया अपनाकर स्थिति पर नजर रखे हुए है। ऐसी स्थिति के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान नए समीकरणों की मंशा से या यूं कहें चीन के सहारे से अपने इसी एजेंडे को लेकर रूस की यात्ना पर हैं।
पाकिस्तान के इस रुख पर सवालों का सिलसिला गर्म है कि कभी अमेरिका के पाले में रहने वाला पाकिस्तान क्या आज रूस-चीन धुरी का हिस्सा बन गया है? क्या किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्नी की रूस यात्ना के 22 बरस बाद हो रही इमरान खान की चर्चित रूस यात्ना चीन-रूस धुरी में शामिल होने की जुगत ही है? तो क्या रूस इस क्षेत्न में भारत और पाकिस्तान को लेकर अधिक संतुलित क्षेत्नीय नीति अपना रहा है? वैसे इन गंभीर सवालों के बीच हैरानी भरी एक दिलचस्प बात है कि इमरान खान ने कल रात मास्को पहुंचने पर वहां युद्ध की स्थिति देख किसी उत्साहित बालक की तरह कहा कि ऐसे वक्त वे रूस आकर बहुत रोमांचित हैं।
इमरान खान इस यात्ना से पूर्व कह चुके हैं कि रूस के साथ हमारे द्विपक्षीय रिश्ते हैं और हम इन्हें वाकई मजबूत करना चाहते हैं। लेकिन उनकी असली मंशा तो नजर ही आ रही है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने इमरान खान के इस दौरे को पहले से प्रस्तावित दौरा बताया और कहा कि यह ऊर्जा क्षेत्न और क्षेत्नीय संपर्क में रूस के साथ आगे बढ़ने का अवसर है। ये बात भी अहम है कि यह दौरा ऐसे वक्त हो रहा है जबकि दो दिन पहले ही रूस ने यूक्रेन के रूस समर्थित विद्रोहियों के दबदबे वाले दो इलाके दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्न क्षेत्न के रूप में मान्यता दी। तो इस दौरे से इमरान क्या संदेश देना चाहते हैं, साफ है।
उधर भारत की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने सुरक्षा परिषद में कहा कि यूक्रेन को लेकर इलाके में जो कुछ भी हो रहा है, वह चिंतित करने वाला है। लेकिन भारत ने रूस के फैसले की आलोचना नहीं की थी, भारत के इस रुख का रूस ने स्वागत भी किया। भारत रूस का प्रमुख सहयोगी देश रहा है। लेकिन पिछले अनेक वर्षो में चीन की आक्रामकता के चलते भारत अमेरिका के और निकट आया। इस मौके का फायदा उठाकर यानी विभिन्न कारणों से भारत के अमेरिका के प्रति झुकाव को देखते हुए पाकिस्तान अमेरिका से निकटता के बदले रूस की तरफ बढ़ रहा है और शायद संकेत दे रहा है कि कभी अमेरिका के पाले में रहे पाकिस्तान को अब चीन के साथ रूस जैसा बड़ा दोस्त मिल गया है।
विदेशी मामलों के एक जानकार के अनुसार दरअसल, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब से तनाव के कारण पाकिस्तान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अब रूस की तरफ देख रहा है। रूस को भी अपने गैस और तेल के लिए नए व्यापारिक साड़ोदार की जरूरत है। ऐसे संकेत हैं कि इस दौरान इमरान खान के एजेंडे में कराची से कसौर तक 2.5 अरब डॉलर की लागत वाला प्राकृतिक गैस पाइप लाइन बिछाने का प्रस्ताव भी शामिल है, हालांकि इस पाइप लाइन से रूस की गैस लाए जाने की संभावना नहीं है। लेकिन समझा जाता है कि रूस तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान पाकिस्तान और भारत के बीच 1800 किमी लंबी पाइप लाइन बनाने के लिए इच्छुक है।
इमरान खान के रूस दौरे का प्रमुख उद्देश्य रूस और पाकिस्तान के बीच गैस पाइप लाइन समझौता करना है। रूस-पाकिस्तान गैस पाइप लाइन समझौता 2015 में हुआ था, लेकिन रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण पाइप लाइन बिछाने का काम लगातार टलता रहा है। दरअसल माना जा रहा है कि इमरान खान के रूस दौरे से यूक्रेन संकट के बीच पाकिस्तान अपना पक्ष चुन रहा है या यूं कहें बदलने को आतुर है। पाकिस्तान के यूक्रेन के साथ भी गहरे रिश्ते हैं। राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से पाकिस्तान ने हमेशा ही यूक्रेन के साथ रिश्तों को अहमियत दी है। दोनों देशों के बीच हथियारों और विमानों की कई डील भी हो चुकी है रूस के साथ खुलकर खड़े होने से पाकिस्तान और यूक्रेन के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है।
भारत और रूस के बीच सैन्य और आर्थिक संबंध काफी पुराने हैं। उस पर इमरान खान के रूस दौरे का कोई खास असर पड़ने वाला नहीं दिखाई देता है। रूस भी चाहेगा कि दक्षिण एशिया के पुराने प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को अलग-अलग रखे। यह सही है कि पिछले तीन दशकों में भारत की अमेरिका से नजदीकियां बढ़ी हैं, लेकिन साथ ही रूस भी भारत का भरोसेमंद सामरिक साझेदार होने के साथ ही भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्ति सप्लायर है।
अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों की चेतावनी के बावजूद भारत ने रूस से एस 400 प्रक्षेपास्त्न रक्षा प्रणाली खरीदी और अमेरिका से हमारे रिश्ते भी यथावत बने रहे। युद्ध की काली छाया के बीच खेमों में बंटी वैश्विक महाशक्तियों के बीच यह समय भारत की तटस्थता/संतुलन साधने की डिप्लोमेसी के लिए बड़ी चुनौती वाला समय है। बदलते समीकरणों के बीच भारत को यह भी देखना होगा कि अपने सामरिक साझीदार रूस के साथ उसके कैसे रिश्ते हों, साथ ही अमेरिका और नाटो जैसे गठबंधन पर भी इन रिश्तों की छाया ज्यादा नहीं पड़े। रास्ता टेढ़ा है, लेकिन संतुलन तो बनाना ही होगा।