विजय दर्डा का ब्लॉग: पाकिस्तान के चीफ जस्टिस की दिवाली..!
By विजय दर्डा | Published: November 15, 2021 08:25 AM2021-11-15T08:25:03+5:302021-11-15T08:25:03+5:30
दिवाली समारोह में पहुंच कर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने अपने तेवर सरकार और कट्टरपंथियों को दिखा दिए हैं. दिवाली समारोह में जब वे पहुंचे तो उन्होंने बड़े साफ लहजे में कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म की रक्षा करने का हक है.
पिछले सप्ताह जब हम सब भारत में दिवाली मना रहे थे तब हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में कुछ अकल्पनीय घट रहा था. अकल्पनीय इसलिए क्योंकि पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी मुल्क में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती! वहां के चीफ जस्टिस गुलजार अहमद खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के करक जिले के टेरी गांव में हिंदू संत परमहंसजी महाराज की ऐतिहासिक समाधि पर आयोजित दिवाली समारोह में भाग लेने पहुंच गए थे.
उन्हें पाकिस्तान हिंदू परिषद ने आमंत्रित किया था. किसी लोकतांत्रिक देश में यह सब सहज माना जाता लेकिन पाकिस्तान में कट्टरपंथी इससे असहज हो गए.
चीफ जस्टिस का मंदिर में जाना कट्टरपंथियों के खिलाफ एक बड़ा कदम माना जा रहा है क्योंकि यह वही मंदिर है जिसे एक मौलवी के नेतृत्व में कट्टरपंथियों की भीड़ ने पिछले साल तहस-नहस कर दिया था. दुनिया भर में इसकी व्यापक पैमाने पर आलोचना हुई थी और यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस तरह का व्यवहार क्यों?
सरकार ने भी इस घटना को लेकर चुप्पी साध ली थी लेकिन चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने स्वत: इस घटना का संज्ञान लिया और बड़ा सख्त रुख अपनाया. उन्होंने सरकार को आदेश दिया कि इस मंदिर का फिर से निर्माण कराया जाए और खर्च होने वाले 3.3 करोड़ रुपए उन लोगों से वसूले जाएं जिन्होंने मंदिर पर हमला किया.
सरकार ने पहले तो ढीलेपन की नीति अपनाई लेकिन जीफ जस्टिस के रवैये के कारण उसे झुकना पड़ा और दंगाइयों से वसूली हुई. 109 लोगों की गिरफ्तारी हुई. 92 पुलिस वाले निलंबित किए गए जिनमें वहां के एसपी और डीएसपी भी शामिल थे. यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि जब इमरान खान ने सत्ता संभाली थी तब उन्होंने कहा था कि मंदिरों का वे जीर्णोद्धार कराएंगे और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा होगी. इसके बावजूद मंदिर पर हमला हुआ, इमरान कुछ नहीं कर पाए.
चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा कि यदि हिंदू समुदाय मंदिर का विस्तार करना चाहता है तो कर सकता है, सरकार इसमें मदद करेगी लेकिन सरकार ने तो चुपके से उस गांव के कट्टरपंथियों की यह बात मान ली कि हिंदू समुदाय मंदिर के लिए अब कोई जमीन नहीं खरीदेगा! न कोई बड़ा आयोजन करेगा.
दिवाली समारोह में पहुंच कर चीफ जस्टिस ने अपने तेवर सरकार और कट्टरपंथियों को दिखा दिए हैं. इतना ही नहीं चीफ जस्टिस ने दंगाइयों से वसूली का आदेश देते हुए बहुत बड़ी बात कही थी कि जब तक उनसे वसूली नहीं होगी तब तक वे मंदिर पर हमले करते रहेंगे.
इससे पहले इस मंदिर पर 1997 में भी हमला हुआ था. दिवाली समारोह में जब वे पहुंचे तो उन्होंने बड़े साफ लहजे में कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म की रक्षा करने का हक है. पाकिस्तान का संविधान इस बात की इजाजत देता है. जो संविधान में लिखा है, देश उसी से चल रहा है और हमेशा चलेगा भी! एक हिंदू मंदिर में खड़े होकर चीफ जस्टिस का दिया यह बयान निश्चय ही पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के लिए बड़ा संदेश है.
वहां की सरकार के लिए भी बड़ा संदेश है जो हमेशा ही कट्टरपंथियों के आगे सजदा किए रहती है. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि उन्होंने जो भी किया वह एक जज के रूप में उनका दायित्व था. इससे उन्होंने यह संदेश भी दिया कि मुल्क में न्यायपालिका सबके लिए बराबर है. हर नागरिक के हितों की रक्षा करना न्यायपालिका का दायित्व है.
चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने जो रुख अख्तियार किया है, मैं उसे उनकी दिलेरी के रूप में देखता हूं. यह कितनी बड़ी दिलेरी है कि इमरान खान की सरकार ने जब सैकड़ों बच्चों के हत्यारे तहरीके तालिबान से बातचीत की तो चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री इमरान खान को ही अदालत में हाजिर होने के आदेश दे दिए. चीफ जस्टिस के रुख को मैं इस रूप में भी देखता हूं कि इससे न्यायपालिका पर भरोसा मजबूत होगा.
वहां की सरकार और वहां की स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था इतनी कमजोर हालत में है कि वह कट्टरपंथियों का मुकाबला कर ही नहीं पा रही है. पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता इतनी गंभीर स्थिति में है कि अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो गया है. पाकिस्तान के ही आंकड़े बताते हैं कि हर साल एक अल्पसंख्यक समुदाय की एक हजार से ज्यादा लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है.
कई मामलों में पहले तो उनका अपहरण होता है और बाद में धर्म परिवर्तन की स्वीकारोक्ति के साथ उन्हें न्यायालय में पेश किया जाता है. वहां के न्यायालयों ने इस पर कई बार शंका भी जाहिर की है. दरअसल लड़कियों के माता-पिता डर के कारण कुछ बोल नहीं पाते!
पाकिस्तान के संविधान में मौजूद ईश-निंदा कानून वहां के कट्टरपंथियों के लिए हथियार साबित हो रहा है. किसी पर भी यदि कोई व्यक्ति ईश-निंदा का आरोप लगा दे तो उसके लिए बचना मुश्किल हो जाता है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले 30 साल में 70 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने ईश-निंदा के आरोप में पीट-पीट कर हत्या कर दी. कम से कम 40 ऐसे लोग हैं जो ईश-निंदा के आरोप में मौत का इंतजार कर रहे हैं या फिर आजीवन कारावास में हैं.
यह संख्या शायद और भी होती यदि वहां की उच्च अदालतें सतर्क नहीं होतीं! अमूमन निचली अदालतों में सजा हो ही जाती है लेकिन उच्च अदालतें बहुत से लोगों को बरी करती हैं.
ऐसी स्थिति में क्या यह विश्वास करना चाहिए कि चीफ जस्टिस के कदम से पाकिस्तान में कोई फर्क पड़ेगा? कहना मुश्किल है क्योंकि जो मुल्क धर्म का उपयोग अफीम के रूप में करने लगे वहां बेहतर की उम्मीद अत्यंत कम रह जाती है. उम्मीद बस इतनी करनी चाहिए कि अदालतें कट्टरपंथियों पर नकेल कसती रहें ताकि खामियाजा हमें न भुगतना पड़े. मैं अल्लाहताला से दरख्वास्त करता हूं कि वे चीफ जस्टिस गुलजार अहमद को महफूज रखें.
और हां, एक भारतीय के रूप में मैं अपने पड़ोसी का निश्चय ही भला चाहता हूं क्योंकि एक पुरानी कहावत है कि आप सबकुछ बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते! पड़ोसी को सही राह पर लाने और उसे बेहतर बनाने की जिम्मेदारी हमारी भी है लेकिन पड़ोसी भी तो सुधरने की चाहत रखे..!