नजरियाः बिश्केक में भारत-पाक के बीच फासले और संभावनाएं
By शोभना जैन | Published: June 8, 2019 08:10 AM2019-06-08T08:10:11+5:302019-06-08T08:10:11+5:30
‘एससीओ’ शिखर बैठक अगले सप्ताह 13-14 जून को किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में होने को है, जिसमें प्रधानमंत्नी मोदी हिस्सा लेंगे.
किर्गिस्तान के बिश्केक में अगले हफ्ते शंघाई सहयोग परिषद (एससीओ) की प्रस्तावित शिखर बैठक में प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान के बीच होने वाली किसी द्विपक्षीय बैठक की अटकलों को भारत के विदेश मंत्नालय ने खारिज करते हुए कहा है कि इस शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं के बीच किसी बैठक का कोई कार्यक्रम नहीं है. विदेश मंत्नालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा ‘मेरी जानकारी के अनुसार दोनों नेताओं के बीच किसी मुलाकात की तैयारी नहीं की जा रही है.’
दरअसल, भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे सोहेल अहमद पाकिस्तान के विदेश सचिव नियुक्त किए जाने के बाद जब इसी ईद से ठीक पहले भारत आए तो इस आशय की अटकलों का दौर शुरू हो गया था कि इस शिखर बैठक के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात हो सकती है, उन्हीं तैयारियों के सिलसिले में वे भारत लौटे हैं. लेकिन सोहेल अहमद की यह निजी यात्ना थी तथा वे इस्लामाबाद में नई जिम्म्मेदारी संभालने के बाद अपने परिवार को लेने भारत आए थे.
गौरतलब है कि ‘एससीओ’ शिखर बैठक अगले सप्ताह 13-14 जून को किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में होने को है, जिसमें प्रधानमंत्नी मोदी हिस्सा लेंगे. इमरान खान भी इस मौके पर वहां रहेंगे. दरअसल मोदी सरकार ने कड़े शब्दों में संकेत दिया है कि जब तक पाकिस्तान भारत के खिलाफ सीमा पार के आतंक पर लगाम नहीं लगाता है, उस के साथ समग्र/ व्यापक वार्ता या द्विपक्षीय शिखर बैठक नहीं हो सकती है. यानी बिश्केक में ये फासले बने रहेंगे. हालांकि डिप्लोमेसी में संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं फिर भी इस बार तो कम-से-कम द्विपक्षीय बातचीत की संभावना नहीं है. अलबत्ता बिश्केक में शिखर बैठक के दौरान किसी गलियारे में अचानक दोनों आमने-सामने मिल जाते हैं, तो शिष्टता के नाते ‘दुआ सलाम’ तो हो ही जाता है.
सेना की बैसाखियों के सहारे चुनकर आए इमरान खान की सरकार एक तरफ तो सीमा पार से लगातार भारत के खिलाफ आतंक जारी रखे हुए है और दूसरी तरफ रह रहकर बातचीत की भी पेशकश करती रही है. पाक के साथ पिछले अनुभव को देखते हुए, खास तौर पर पुलवामा और बालाकोट के बाद, इस बार आतंक से निबटने के लिए भारत का रुख कड़ा रहेगा. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने इस बार अपने शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार से हटकर पाकिस्तान सहित दक्षेस नेताओं की बजाय बिम्सटेक नेताओं को आमंत्रित करके पाकिस्तान को साफ संकेत दिया कि ‘पड़ोसी प्रथम’ उसकी नीति रहेगी लेकिन ‘पड़ोसी प्रथम’ का दायरा बढ़ा कर ‘दक्षिण एशिया’ का पड़ोस भी उसकी प्राथमिकता है.