Nepal: क्या ‘राजा’ को फिर मिल पाएगी गद्दी?, नेपाल बड़े संकट के दौर से गुजर रहा... 

By विकास मिश्रा | Updated: April 1, 2025 05:17 IST2025-04-01T05:17:35+5:302025-04-01T05:17:35+5:30

Nepal: राजा के खिलाफ वामपंथी आंदोलन को खड़ा किया. खासकर 1996 के बाद स्थितियां हिंसक होती चली गईं और 2008 में करीब ढाई सौ साल की राजसत्ता को उखाड़ फेंका गया.

Nepal former King Gyanendra Shah king able get throne again govt slashes his security blog Vikas Mishra Nepal is currently going through a major crisis | Nepal: क्या ‘राजा’ को फिर मिल पाएगी गद्दी?, नेपाल बड़े संकट के दौर से गुजर रहा... 

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Highlightsसवाल यह है कि क्या कोई ऐसी स्थिति बन सकती है जिसके कारण ज्ञानेंद्र फिर से गद्दी पर बैठ पाएं?सामान्य तौर पर यह बात जरा मुश्किल लगती है लेकिन यदि ज्ञानेंद्र लोकतांत्रिक रास्ता अपना लें तो?बात खलती रहती थी कि नेपाल राजघराना हमेशा ही भारत की ओर झुका रहता था.

Nepal: नेपाल इस समय बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है. लोग परेशान हैं और हालात ऐसे पैदा हो गए हैं कि जिस राजा की सत्ता को उन्होंने उखाड़ फेंका था, उसी की वापसी को लेकर एक बड़ा वर्ग सड़क पर उतर आया है. लोग कहने लगे हैं कि 16 साल में 13 लोकतांत्रिक सरकारों से बेहतर तो राजा का शासन ही था! तब इतनी बदहाली तो नहीं थी! राजा ज्ञानेंद्र के समर्थकों ने जो प्रदर्शन किया वह हिंसक हो गया और दो लोगों की इसमें जान भी चली गई. अब सवाल यह है कि क्या कोई ऐसी स्थिति बन सकती है जिसके कारण ज्ञानेंद्र फिर से गद्दी पर बैठ पाएं?

सामान्य तौर पर यह बात जरा मुश्किल लगती है लेकिन यदि ज्ञानेंद्र लोकतांत्रिक रास्ता अपना लें तो? इस रास्ते की चर्चा से पहले इस बात को समझिए कि नेपाल बदहाली की ऐसी स्थिति में पहुंचा कैसे? निश्चित ही इसके लिए पूरी तरह से चीन जिम्मेदार है. उसे यह बात खलती रहती थी कि नेपाल राजघराना हमेशा ही भारत की ओर झुका रहता था.

इसीलिए उसने राजा के खिलाफ वामपंथी आंदोलन को खड़ा किया. खासकर 1996 के बाद स्थितियां हिंसक होती चली गईं और 2008 में करीब ढाई सौ साल की राजसत्ता को उखाड़ फेंका गया. चीन ने जानबूझकर दो पार्टियों को हवा दी. एक लेनिनवाद के नाम पर तो दूसरा माओवाद के नाम पर.

चीन की चाहत थी कि चित भी उसकी और पट भी उसकी लेकिन दोनों पार्टियों के नेता खड्ग प्रसाद शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच अहंकार की लड़ाई ऐसी बढ़ी कि चीन की कोई चाल काम न आई. यहां तक कि दोनों पार्टियों के नेताओं को चीन भी बुलाया गया. 2018 में दोनों पार्टियों का विलय करके नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी नाम की पार्टी बनाई गई लेकिन दोनों के झगड़े फिर से उभर आए.

मार्च 2021 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी टूट गई. चीनी राजदूत होउ यांकी की कोई रणनीति काम न आई! अब चीन को यह समझ में आ चुका था कि जब तक ओली और प्रचंड को पीछे धकेलकर चीन समर्थक नए नेताओं को सामने नहीं लाया जाता तब तक उसकी दाल गलने वाली नहीं है.

इसके अलावा चीन को यह बात भी चिंतित करती रही कि जब तक दोनों ही कम्युनिस्ट पार्टियां एक नहीं होंगी तब तक सत्ता में स्थायित्व नहीं आएगा और सत्ता में स्थायित्व नहीं आया तो भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस को तबाह नहीं किया जा सकता. यही कारण है कि चीन ने आम जनता के बीच ओली और प्रचंड की छवि को धूमिल करना शुरू किया.

उन्हें भ्रष्ट और लालची नेता के रूप में प्रचारित किया जाने लगा. जनता पहले से ही परेशान थी. उसे ये बात सही लगी और दोनों की लोकप्रियता समाप्त होने लगी. लेकिन चीन से यहां चूक हो गई. जब तक दोनों दलों में नए नेता अपनी जगह ले पाते तब तक नेपाली कांग्रेस ने सक्रियता बढ़ा दी. राजा ज्ञानेंद्र को महसूस हुआ कि यही वो समय है जब वे अपना प्रभाव दिखा सकते हैं.

राजसत्ता खोने के बाद ज्ञानेंद्र अमूमन कम ही बोलते थे. सार्वजनिक तौर पर कम ही दिखाई देते थे. उनकी सक्रियता ने उनके समर्थकों का मनोबल बढ़ाया और राजशाही की मांग उग्र होने लगी. ऐसा माना जाता है कि इस तरह की मांग करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र का समर्थन प्राप्त है.

मार्च के अंतिम सप्ताह में जो प्रदर्शन हुआ वह हिंसक हो उठा और उसमें दो लोगों की मौत हुई और 70 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी घायल हुए. पुलिस के दमन को प्रदर्शनकारी दोषी ठहरा रहे हैं तो पुलिस का दावा है कि प्रदर्शनकारियों ने उपद्रव मचाया. राजशाही की वापसी के लिए हाल के महीनों में कई प्रदर्शन हुए लेकिन यह प्रदर्शन हिंसक था.

नौ मार्च को ज्ञानेंद्र पोखरा पहुंचे थे जहां उनके भव्य स्वागत के बीच राजशाही के समर्थन में नारे लगे. दिलचस्प बात यह है कि इस भीड़ में एक व्यक्ति के हाथ में ज्ञानेंद्र की तस्वीर के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी एक तस्वीर थी. बस यहीं से कुछ लोगों ने यह आरोप लगाना शुरू कर दिया कि ज्ञानेंद्र को राजसत्ता दिलाने में भारत की भूमिका हो सकती है.

हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि भारत की कोई भूमिका हो सकती है. उत्तर प्रदेश से नेपाल की सीमा लगती है और उस इलाके में योगी आदित्यनाथ काफी लोकप्रिय हैं. वे 2018 में अयोध्या से भगवान राम की बारात लेकर नेपाल के जनकपुर गए भी थे. नेपाल के हिंदुत्व समर्थक योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करते रहे हैं लेकिन एक तस्वीर के कारण ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि भारत ज्ञानेंद्र को सत्ता में देखना चाहता है? लोकतंत्र आने के पहले नेपाल हिंदू राष्ट्र था और पिछले साल नेपाली कांग्रेस ने नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की भी थी. यानी समर्थक मौजूद हैं.

अब चलिए इस बात पर गौर करते हैं कि क्या पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को फिर से राजसत्ता प्राप्त हो सकती है? इस बात की संभावना तो कम ही है कि नेपाल में फिर से राजतंत्र की वापसी होगी लेकिन लोकतंत्र के रास्ते पर चलकर ज्ञानेंद्र फिर से गद्दी पर तो बैठ ही सकते हैं. जिस तरह से उनके पक्ष में माहौल बन रहा है, यदि वे चुनाव लड़ें तो हो सकता है कि नेपाल की संसद में पहुंच जाएं.

उनके समर्थकों की पर्याप्त संख्या भी संसद में यदि हो जाए तो भले ही राजा नहीं लेकिन प्रधानमंत्री के पद पर तो वे पहुंच ही सकते हैं! भारत में राजतंत्र समाप्त हो गया लेकिन उन राजतंत्रों के कई सपूत भारतीय संसद में तो पहुंचने में कायम रहे ही. ऐसा नेपाल में क्यों नहीं हो सकता? फिलहाल इंतजार कीजिए...! राजनीति में सबकुछ संभव है.

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