75 साल बाद परमाणु हमले के सबक, प्रो. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 7, 2020 06:22 PM2020-08-07T18:22:22+5:302020-08-07T18:22:22+5:30

6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर अमेरिका ने परमाणु बमों से हमला किया था. ऐसा माना जाता है कि इस हमले में हिरोशिमा की 3,50,000 की आबादी में से करीब 1,40,000 लोग मारे गए थे.

Lessons of nuclear attack after 75 years Prof. Nripendra Prasad Modi's blog | 75 साल बाद परमाणु हमले के सबक, प्रो. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी का ब्लॉग

जीवित बचे लोगों को परमाणु बम के हमले के बाद शहरों में रेडिएशन और मनोवैज्ञानिक मुश्किलों से गुजरना पड़ा था.

Highlightsशहरों का 80 प्रतिशत हिस्सा इस विस्फोट की चपेट में आया. जैसे नाभिकीय आग का गोला फूटा हो जिसमें लोग, जानवर और पौधे जल गए. लोग उस मनहूस मंजर को याद करते हुए कहते हैं कि मशरूम जैसी एक विशाल आकृति आसमान में दिखी थी और फिर उसने इमारतों को जद में ले लिया. कपड़ों के साथ उनकी चमड़ियां भी साथ-साथ उतरती जाती थीं. इसके तीन दिन बाद नागासाकी ने भी उसी विनाश और दर्द को भोगा.

जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों की तबाही को 75 साल पूरे हो गए हैं.  6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर अमेरिका ने परमाणु बमों से हमला किया था. ऐसा माना जाता है कि इस हमले में हिरोशिमा की 3,50,000 की आबादी में से करीब 1,40,000 लोग मारे गए थे.

दूसरी ओर, नागासाकी में करीब 74,000 लोग मारे गए थे. इन शहरों का 80 प्रतिशत हिस्सा इस विस्फोट की चपेट में आया. जैसे नाभिकीय आग का गोला फूटा हो जिसमें लोग, जानवर और पौधे जल गए. मलबे में तब्दील शहर और लोगों की त्रसदी के बीच मानव सभ्यता को एक नया प्रतीक मिला, परमाणु बम का कुकुरमुत्ते जैसा गुबार.

इस बमबारी ने एशिया में दूसरे विश्व युद्ध को अचानक खत्म कर दिया था. जापान ने 14 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया था. हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु आक्रामकता के पर्याय बन गए हैं. ये दोनों शब्द परमाणु हथियारों को लेकर हमारे मन को खौफ से भर देते हैं.

हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने जो कहर बरपाया था, उसमें भविष्य के लिए सबक भी निहित हैं. उन दोनों अनर्थकारी घटनाओं के कुछ गवाह आज भी जिंदा हैं और वे मौत के उस तांडव की मार्मिक तस्वीरें उकेरते हैं. उसके शिकार लोग उस मनहूस मंजर को याद करते हुए कहते हैं कि मशरूम जैसी एक विशाल आकृति आसमान में दिखी थी और फिर उसने इमारतों को जद में ले लिया.

देखते-देखते पूरा शहर आग की चपेट में था. जलते लोग इधर-उधर भाग रहे थे और अपने झुलसे हुए जिस्म से चिपके कपड़ों को नोच-नोचकर फेंक रहे थे, कपड़ों के साथ उनकी चमड़ियां भी साथ-साथ उतरती जाती थीं. इसके तीन दिन बाद नागासाकी ने भी उसी विनाश और दर्द को भोगा.

इस बमबारी में जीवित बचे लोगों को हिबाकुशा कहा जाता है. जीवित बचे लोगों को परमाणु बम के हमले के बाद शहरों में रेडिएशन और मनोवैज्ञानिक मुश्किलों से गुजरना पड़ा था. इन दोनों शहरों पर बमबारी के जरिए परमाणु आतंक पैदा करने का जो पाप किया गया था, वह आज भी मानवता के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है.

आज जब कई देशों में युद्ध तेजी पकड़ने लगे हैं, तब परमाणु हथियारों से जुड़े सवाल काफी प्रासंगिक हो उठे हैं. इसमें दो राय नहीं कि परमाणु ऊर्जा की खोज आधुनिक विज्ञान की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है लेकिन अगर इसका इस्तेमाल बिना सोचे-समझो किया जाए तो यह पूरी दुनिया के लिए तबाही का कारण बन सकता है. हिरोशिमा और नागासाकी में हुए भीषण विनाश को देखते हुए पूरी दुनिया में परमाणु विज्ञान का उपयोग ऐसे घातक हथियारों के निर्माण के बजाय मानवता के कल्याण के लिए होना चाहिए.

Web Title: Lessons of nuclear attack after 75 years Prof. Nripendra Prasad Modi's blog

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