Israel-Iran Conflict War: रोशनी के पीछे छिपे अंधेरों की चीखें...!

By विजय दर्डा | Published: November 4, 2024 05:17 AM2024-11-04T05:17:07+5:302024-11-04T05:17:07+5:30

israel-iran conflict war: दिवाली मना रहे हैं वर्ना उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचिए जहां पटाखों की जगह बम फूट रहे हैं, मिसाइलें दागी जा रही हैं! मौत का तांडव चल रहा है. लगा कि वो धमाके मेरे भी जेहन के टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं.

israel-iran conflict war screams darkness hidden behind light blog Dr Vijay Darda | Israel-Iran Conflict War: रोशनी के पीछे छिपे अंधेरों की चीखें...!

file photo

Highlightsइजराइल की जंग ने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है.हजारों-हजार लोग घायल हुए हैं. 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को बेघर कर दिया है.

israel-iran conflict war: रोशनी से नहाई दिवाली की रात हम सबके लिए निश्चय ही खुशियों से भरी थी. मिलने वालों का तांता लगा था. सब एक-दूसरे से गले मिल रहे थे. सबका मुंह मीठा कराया जा रहा था. बच्चे चहक रहे थे. आतिशबाजी हो रही थी और पटाखों की आवाज गूंज रही थी. जो स्वजन या मित्र दूर थे, वे स्मार्टफोन पर बधाई दे रहे थे. आपकी तरह ही देर रात तक उन खुशियों से मैं भी सराबोर था. यही होना भी चाहिए. ये त्यौहार हमारी संस्कृति भी हैं और विरासत भी. जिंदगी इन्हीं से गुलजार होती है!  लेकिन रात ढलने के साथ ही मेरा मन कहने लगा कि हमारी तो खुशनसीबी है कि हम दिवाली मना रहे हैं वर्ना उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचिए जहां पटाखों की जगह बम फूट रहे हैं, मिसाइलें दागी जा रही हैं! मौत का तांडव चल रहा है. लगा कि वो धमाके मेरे भी जेहन के टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं.

मुझे युवा कवि अरमान आनंद की कविता ‘लड़ते हुए यूक्रेन के नाम’ की कुछ पंक्तियां याद आ गईं...

अभी-अभी खेत से सब्जियां तोड़कर लौटा ही था कि/ अंग्रेजी भाषा के मैनुअल के साथ/ एक बंदूक थमा दी गई/ और कहा गया कि/ तुम्हें देश के लिए लड़ना है.

अभी तक उसे देश का पेट भरना था/ अब लड़ना है/ काफी देर तक बंदूक को उलट-पलटकर देखता रहा/ उसने देखा कि बंदूक से/ कभी भी आप खेत नहीं जोत सकते/ उसकी गर्भवती पत्नी दरवाजा थामे उसे दूर से देखती रही.

उसने बंदूक को एक तरफ रख दिया/ फिर कुल्हाड़ी उठाई/ उसके हाथ कुल्हाड़ी को जानते थे/ कुल्हाड़ी उसकी भाषा समझती थी/ वह अपनी  पत्नी के पास पहुंचा/ उसे गले लगाया और कहा/ बच्चे को बताना कि उसके पिता ने/ बंदूकवालों पर कुल्हाड़ी चलाई थी/ जहां मेरी लाश गिरे वहां एक चेरी का पेड़ लगा देना!

क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि रूस-यूक्रेन जंग और हमास-हिजबुल्लाह के साथ इजराइल की जंग ने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है और हजारों-हजार लोग घायल हुए हैं. जंग ने 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को बेघर कर दिया है. प्रभावित होने वाले ये वो लोग हैं जिनका जंग के कारणों से कोई लेना-देना नहीं है. ये वो लोग हैं जो शांति के साथ जीना चाहते हैं.

अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, उनका भविष्य बनाना चाहते हैं. वे ईद, क्रिसमस और दिवाली मनाना चाहते हैं. वे भरपेट भोजन और पीने का स्वच्छ पानी चाहते हैं. अकेले यूक्रेन में करीब 14 लाख लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है. वे बेहतर स्वास्थ्य चाहते हैं लेकिन बारूद की गंध इस कदर फैली है कि सांसें घुट रही हैं और हर पल मौत के धमाके सुनाई पड़ रहे हैं.

मां अपने बच्चों के चीथड़े उड़ते देख रही है, अपना सुहाग उजड़ते देख रही है और कभी बच्चे अनाथ हुए जा रहे हैं. आखिर क्यों होती है जंग? क्या हम शांति के साथ नहीं रह सकते? मैं यूनाइटेड नेशन का यह आंकड़ा पढ़कर खौफजदा हो गया कि पिछले दो सौ सालों में तीन करोड़ सत्तर लाख लोग जंग लड़ते हुए मारे गए हैं. इसमें सामान्य नागरिकों, जंग के बाद भूख और बीमारी से मरने वालों की संख्या शामिल नहीं है. अभी जिन जंगों की चर्चाएं रोज होती हैं, उसके अलावा अफ्रीकी देशों और मध्यपूर्व के कई देशों में भी अंदरूनी जंगें चल रही हैं.

अफगानिस्तान की जंग तो हमने देखी ही है और जंग के बाद अफगानिस्तान की दुर्दशा भी देख रहे हैं जहां जिंदगी नरक बन चुकी है. बड़े जंगों की ओर सबकी नजर जाती है लेकिन ये केवल आंकड़ों का विषय तो नहीं हो सकता न! चार दशक से ज्यादा हो गए, हम कश्मीर को लहूलुहान देख रहे हैं. ऐसे में कोई कैसे कहे...कदम कदम बढ़ाए जा...खुशियों के गीत गाए जा!

20 से ज्यादा देश जंग की चपेट में हैं और वहां जो गुट लड़ रहे हैं वे वास्तव में लड़ाए जा रहे हैं क्योंकि दुनिया के ताकतवर देश वहां पसंद की सत्ता चाहते हैं ताकि वे वहां सैन्य अड्डा स्थापित कर सकें और वहां के संसाधनों को हजम कर सकें. मैं किसी देश का नाम नहीं लूंगा लेकिन इतना सवाल जरूर करूंगा कि जंग लड़ने वालों को पैसे से लेकर हथियारों तक की मदद दी जा रही है.

कई संगठन तो इतने मजबूत हैं कि वे जिस देश में हैं, वहां की सरकारी सेना से भी कई गुना ज्यादा ताकतवर हैं. मुझे लगता है कि दुनिया में जो हथियारों के सौदागर हैं वे हमेशा इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि कहीं न कहीं युद्ध चलता रहे. हथियार बिकते रहें! ये सौदागर आतंकी संगठनों तक भी धड़ल्ले से हथियार पहुंचाते हैं.

दुनिया जाए भाड़ में, उन्हें क्या पड़ी! मेरे मन में यह सवाल पैदा होता है कि क्या बारूद के ये कारखाने बंद नहीं हो सकते? जब हथियार नहीं होंगे तो जंग भी नहीं होगी! लेकिन हथियारों की होड़ लगी है! अब तो बुद्ध, महावीर और गांधी का देश भी हथियार बना रहा है. कहने को ये अमन के लिए हथियार है लेकिन है तो हथियार ही न! अजीब स्थिति है! संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था नाकारा और बेकाम हो चुकी है.

हम वसुधैव कुटुम्बकम वाली संस्कृति हैं और पहले के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमन का पैगाम दिया तो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शांति के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. लेकिन मौत के मंजर के बीच सबकी अपनी-अपनी डफली है और सबका अपना-अपना राग है. बातें बड़ी-बड़ी हो रही हैं लेकिन सच यही है कि भयावह जंग में किसी को अंधेरे की चीख सुनाई नहीं दे रही है. जंग में फंसे लोग क्या ईद, क्या क्रिसमस और क्या दिवाली मनाएंगे?

Web Title: israel-iran conflict war screams darkness hidden behind light blog Dr Vijay Darda

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