ब्लॉग: क्यों अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद भारत जारी रखेगा ईरान से कच्चे तेल का आयात, ट्रंप प्रशासन को भी करना पड़ा समझौता
By विकास कुमार | Published: December 3, 2018 05:26 PM2018-12-03T17:26:37+5:302018-12-03T17:26:37+5:30
भारत में करीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष भारत ने ईरान से करीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था।
भारत पूरी दुनिया में कच्चे तेल आयात करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर है और ईरान चीन के बाद भारत को ही सबसे ज्यादा क्रूड आयल का निर्यात करता है। भारत और ईरान के रिश्ते परंपरागत रूप से मजबूत रहे हैं जिसका बड़ा कारण भारत और ईरान की साझा संस्कृति भी रही है। ईरान आज मिडिल-ईस्ट की राजनीति और अमेरिकी तानाशाही का शिकार बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने बराक ओबामा के शासनकाल में हुए ईरान और अमेरिका के न्यूक्लियर डील को रद्द करने के बाद ईरान को सबक सीखाने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
ईरान पर पूर्ण पाबंदी लगाने के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ देशों को ईरान से तेल आयात करने को लेकर छूट दी थी जिसमें भारत भी शामिल है। 5 नवम्बर के बाद अमेरिकी प्रतिबन्ध पूरी तरह से ईरान पर लागू हो चुके हैं और इसका असर दिखना शुरू भी हो चुका है। फ्रांस की ऑटोमोबिल कंपनी रेनॉल्ट और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी 'टोटल' अपने प्रोजेक्ट्स को बंद करने की तैयारी कर चुके हैं।
ईरान पर कितना निर्भर भारत
भारत में करीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष भारत ने ईरान से करीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था। ईरान के पास मौजूद विशाल प्राकृतिक गैस भंडार और भारत में ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरतें भी एक बड़ा फैक्टर है। भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार हैं। एक भारत की ऊर्जा ज़रूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा शिया मुस्लिम भारत में होना। भारत ने हाल ही में ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट को विकसित करने का जिम्मा उठाया है जिससे भारत को अफगानिस्तान पहुंचने के लिए पाकिस्तान जाने की जरुरत नहीं होगी।
हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में भारत ने अपनी मौजूदगी बढ़ाई है जिसके कारण चाबहार पोर्ट सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। ईरान के चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का जवाब बताया जा रहा है जिसे पाकिस्तान चीन की मदद से विकसित कर रहा है। ईरान और भारत के रिश्ते सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
ईरान के तेल व्यापार को हड़पने की होड़
अमेरिका ने ईरान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही ये धमकी दी थी कि वो जब तक ईरान को निचोड़ नहीं लेगा और ईरान एक नए न्यूक्लियर डील को लेकर तैयार नहीं हो जाता तब तक ऐसे ही प्रतिबन्ध जारी रहेंगे। हाल के दिनों में अमेरिका ने भी शेल आयल का उत्पादन बढ़ाया है। सऊदी अरब ने भी ईरान पर प्रतिबन्ध के बाद भारत को आश्वस्त करते हुए कहा था, 'भारत को तेल के आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं होगी।
सऊदी अरब भारत के तेल की जरूरतों को पूरा करेगा'। दरअसल ईरान पर प्रतिबंध के रास्ते अमेरिका और सऊदी अरब भारत की तेल जरूरतों का जिम्मा उठाने को लेकर बेताब दिख रहे थे। भारत ने अमेरिकी सरकार के सामने दो टूक कह दिया था कि ईरान का तेल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है जिसके कारण भारत ईरान से तेल का आयात जारी रखेगा। भारत के तेवर को देखते हुए अमेरिका ने भारत सहित कुछ देशों को ईरान से तेल आयात को लेकर छूट दे दी थी।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान से न्यूक्लियर डील तोड़ने के फैसले को यूरोपीय यूनियन ने खुली आलोचना की थी। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ट्रंप के फैसले के खिलाफ जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया था। बराक ओबामा ने ईरान के साथ 2015 में परमाणु डील पर समझौता किया था। इस समझौते के बाद फ्रांस और जर्मनी ने ईरान से आर्थिक नजदीकियां बढ़ा ली थी।
फ्रांस का रुख
फ्रांस की ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी टोटल ने ईरान में कई प्रोजेक्ट्स की नीव रखी। लेकिन अमेरिकी प्रतिबन्ध के बाद उन्हें अपने प्रोजेक्ट्स बंद पड़े। अमेरिकी प्रतिबंधों को निष्क्रिय करने के लिए जर्मनी और फ्रांस संभावनाओं की तलाश में लगे हुए हैं जिनमें ईरान के साथ बिना डॉलर के व्यापार शामिल है। 2017 में यूरोपीय यूनियन और ईरान के बीच का कूल व्यापार 21 बिलियन यूरो रहा था।
भारत ईरान से कच्चे तेल का जो आयात करता है उसका भुगतान रुपये में करता है। जिसके कारण भारत को ईरान का कच्चा तेल आर्थिक रूप से भी सहूलियत प्रदान करता है। भारत को विदेशी मुद्रा भंडार बचाने का सुनहरा मौका मिल जाता है। ईरान भारतीय मुद्रा में ही बासमती चावल और बड़े पैमाने पर दवाइयों का आयात करता है।
इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर आता है। ईरान का तेल भारत की अर्थव्यवस्था और सामरिक हितों के लिए बहुत जरूरी है जिसका अंदाजा शायद भारत और ईरान दोनों को है।