राजेश बादल का ब्लॉगः पाकिस्तान में संस्कृति पर शतरंजी सियासत
By राजेश बादल | Published: January 16, 2019 05:34 AM2019-01-16T05:34:11+5:302019-01-16T05:34:11+5:30
दरअसल, भारत की कोख से निकले इस मुल्क को लगता है कि यहां की फिल्में, टी.वी. प्रोग्राम और संस्कृति हिंदू धर्म का प्रचार करती हैं और इस्लाम पर आक्रमण कर रही हैं. हर साल वहां हिंदुस्तान की सात-आठ फिल्मों पर बंदिश लग जाती है. बीते आठ-दस साल में भारत की 38 फिल्मों पर रोक लगाई गई.
इमरान खान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. महंगाई, बेरोजगारी, अपराध, औद्योगिक पिछड़ापन और खस्ताहाल आर्थिक स्थिति ने मुल्क में उन्हें फ्लॉप हीरो बना दिया है. कट्टरपंथियों और फौज के बीच पिस रहे इमरान सेना के चंगुल से बाहर आने के लिए छटपटा रहे हैं. परिणाम नहीं दे पाने की हताशा और कुंठा का असर उनकी छवि पर भी पड़ा है. इससे उबरने के लिए उन्होंने वही घिसा-पिटा फॉर्मूला अपनाया है, जो उनके पूर्ववर्ती आजमाया करते थे. भारतीय फिल्मों, टी.वी. धारावाहिकों को इस्लाम विरोधी बताकर उन पर बंदिश लगाने का टोटका अब पुराना पड़ चुका है. भारत के प्रति नफरत को हवा देकर अवाम की भावनाएं भड़काने का कुचक्र अब शायद ही काम आए.
दरअसल, भारत की कोख से निकले इस मुल्क को लगता है कि यहां की फिल्में, टी.वी. प्रोग्राम और संस्कृति हिंदू धर्म का प्रचार करती हैं और इस्लाम पर आक्रमण कर रही हैं. हर साल वहां हिंदुस्तान की सात-आठ फिल्मों पर बंदिश लग जाती है. बीते आठ-दस साल में भारत की 38 फिल्मों पर रोक लगाई गई. उसके कारण भी बड़े अटपटे हैं. पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इससे पाकिस्तानी कल्चर को नुकसान पहुंचता है. पिछले साल ही आठ भारतीय फिल्मों पर रोक लगा दी गई. इनमें - राजी, भाग मिल्खा भाग, रईस, रांझणा, परमाणु, मुल्क, पैडमैन, दंगल, टाइगर जिंदा है, उड़ता पंजाब, ढिशूम, नीरजा, कैलेंडर गल्र्स, हैदर, डर्टी पिक्चर, लादेन और फैंटम जैसी अनेक फिल्में शामिल हैं.
पाकिस्तान की अदालतें और वहां का कट्टरपंथी समाज अक्सर भारत की फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों को लेकर दोहरा चरित्न अख्तियार करता रहा है. जो लोग सड़क पर भारतीय मनोरंजन माध्यमों का विरोध करते हैं, वे अपने घर में छिप-छिप कर हिंदुस्तानी फिल्में देखते हैं. भारतीय फिल्मों के वहां के पढ़े-लिखे समाज में गुप्त शो होते हैं, गोपनीय महफिलों का आयोजन होता है. उनमें भारतीय फिल्मी और गैर फिल्मी गीत, गजलें, लोकगीत, टप्पे और अनेक सूफियाना कलाम पेश किए जाते हैं. कई कई दिन सरकारी कार्यालयों में भारतीय कलाकारों पर चर्चाओं के दौर चलते हैं.
ताजा मामला वहां के टी.वी. मनोरंजन चैनल फिल्माजिया में हिंदुस्तानी कंटेंट दिखाने से जुड़ा है. आपत्ति इस बात पर है कि इस चैनल पर हिंदुस्तानी कंटेंट 65 फीसदी से अधिक चला जाता है. अनेक बार तो यह 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. भारतीय कंटेंट पर चैनल को भरपूर विज्ञापन मिलते हैं और कमाई होती है. हाईकोर्ट की ओर से लगाई गई पाबंदी के विरोध में पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकरण के मुखिया सलीम बेग सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका लेकर पहुंचे थे. उनकी दलील थी कि भारतीय कार्यक्रमों में विशुद्ध मनोरंजन होता है. यह कोई दुष्प्रचार नहीं करता. न ही यह पाकिस्तान की आलोचना करता है. इस पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा कि जो भी हो, इससे पाकिस्तानी संस्कृति को क्षति पहुंचती है. अब इस मामले की सुनवाई फरवरी में होगी.
पाकिस्तान की हुकूमतों को हिंदुस्तान के साथ बिताए अतीत की साझा विरासत से हरदम खतरा बना रहता है. उन्हें आशंका रहती है कि अगर पाकिस्तान का समाज हिंदुस्तान के समाज से घुल-मिल गया ( जो वास्तव में एक ही था ) तो वे किस आधार पर अपनी नफरत की राजनीति करेंगे? इसलिए समय समय पर उन्हें कोई भूत सवार हो जाता है और वे तुगलकी फरमान जारी करती रहती हैं. इमरान खान भी प्रधानमंत्नी बनने के बाद फौज और कट्टरपंथियों की कठपुतली बन कर रह गए हैं.
अपने देश की खस्ता -जर्जर आर्थिक हालत से अवाम का ध्यान बंटाने के लिए कभी कश्मीर कार्ड तो कभी भारत से घृणा की राजनीति खेल रहे हैं. हाल ही में उन्होंने कट्टरपंथियों के दबाव में टी.वी. चैनलों पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी है. अब चैनलों में बेडरूम - दृश्य, प्रेम के अंतरंग दृश्य, विवाहेतर रिश्तों, शराब, ड्रग्स, आधुनिक पहनावे और बोल्ड थीम वाले धारावाहिकों तथा कंटेंट पर कड़ी पाबंदी लगा दी गई है. यहां तक कि वहां के समाज में महिलाओं की बदतर स्थिति और अपने अधिकारों को लेकर उनके संघर्ष दिखाने वाले कथानकों पर बनी फिल्मों और धारावाहिकों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
दो हजार उन्नीस में दाखिल हो चुके विश्व में पाकिस्तानी सोसाइटी पचास बरस पुराने सोच और सिस्टम का मुकाबला कर रही है. एक तरह से विरोधाभास में यह देश जी रहा है. नई पीढ़ी सोशल मीडिया तथा संचार के नए माध्यमों के जरिये नए विश्व के साथ जुड़ रही है तो पुरानी पीढ़ी और हुक्मरान उसकी जाजम खींचना चाहते हैं. यह मुल्क के लिए घातक है. इमरान खान की सरकार को अभी इसका अंदाजा नहीं है. आने वाले दिन इस लिहाज से इमरान सरकार के लिए और कठिन हो सकते हैं.