Taiwan- China: चीन के सामने कैसे टिक पाएगा ताइवान?

By रहीस सिंह | Published: June 14, 2024 11:43 AM2024-06-14T11:43:36+5:302024-06-14T11:44:42+5:30

Taiwan- China: सभी क्षेत्र अमेरिका-यूरोप अथवा चीन के ‘ग्रेट गेम्स’ का शिकार रहे हैं जिसमें रूस, तुर्की, अरब, इजराइल, ईरान यहां तक कि यूक्रेन को भी अलग नहीं रखा जा सकता.

How will Taiwan be able to stand against China? blog Rahees Singh | Taiwan- China: चीन के सामने कैसे टिक पाएगा ताइवान?

सांकेतिक फोटो

Highlightsचीन आड़ी-तिरछी चालें चलता हुआ. प्रभाव केवल प्रशांत क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहेगा.भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और काला सागर तक भी जाएगा.

Taiwan- China:सिद्धांततः अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बराबरी और निष्पक्षता एक मुख्य विषय हो सकता है लेकिन व्यावहारिकता में निष्पक्षता गौण होती है क्योंकि वहां शक्ति की महत्ता होती है. ऐसे उदाहरण प्रथम विश्वयुद्ध से पहले, दोनों विश्वयुद्धों के बीच में और शीत युद्ध काल में पर्याप्त संख्या में देखे जा सकते हैं. शीत युद्ध के बाद की दुनिया विशेषकर मध्यपूर्व, यूरेशिया, दक्षिण-पूर्व अथवा दक्षिण एशिया ऐसे असंतुलनों का शिकार रही है जिसके चलते संघर्ष अथवा युद्ध जैसी स्थितियां दिखीं. ये सभी क्षेत्र अमेरिका-यूरोप अथवा चीन के ‘ग्रेट गेम्स’ का शिकार रहे हैं जिसमें रूस, तुर्की, अरब, इजराइल, ईरान यहां तक कि यूक्रेन को भी अलग नहीं रखा जा सकता. भले ही ये सब ‘बेनिफिट ऑफ डाउट’ के कारण लाभ पाए हों, लेकिन इनकी भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता.

यदि वर्तमान परिदृश्य को देखें तो अमेरिका इस समय थकता हुआ नजर आ रहा है और चीन आड़ी-तिरछी चालें चलता हुआ. चीन एक आर्थिक शक्ति के साथ-साथ एक ऐसी सैन्य ताकत भी है जो प्रशांत क्षेत्र में व्यवस्थागत संतुलन को बिगाड़ सकता है. ऐसा हुआ तो इसका प्रभाव केवल प्रशांत क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहेगा.

बल्कि हिंद महासागर या उससे भी आगे भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और काला सागर तक भी जाएगा. चीन इस समय ताइवान को केंद्र में रखकर प्रशांत महासागर में कुछ ज्यादा ही सक्रिय होता दिख रहा है. इस सक्रियता का दायरा फिलीपींस, वियतनाम, थाइलैंड, ब्रुनेई आदि तक विस्तार ले सकता है.

इस समय अधिक सक्रिय होने का कारण ताइवान में लाई चिंग-ते का राष्ट्रपति चुना जाना है जिन्हें चीन पसंद नहीं करता. ध्यान रहे कि अभी हाल ही में चीन की ईस्टर्न थिएटर कमान ने ताइवान के इर्द-गिर्द एक सैन्य अभ्यास किया था जिसे उसके लिए चीन ने ‘दंड’ करार दिया है. अब सवाल यह उठता है कि चीन जिस तरह से ताइवान पर आंखें तरेरे हुए है.

क्या वह यहीं तक सीमित रहेगा अथवा उसे किसी अंजाम तक ले जाएगा? एक सवाल यह भी है कि यदि भविष्य में कोई ऐसा युद्ध होता है तो एक महादानव (चीन) से एक ‘बौना’ (ताइवान) कैसे मुकाबला कर पाएगा? इस युद्ध अभ्यास में चीनी सेना ने उन इलाकों को प्रभावित किया है जो ताइवान के मुख्य द्वीप और चीन की सीमा के करीब द्वीपों के रूप में फैले हुए हैं.

पहले ऐसा नहीं होता था. इससे यह प्रश्न पैदा होता है कि क्या चीन ताइवान को यह संदेश देना चाहता है कि उसने उसको एक राष्ट्र के अंदर एक राष्ट्र के रूप में जितनी स्वतंत्रता दी है, वह उतना ही स्वतंत्र है, उससे आगे वह नहीं जा सकता? लेकिन ताइवान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लाई चिंग-ते तो ताइवान को लंबे समय से स्वतंत्र राष्ट्र मानते रहे हैं और यह चीन को स्वीकार नहीं है.

उन्होंने पद ग्रहण करने के पश्चात पहले ही भाषण में चीन से कहा था कि ताइवान को राजनीतिक व सैन्य तरीके से वह डराना-धमकाना बंद कर दे और रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) के अस्तित्व की सच्चाई को स्वीकार करे. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि ताइवान अपने संविधान में दर्ज संप्रभुता का मालिक है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) तथा रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) एक दूसरे के मातहत नहीं हैं. जवाब में चीन की तरफ से कहा गया कि राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ताइवान की आजादी हासिल करने को लेकर खतरनाक संकेत दे रहे हैं.

चीन की तरफ से यह भी कहा गया कि उन्होंने ताइवान जलडमरूमध्य के आर-पार टकराव को उकसाने का कार्य किया है. लेकिन क्या वास्तव में ताइवान चीन को उकसा सकता है? और क्या चीन शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना के साथ आगे बढ़ रहा है जो ताइवान के कारण आक्रामक हो सकता है? सच तो यह है कि चीन इस समय दुनिया का सबसे अधिक आक्रामक देश है.

चीन के इस युद्धाभ्यास का प्रमुख पक्ष यह नजर आता है कि चीन ताइवान पर अभी सीधा हमला नहीं करना चाहता लेकिन उसकी ऐसी नाकेबंदी चाहता है जो ताइवानी अर्थव्यवस्था को इस तरह बरबाद कर दे कि ताइवान एक ‘डेड आईलैंड’ में बदल जाए. उन स्थितियों में ताइवान संभवतः टकराव की मुद्रा में आए और चीन इसका फायदा उठाए.

चीन यही तो चाहता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान को लेकर बहुत ही आक्रामक और संकीर्ण नजरिया रखते हैं. वे इसे लेकर किसी भी हद तक जा सकते हैं. ध्यान रहे कि 2023 फरवरी में सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने अमेरिकी कांग्रेस की हाउस ऑफ इंटेलिजेंस कमेटी को बताया था कि शी जिनपिंग ने चीनी सेना को आदेश दिया था कि वह 2027 तक ताइवान पर हमले की तैयारी करे.

अब देखना यह है कि चीन किस तरह के कदम उठाता है? देखना तो यह भी है कि अमेरिका उसकी रणनीति को सफल होने देता है अथवा काउंटर स्ट्रैटेजी अपनाने में सफल होता है. वैसे अमेरिका दक्षिण चीन सागर और उसके आसपास के इलाकों में जिस तरह के युद्धाभ्यास कर रहा है, वे इन्हीं तैयारियों का हिस्सा माने जा सकते हैं लेकिन ये चीन की गतिविधियों को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

अमेरिका को यह मानकर चलना पड़ेगा कि शी जिनपिंग स्कूल टीचर नहीं हैं बल्कि वे दुनिया के सबसे ताकतवर तानाशाह हैं और उनका चीन एक साम्राज्यवादी मानसिकता वाला देश, जिसका सामना ताइवान अकेले नहीं कर सकता. चीन उद्दंड और आक्रामक हो चुका है. इसकी वजह उसकी अर्थव्यवस्था और विशाल सेना तो है ही.

 अमेरिका के अंदर ‘पैन अमेरिकनिज्म’ का टूटता हुआ तिलिस्म भी है. हालांकि ताइवान में एक बहुत बड़ा वर्ग है जो डर नहीं रहा है. वह यह मानता है कि ताइवान के लोग डर नहीं रहे हैं लेकिन दूसरा सच यह भी है कि वे चीन के खिलाफ अकेले खड़े भी नहीं हो सकते. उन्हें दुनिया का साथ चाहिए होगा. देखने वाली बात यह होगी कि अमेरिका सहित शेष दुनिया उनके साथ खड़ी हो पाएगी या नहीं.

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