विजय दर्डा का नजरियाः चीन के कर्ज से कैसे उबर पाएंगे अफ्रीकी देश?

By विजय दर्डा | Published: September 10, 2018 05:25 AM2018-09-10T05:25:07+5:302018-09-10T05:25:07+5:30

सन् 2000 के बाद यानी 18 वर्षो में चीन 136 बिलियन डॉलर यानी लगभग दस लाख करोड़ रुपए का कर्ज अफ्रीकी देशों को बांट चुका है।

How can the African countries recover from China's debt? | विजय दर्डा का नजरियाः चीन के कर्ज से कैसे उबर पाएंगे अफ्रीकी देश?

विजय दर्डा का नजरियाः चीन के कर्ज से कैसे उबर पाएंगे अफ्रीकी देश?

विजय दर्डा

पिछले सप्ताह चीन की राजधानी बीजिंग में हुए ‘फोरम ऑन चाइना-अफ्रीका को-ऑपरेशन’ के सम्मेलन की भारतीय मीडिया में कुछ खास चर्चा देखने को नहीं मिली जबकि यह मामला सीधे तौर पर भारत से जुड़ा हुआ है। अफ्रीकी देशों से भारत के संबंध हमेशा मधुर रहे हैं लेकिन अब इन देशों में चीन का प्रभुत्व करीब-करीब स्थापित हो चुका है। सच कहें तो भारत केवल मूक दर्शक बन कर रह गया है। इस सम्मेलन में अफ्रीका के 50 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया और सबने चीन की तारीफों के पुल भी बांधे। अफ्रीकी यूनियन के चेयर पर्सन और रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे ने तो यहां तक कह दिया कि चीन ने अफ्रीका की हैसियत को समझा है और विकास का अवसर उपलब्ध कराया है। पॉल का भाषण महत्वपूर्ण है क्योंकि वे विदेशी कर्जो के हमेशा खिलाफ रहे हैं। चीन ने उन्हें भी अपना दोस्त  बना लिया।  

सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अफ्रीकी उपमहाद्वीप के देशों को दिए जाने वाले कर्ज में  6000 करोड़ डॉलर यानी 4 लाख 32 हजार करोड़ की राशि और बढ़ाने का वादा किया। करीब इतनी ही राशि पिछले तीन वर्षो में चीन कर्ज के रूप में दे चुका है। दरअसल सन् 2000 के बाद यानी 18 वर्षो में चीन 136 बिलियन डॉलर यानी लगभग दस लाख करोड़ रुपए का कर्ज अफ्रीकी देशों को बांट चुका है। चीन हालांकि यह कहता है कि वह अफ्रीका का विकास करना चाहता है और उसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं है लेकिन चीन की चालाकी को पूरी दुनिया जानती है। चीन बगैर किसी मकसद के इतनी बड़ी राशि का निवेश नहीं कर रहा है। 

सीधे तौर पर उसके दो मकसद साफ नजर आते हैं। पहला तो यह कि यदि 50 अफ्रीकी देश उसके कर्ज में डूबे रहेंगे तो यूनाइटेड नेशन के स्तर पर हर गतिविधि में वे चीन के कहे अनुसार ही चलेंगे। यह स्थिति भारत के लिए खराब होगी क्योंकि यूनाइटेड नेशन में स्थायी सदस्यता के लिए भारत हमेशा ही अफ्रीकी देशों को मददगार मानता रहा है। चीन के इशारे पर ये देश भारत का साथ छोड़ भी सकते हैं। आखिर इनमें से ज्यादातर देशों ने चीन के कहने पर ताइवान से संबंध तोड़ ही लिए हैं! 

चीन का दूसरा बड़ा मकसद है अफ्रीकी उपभोक्ता बाजार पर अपनी पकड़ बनाना। चीन इसमें सफल भी हो रहा है। इथियोपिया के उदाहरण से आप स्थिति को समझ सकते हैं। सन 2000 में इथियोपिया के कुल आयात में निर्यातक के रूप में भारत की हिस्सेदारी 19।1 प्रतिशत थी। चीन की हिस्सेदारी थी 13।1 प्रतिशत। लेकिन 2003 में चीन ने भारत को पीछे छोड़ दिया। 2012 में चीन की हिस्सेदारी  31 प्रतिशत हो चुकी थी। उसके बाद तो इसमें और तेजी से इजाफा हुआ है। भारत की हिस्सेदारी तेजी से घट रही है। अफ्रीकी देश चूंकि बड़ी मात्र में चीन से कर्ज ले रहे हैं इसलिए चीन की शर्ते मानने के अलावा उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं है। चीन जो कर्ज दे रहा है उसका बड़ा हिस्सा उसे वापस हासिल भी हो रहा है। अफ्रीका के 35 से ज्यादा देशों में बांधों, बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे और पुलों सहित अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण चीनी कंपनियां ही कर रही हैं। यानी वहां से चीन कमा भी रहा है। इसे कहते हैं दोनों हाथों में लड्डू! 

अफ्रीका के ज्यादातर देशों के पास अकूत प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं जिनका दोहन तकनीकी कमजोरी की वजह से अभी तक नहीं हो पाया है। चीन यह कोशिश जरूर करेगा कि वह कर्ज के बोझ तले इन देशों को दबाकर उनके संसाधनों पर कब्जा कर ले। ये देश कर्ज की राशि तो क्या ब्याज भी देने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि चीन ने यह दाना डाला है कि जो देश ज्यादा गरीब हैं, उनके कर्ज पर ब्याज की राशि माफ कर दी जाएगी लेकिन कागजों पर इसका कोई जिक्र नहीं है। स्पष्ट है कि अफ्रीकी देश कर्ज नहीं चुका पाएंगे तो चीन के गुलाम बन कर 
रह जाएंगे। 

चीन ने यही खेल पाकिस्तान और बांग्लादेश में खेला है और अब नेपाल में भी खेलने की कोशिश में लगा हुआ है। हालांकि नेपाल फिलहाल चीनी कर्ज में डूबने से बचता रहा है लेकिन भारत ने यदि पहल नहीं की तो वह भी चीन से कर्ज ले ही लेगा क्योंकि बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए उसके पास भी पैसा नहीं है। चीन के पास अकूत पैसा है और वह निवेश में पीछे नहीं हटता। इसके ठीक विपरीत भारत की छवि ऐसी बनती जा रही है कि पड़ोसियों के यहां विभिन्न योजनाओं के लिए हम घोषणा तो कर देते हैं लेकिन उसे पूरा करने में बड़ा वक्त लगाते हैं। दरअसल यह भारत के लिए संभलने का वक्त है। न केवल पड़ोस बल्कि अफ्रीकी देशों से दोस्ती बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण है।

Web Title: How can the African countries recover from China's debt?

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे

टॅग्स :Chinaचीन