डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉगः शारदा पीठ के पुनरुद्धार की जगी उम्मीद
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 27, 2019 10:34 AM2019-03-27T10:34:08+5:302019-03-27T10:34:08+5:30
वैसे तो इस मंदिर का कोई क्रमबद्ध लिखित इतिहास ज्ञात नहीं है कि यह मंदिर कब अस्तित्व में आया किंतु परंपरानुसार ज्ञान की देवी सरस्वती के इस मंदिर को 5000 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है.
डॉ. शिवाकांत बाजपेयी
चुनावी गहमागहमी के बीच एक बड़ी खबर ये आई कि पाकिस्तान करतारपुर साहिब जैसा ही कॉरिडोर शारदापीठ मंदिर की तीर्थयात्ना हेतु हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए बनाने पर सहमत हो गया है. यदि सब कुछ ठीकठाक रहा तो कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ अन्य हिंदू धर्मावलंबियों की भी पिछले लगभग 70 वर्षो से शारदापीठ जाने के लिए गलियारा बनाने की लंबित मांग पूरी हो जाएगी.
वस्तुत: सन 1947 में पाकिस्तान बन जाने के बाद शारदा पीठ की यात्ना कठिन या फिर यूं कहें कि बंद हो गई थी. शारदा पीठ भारतीय नियंत्नण रेखा पर भारत के कुपवाड़ा से तकरीबन 30 किमी दूर तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर स्थित मुजफ्फराबाद से लगभग 145 किमी दूर नीलम नदी के किनारे शारदा गांव में स्थित है जहां अब मंदिर के नाम पर भग्नावशेष ही हैं.
वैसे तो इस मंदिर का कोई क्रमबद्ध लिखित इतिहास ज्ञात नहीं है कि यह मंदिर कब अस्तित्व में आया किंतु परंपरानुसार ज्ञान की देवी सरस्वती के इस मंदिर को 5000 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है. लेकिन उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान मंदिर के पास एक बौद्ध विश्वविद्यालय का जिक्र मिलता है जो शारदा पीठ के रूप में जाना जाता था जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार था और कतिपय विद्वानों ने तो यहीं पर चतुर्थ बौद्ध संगीति के आयोजन का भी उल्लेख किया है.
इसके अतिरिक्त 11वीं सदी में कश्मीर के इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत कल्हणकृत राजतरंगिणी (संस्कृत ग्रंथ) तथा अकबर कालीन अबुलफजल द्वारा लिखी गई आईने अकबरी में भी शारदा मंदिर का महत्वपूर्ण विवरण मिलता है. वैसे भी कश्मीरी पंडितों के लिए शारदा पीठ मंदिर, अमरनाथ, क्षीरभावनी और अनंतनाग स्थित मरतड सूर्य मंदिर की तरह ही आस्था केंद्र रहा है और अनेक कश्मीरी पंडितों की तो यह कुलदेवी के रूप में भी अधिष्ठित हैं.
शारदा पीठ के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शैव संप्रदाय के उन्नायक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए थे और महत्वपूर्ण ज्ञानार्जन किया था. चौदहवीं शताब्दी तक कई बार यह मंदिर प्राकृतिक आपदाओं तथा विदेशी आक्रमणों को ङोलता रहा जिससे इसे काफी क्षति पहुंची.
19वीं सदी में कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह ने आखिरी बार इसका जीर्णोद्धार कराया था. बाद में उपलब्ध मीडिया रिपोर्टो के अनुसार सन 2005 में आए भूकंप में यह मंदिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था किंतु पाकिस्तान में किसी ने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया. अब लगता है कि भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए शारदा पीठ यात्ना करने के लिए गलियारा बनने से इस प्राचीन धरोहर के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में भी जिम्मेदार संस्थाएं ध्यान देंगी जिससे शारदा पीठ के गौरवशाली अतीत से दुनिया पुन: रूबरू हो सकेगी.