ब्लॉग: लोकतंत्र पर अमेरिका का वैश्विक शिखर सम्मेलन सवालों के घेरे में

By शोभना जैन | Published: November 27, 2021 09:53 AM2021-11-27T09:53:07+5:302021-11-27T09:53:07+5:30

अमेरिका ने अगले माह 9-10 तारीख को दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का सम्मान किए जाने के अहम मुद्दे पर विश्व नेताओं के साथ चर्चा करने के लिए ‘लोकतांत्रिक देशों’ का अपनी तरह का पहला वैश्विक शिखर सम्मेलन बुलाया है.

global democracy summit us india china russia | ब्लॉग: लोकतंत्र पर अमेरिका का वैश्विक शिखर सम्मेलन सवालों के घेरे में

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन. (फाइल फोटो)

Highlightsअमेरिका ने ‘लोकतांत्रिक देशों’ का पहला वैश्विक शिखर सम्मेलन बुलाया है.अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सम्मेलन पर इसलिए सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन के लिए निमंत्रित किया गया है.

अमेरिका ने अगले माह 9-10 तारीख को दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का सम्मान किए जाने के अहम मुद्दे पर विश्व नेताओं के साथ चर्चा करने के लिए ‘लोकतांत्रिक देशों’ का अपनी तरह का पहला वैश्विक शिखर सम्मेलन बुलाया है. 

लेकिन यह सम्मेलन आयोजन से पहले ही इसमें निमंत्रित किए गए कुछ देशों और उनके शीर्ष नेताओं के लिए ‘निमंत्रण निर्धारण के पैमाने’ और कुछ ‘बड़े देशों’ को निमंत्रण सूची से बाहर रखे जाने को लेकर सवालों के घेरे में आ गया है. 

अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सम्मेलन पर इसलिए सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं कि इसमें कुछ ऐसे नेताओं को शामिल होने के लिए बुलाया गया है, जिनका अपना रिकॉर्ड मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संदिग्ध माना जाता है. 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत सहित विश्व के 110 देशों को इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रित किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन के लिए निमंत्रित किया गया है और उम्मीद जताई जा रही है कि पीएम मोदी इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा बुलाए गए इस सम्मेलन में अमेरिका ने अपने साथ 36 के आंकड़े के रिश्तों वाले चीन के साथ-साथ ठंडे रिश्तों वाले रूस और नाटो संगठन के अपने निकट सहयोगी तुर्की को इस सम्मेलन के लिए न्यौता नहीं भेजा है. 
इसी तरह दक्षिण एशिया से श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान को सम्मेलन में निमंत्रित नहीं किया जाना भी कुछ हैरानी भरा है. हालांकि इस क्षेत्र से नेपाल को निमंत्रित किया गया है. 

बैठक के लिए अमेरिका ने अपने सहयोगी पाकिस्तान को तो निमंत्रित किया ही है लेकिन अपुष्ट समाचारों के अनुसार तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान, और सैन्य शासन वाले म्यांमार को भी बैठक के लिए न्यौता दिए जाने की संभावना है. 

हालांकि कहा यह जा रहा है कि मकसद है कि वहां मानवाधिकारों और लोकतंत्र की स्थिति पर चर्चा की जा सके. वैसे अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी निमंत्रित देशों की सूची में अभी तक इन दोनों देशों के नाम शामिल नहीं हैं. 

इस शिखर बैठक को लेकर सबसे अहम बात यह है कि इस बैठक के लिए जहां चीन को निमंत्रित नहीं किया गया है, वहीं न केवल उसकी आंख की किरकरी बने, बल्कि उसे अपने देश का अभिन्न अंग मानने वाले ताइवान को निमंत्रित किया, जिससे चीन आगबबूला हो गया है और इसे अमेरिका की ‘बड़ी गलती’ करार दिया है. 

रूस ने भी इस शिखर सम्मेलन के आयोजन की तीव्र आलोचना करते हुए इसे दुनिया को बांटकर अपने लिए समर्थन जुटाने की अमेरिकी चाल बताया है. 

एक तरफ इस सम्मेलन को कुछ विशेषज्ञ चीन और अन्य प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ किलेबंदी और कड़ी किए जाने की कोशिश मान रहे हैं तो इस तरह के सम्मेलन के पक्षधर कह रहे हैं कि अमेरिका दुनिया के ज्यादातर देशों को अपने साथ नीतिगत आधार पर जोड़ना चाहता है. 

इस शिखर बैठक के प्रस्तावित तीन मुख्य चर्चा बिंदुओं में तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ एकजुट होने, भ्रष्टाचार से निबटने और मानवाधिकारों का सम्मान किए जाने के बिंदुओं पर चर्चा किए जाने की बात है लेकिन फिलहाल तो सम्मेलन अपने आयोजन से पहले ही विवादों में उलझ गया है.

इस सम्मेलन में भारत की हिस्सेदारी की बात करें तो भारत लोकतंत्र और मानवाधिकारों को अपने देश का घरेलू मामला मानता है. ऐसे ही कुछ संवेदनशील मुद्दों को लेकर हाल ही में विदेशों में मुखर स्वर उठे लेकिन भारत इन्हें अपने देश का घरेलू मसला मानते हुए किसी बाहरी ताकत द्वारा उसे उठाने को नागवार मानता रहा है. 

जम्मू-कश्मीर की स्थित, चर्चित तीन कृषि कानून, अल्पसंख्यकों के अधिकारों, मानवाधिकारों, धार्मिक असहिष्णुता, नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे कुछ मुद्दों पर अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटिश संसद द्वारा प्रस्ताव पारित करने के प्रयासों को उसने इसी आधार पर खारिज किया. 

विदेशी मामलों के एक जानकार के अनुसार लेकिन इसके साथ ही भारत पड़ोसी देशों के संवेदनशील मुद्दों को उनका आतंरिक मामला मानते हुए वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने पर भी बल देता रहा है. 

मालदीव, श्रीलंका और नेपाल में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर उसने अपनी चिंता जताई और उनके अधिकारों की रक्षा किए जाने की सलाह दी. 

देखना होगा कि पीएम मोदी इस मंच से इन तमाम मुद्दों पर भारत के सरोकारों पर कैसे उठाते हैं, देश के संवेदनशील घरेलू मसलों पर इस विश्व मंच पर क्या कहते हैं, विश्व में ऐसी स्थितियों से सामूहिक तौर पर स्वर उठाने पर भारत की प्रतिबद्धता कैसे दोहराते हैं. 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नाते इस विश्व मंच पर लोकतंत्र की रक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उसकी निजी तथा सामूहिक प्रतिबद्धताओं पर सबका ध्यान रहेगा.

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