राजेश बादल का ब्लॉगः अमेरिका में नस्ली आग आसानी से नहीं बुझेगी

By राजेश बादल | Published: June 3, 2020 06:17 AM2020-06-03T06:17:50+5:302020-06-03T06:17:50+5:30

george floyd: इस हत्याकांड के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक टिप्पणी ने आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने कहा, ‘जब लूट शुरू होती है तो उसके बाद शूट भी शुरू हो जाता है. यही वह कारण है कि मिनीपोलिस में बुधवार की रात एक व्यक्ति को गोली मार दी गई.’ हालांकि अपने इस बयान के बाद वे सफाई की मुद्रा में भी आए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

george floyd protests across the nation, Martin Luther King agitated against racial discrimination | राजेश बादल का ब्लॉगः अमेरिका में नस्ली आग आसानी से नहीं बुझेगी

एक अश्वेत की हत्या के बाद अमेरिका धधक रहा है. (फाइल फोटो)

एक अश्वेत की हत्या के बाद अमेरिका धधक रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को सौ फुट नीचे तहखाने के बंकर में जाना पड़ा, सेना को तैनात करने की चेतावनी देनी पड़ी और पुलिस को घुटनों के बल बैठकर माफी मांगनी पड़ी. इससे पता चलता है कि मामला कितना गंभीर है. संसार के एक बड़े गणतंत्न की अल्पसंख्यक आबादी का गुस्सा इस तरह फूटेगा, इसकी कल्पना खुद सरकार को भी नहीं थी. पुलिस अधिकारी डेरिक शेविन ने जिस तरह जॉर्ज फ्लॉयड की सार्वजनिक हत्या की, उससे स्पष्ट है कि अमेरिकी पुलिस अश्वेतों के मामले में किसी मानवाधिकार कानून की चिंता नहीं करती. समय-समय पर वहां नस्ली हिंसा की वारदातें होती रहती हैं. इसके बावजूद अश्वेतों ने कभी इतना गंभीर आक्रोश नहीं दिखाया. पहली बार पीड़ित समुदाय की भड़ास निकली है. जाहिर है कि नाराजगी अरसे से खदबदा रही थी. इसलिए अनेक शहरों में भड़की हिंसा को समझने के लिए बारीक पड़ताल आवश्यक है.

करीब ढाई सौ साल तक अमेरिका में अफ्रीकी बंदियों और गुलामों के साथ अमानवीय अत्याचार किए गए. उनकी संतानों और एशियाई मूल के लोगों की संख्या आज चार करोड़ के आसपास जा पहुंची है. अनेक पीढ़ियों तक उनके साथ भेदभाव और क्रूर व्यवहार होता रहा. दो शताब्दियों से भी अधिक समय तक उन्हें वोट डालने और बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने का हक नहीं था. इसी तरह एशियाई मूल के निवासियों को अड़सठ बरस पहले ही मतदान का हक मिला. अमेरिका में गोरे लोग अश्वेतों के साथ वैसे ही जुल्म करते थे, जैसे अंग्रेज हिंदुस्तान और अफ्रीका में करते थे. 

अमेरिका के गांधी मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी नस्ली भेदभाव के खिलाफ आंदोलन करते रहे थे. इसी वजह से 4 अप्रैल 1968 को उनकी हत्या कर दी गई थी. हत्या से एक दिन पहले उन्होंने रैली में अश्वेतों की आवाज उठाई थी. उन्होंने कहा था, ‘हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे, जब तक एक नीग्रो पुलिस की बर्बरता का शिकार होता रहेगा. जब तक हमें होटलों और हाईवे से लौटाया जाता रहेगा, हम संतुष्ट नहीं होंगे. जब तक मिसीसिपी के नीग्रो को वोट का हक नहीं मिलता, हम संतुष्ट नहीं होंगे. हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे, जब तक कि न्याय पानी की तरह और सच्चाई नदी की तरह नहीं बहने लगती.’

तब से आज तक भेदभाव का यह सिलसिला जारी है. अमेरिकी पुलिस गोरे नागरिकों की तुलना में अश्वेतों को अधिक सताती है. निहत्थे अश्वेतों की पुलिस के हाथों हत्या का आंकड़ा चौंकाता है. अमेरिकी पुलिस रोज औसतन तीन नागरिक मारती है. इनमें एक अश्वेत होता है. पिछले पांच साल में लगभग पांच हजार नागरिक पुलिस का निशाना बने. इनमें से डेढ़ हजार के आसपास अश्वेत नागरिक थे. इसी बरस पांच महीने में आधा दर्जन अश्वेत अपनी जान गंवा चुके हैं. अश्वेतों के अनेक संगठन इसी क्रूरता के विरोध में बने. लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह रही. अब वे खुलकर कह रहे हैं ‘हम मरना नहीं चाहते.’

अश्वेतों को ग्यारह साल पहले बड़ी उम्मीद बंधी थी, जब बराक ओबामा पहले अफ्रीकी-अमेरिकी अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर चुने गए. आठ साल वे राष्ट्रपति रहे. इस दौरान वे शिखर स्तर से कोई क्रांतिकारी परिवर्तन तो नहीं कर सके, मगर अश्वेत उनके राज में सुरक्षित होने का अहसास पाले रहे. स्थानीय स्तर पर नस्लभेद और हिंसा में उल्लेखनीय बंदिश नहीं लगी. फिर भी उस दौर को अश्वेत अच्छे कार्यकाल के रूप में याद करते हैं. बराक ओबामा ने पद से हटने के बाद अश्वेतों के लिए बोलना शुरू किया है. फ्लॉयड की हत्या के बाद वे फूट-फूट कर रोए. उन्होंने कहा कि इस वीडियो ने मुङो तोड़कर रख दिया. यह दुखद है और 2020 के अमेरिका में यह नहीं होना चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे में बराबरी के अधिकारों और समानता की बात करना बेमानी है.

दरअसल इस हत्याकांड के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक टिप्पणी ने आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने कहा, ‘जब लूट शुरू होती है तो उसके बाद शूट भी शुरू हो जाता है. यही वह कारण है कि मिनीपोलिस में बुधवार की रात एक व्यक्ति को गोली मार दी गई.’ हालांकि अपने इस बयान के बाद वे सफाई की मुद्रा में भी आए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बयान के बाद कई नगरों में हिंसा-आगजनी भड़क उठी और कफ्यरू लगाना पड़ा. वर्तमान घटनाक्रम के पीछे ट्रम्प का यह रवैया भी है. परदे के पीछे इसकी वजह सियासी है. इस साल होने वाले चुनाव में ट्रम्प दूसरी पारी का सपना देख रहे हैं. किंतु आर्थिक अराजकता, बेरोजगारी, अफगानिस्तान से फौज वापस बुलाने का फुस्स होता तालिबान समझौता, कोरोना से निपटने में नाकामी, चीन से बिगड़ते रिश्ते और यूरोप के मित्न देशों से दोस्ती पर पाला पड़ जाने से उनकी किरकिरी हुई है. अश्वेतों का समर्थन ट्रम्प के डेमोक्रेट विरोधी उम्मीदवार जो बिडेन को है. बराक ओबामा भी जो बिडेन का समर्थन कर रहे हैं. जो बिडेन बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति रह चुके हैं. डोनाल्ड ट्रम्प के अश्वेतों से खफा होने का एक कारण यह भी है. लब्बोलुआब यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव होने तक सामान्य स्थिति बहाल होना कठिन है.

Web Title: george floyd protests across the nation, Martin Luther King agitated against racial discrimination

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