रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों पर भाषाई शिकंजा कसने की रणनीति पर चल रहा चीन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 23, 2019 06:42 AM2019-06-23T06:42:50+5:302019-06-23T06:42:50+5:30

आज भूटान को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल हो चुके हैं. भारत के लिए यह डिप्लोमेटिक शॉक है.

China OBOR is a Diplomatic shock for India, Mandarin is now compulsory language in Nepal | रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों पर भाषाई शिकंजा कसने की रणनीति पर चल रहा चीन

रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों पर भाषाई शिकंजा कसने की रणनीति पर चल रहा चीन

नेपाल के एक अखबार ने यह खबर प्रकाशित की है कि काठमांडू घाटी, पोखरा, धूलिखेल और देश के अन्य भागों में कुछ संभ्रांत स्कूलों में मंडारिन (चीनी भाषा) को अनिवार्य विषय के रूप में जोड़ा गया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल के करिकुलम डेवलपमेंट सेंटर यानी सरकारी शिक्षा विभाग को स्कूलों के इस कदम के बारे में मालूम ही नहीं है जबकि यही सेंटर स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम को डिजाइन करता है.

नेपाल में मंडारिन अनिवार्य 

अखबार ने यह भी लिखा है कि इन निजी स्कूलों ने चीनी दूतावास द्वारा मुफ्त में शिक्षक उपलब्ध कराए जाने के कारण इस तरह का निर्णय लिया गया है. अब प्रश्न यह उठता है कि क्या चीन नेपाल में इतना ताकतवर हो चुका है कि निजी संस्थाएं अब नेपाल सरकार के बजाय चीनी दूतावास के प्रभाव में आकर काम करने लगी हैं?  दूसरा प्रश्न यह है कि क्या नेपाल अब चीन के प्रभाव के आगे इतना बौना हो चुका है कि नेपाल में चीनी दूतावास बिना सरकार की सहमति के ऐसे निर्णय ले सके और उनका अनुपालन भी करा दे?

तीसरा प्रश्न यह है कि क्या भारत को भी नेपाल में हो रहे इस परिवर्तन को नेपाल की सरकार की तरह हल्के में लेना चाहिए और नेपाल का आंतरिक मामला मानकर चिंतामुक्त हो जाना चाहिए या इसको एक चुनौती मानकर आगे की रणनीति बनानी चाहिए? 

नेपाल के प्रतिष्ठित अखबार हिमालयन टाइम्स के अनुसार नेपाल के संभ्रांत निजी स्कूलों ने करिकुलम डेवलपमेंट सेंटर से पूर्व अनुमति लिए बगैर मंडारिन को पढ़ाना शुरू कर दिया है. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बाकायदा उन संस्थानों और उनके जिम्मेदार पदधारकों के नाम भी छापे हैं, जिन्होंने यह स्वीकार किया है कि मंडारिन को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ा रहे हैं.

उनका यह भी तर्क है कि उन्होंने इस विषय को इसलिए शामिल किया है क्योंकि चीनी दूतावास ने उन्हें मंडारिन भाषा पढ़ाने वाले अध्यापकों को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी ली है. चूंकि इन संस्थानों ने सरकारी शिक्षा विभाग से इसकी अनुमति नहीं ली है इसलिए इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि ये संस्थान चीनी दूतावास के मुकाबले अपने देश के सरकारी तंत्र को महत्व नहीं देते.

भारत के लिए डिप्लोमेटिक शॉक 

इसकी वजह क्या हो सकती है? क्या वहां का करिकुलम डेवलपमेंट सेंटर इतना निष्क्रिय और भ्रष्ट है कि इन संस्थानों को इसकी परवाह नहीं थी या फिर नेपाल के ये संस्थान इस बात को भलीभांति समझ रहे हैं कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चीन के राजनीतिक स्टैब्लिशमेंट के बच्चे की तरह है इसलिए यदि उसे इसकी जानकारी होती भी है तो वह प्रतिरोध करने में समर्थ नहीं होगी?  नेपाल के एलीट संस्थानों द्वारा लिए गए इस निर्णय पर भले ही हम गौर न करें, लेकिन ध्यान रखना होगा कि यह चीन की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है. एक समय भारत नेपाल का प्रमुख सहयोगी हुआ करता था लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं. वर्ष 2015 में भारत की अनौपचारिक नाकेबंदी के कारण नेपाल में जो समस्या उत्पन्न हुई थी उसने नेपाली राजनीति में ही नहीं बल्कि नेपाली जनमानस में भी भारत के खिलाफ एक किस्म के गुस्से को उत्पन्न किया जिसका फायदा चीन ने सहानुभूति दिखाकर उठाया.

वर्ष 2018 में जब के.पी. शर्मा ओली नेपाल के फिर से प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने चीन के साथ कई समझौते किए जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट समझौता. इसी समझौते के बाद उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा था कि उन्होंने भारत द्वारा 2015 में की गई आर्थिक नाकेबंदी का जवाब ढूंढ लिया है. ओली के इस ट्वीट में भारत के लिए एक बड़ा संदेश छिपा था, लेकिन भारत ने इसे शायद गंभीरता से नहीं लिया. जो भी हो, आज भूटान को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल हो चुके हैं. भारत के लिए यह डिप्लोमेटिक शॉक है.

Web Title: China OBOR is a Diplomatic shock for India, Mandarin is now compulsory language in Nepal

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