पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ सकता है चीन का सबसे बड़ा बांध

By पंकज चतुर्वेदी | Published: January 17, 2025 07:01 AM2025-01-17T07:01:54+5:302025-01-17T07:02:31+5:30

नदी के प्राकृतिक प्रवाह में कोई भी महत्वपूर्ण परिवर्तन पानी की उपलब्धता को खतरे में डाल सकता है, विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान

China biggest dam can disturb the ecological balance | पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ सकता है चीन का सबसे बड़ा बांध

पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ सकता है चीन का सबसे बड़ा बांध

अकेले भारत ही नहीं, बांग्लादेश और भूटान भी जब इस बात के लिए चिंतित थे कि चीन तिब्बत के उस हिस्से में दुनिया की  सबसे बड़ी जल-विद्युत परियोजना शुरू कर रहा है, जो भूकंप को लेकर अति संवेदनशील है और ऐसे स्थान पर बने बड़े बांध कभी भी समूचे दक्षिण एशिया में तबाही ला सकते हैं; तभी  तिब्बत की धरती कांप गई. रिक्टर पैमाने पर 6.8 से लेकर 7.1 के कोई तीन झटकों ने लगभग 200 लोगों की जान ली और बड़ा हिस्सा तबाह हो गया.

चीन का प्रस्तावित प्रोजेक्ट इसी क्षेत्र में है. चीन का यह बांध जल सुरक्षा, पारिस्थितिक संतुलन और क्षेत्रीय संबंधों पर कई आशंकाएं पैदा कर रहा है. ब्रह्मपुत्र नद या नदी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जीवन रेखा है, जो सिंचाई, पेयजल और पनबिजली उत्पादन के लिए आवश्यक जल प्रदान करती है. नदी के प्राकृतिक प्रवाह में कोई भी महत्वपूर्ण परिवर्तन पानी की उपलब्धता को खतरे में डाल सकता है, विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान. डर है कि बांध नदी के प्रवाह पर चीन को रणनीतिक नियंत्रण देगा, जिससे तनाव के समय वह प्रभाव डालने में सक्षम हो सकता है.

यह जलविद्युत परियोजना यारलुंग जांग्बो नदी अर्थात ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम के निचले हिस्से में हिमालय की एक विशाल घाटी में बनाई जाएगी. यारलुंग जांग्बो या ब्रह्मपुत्र पर बांध चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और राष्ट्रीय आर्थिक व सामाजिक विकास तथा वर्ष 2035 तक के दीर्घकालिक उद्देश्यों का हिस्सा था, जिसे 2020 में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के एक प्रमुख नीति निकाय द्वारा अपनाया गया था.

इस बांध के कारण भारत सहित कई अन्य देशों में भय का कारण यह भी है कि परियोजना स्थल टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है. तिब्बती पठार, जिसे दुनिया की छत माना जाता है, अक्सर भूकंप की मार झेलता है क्योंकि यह टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर स्थित है.

60 गीगावाॅट  की यह परियोजना  नदी प्रवाह के ऐसे मोड़ पर बनाई जा रही है, जहां से सियांग या दिहांग नदी के रूप में अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले तिब्बती प्लैट्यू पर यारलुंग बेहद ऊंचाई से गिरती है. इस मोड़ के लगभग 50 किलोमीटर के इलाके को इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे पानी 2,000 मीटर की ऊंचाई से गिरे और उसके जरिए पनबिजली पैदा की जा सके. चीन ने अभी तक यारलुंग नदी का इस्तेमाल बिजली बनाने में सबसे कम किया है, महज 0.3 फीसदी.

अब उसने मेडॉग इलाके के पास अपनी भौगोलिक सीमा के लगभग अंतिम छोर पर नदी को रोकने की योजना का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है. इसमें कोई शक नहीं कि इतने विशाल नद को व्यापक स्तर पर बांधने और उसके जल को जलाशय में  रोकने के चलते लंबी अवधि में नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और नदी की जैव विविधता पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ना तय है.

चूंकि भारत और चीन के बीच  में कभी जल को लेकर कोई संधि हुई नहीं है और चीन इस बात के लिए कुख्यात है कि वह वास्तविक आंकड़े और गतिविधियां कभी  पड़ोसी से साझा नहीं करता, ऐसे में दोनों देशों के बीच अविश्वास और गहरा होगा.

Web Title: China biggest dam can disturb the ecological balance

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