Canada-India-USA: अमेरिका को क्यों लग रही कनाडा की हवा?

By रहीस सिंह | Published: October 30, 2024 05:19 AM2024-10-30T05:19:18+5:302024-10-30T05:19:18+5:30

Canada-India-USA:  क्या अमेरिका ने अलकायदा और तालिबान के पोषण और उसके बाद की विसंगतियों से कुछ नहीं सीखा?

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Highlightsअमेरिका ने अलगाववादियों और कट्टरपंथियों को मदद दी.अमेरिका के खिलाफ ही खड़े हो गए.क्या अब कनाडा भी अपने घर में ऐसी ही पौध लगा रहा है?

Canada-India-USA: कनाडा और भारत के बीच रिश्तों के बीच जो खाई बनी है वह सामान्यतया सभी को दिख रही है परंतु अमेरिका पन्नू के मामले में जिस भूमिका में दिख रहा है, उसे किस नजरिया से देखा जाए? कनाडा के प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति के ट्रैप और राजनीतिक रूप से गिरती हुई छवि से निकलने के लिए भारत विरोधी स्वांग कर रहे हैं लेकिन अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है?

क्या अमेरिका ने अलकायदा और तालिबान के पोषण और उसके बाद की विसंगतियों से कुछ नहीं सीखा? ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां अमेरिका ने अलगाववादियों और कट्टरपंथियों को मदद दी लेकिन वे अंततः अमेरिका के खिलाफ ही खड़े हो गए. तो क्या अब कनाडा भी अपने घर में ऐसी ही पौध लगा रहा है?

यह प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण है कि 1897 में मेजर केसर सिंह के कनाडा में बसने से शुरू हुई यह कहानी आज अपने विकृत रूप में कैसे पहुंच गई? एक प्रश्न यह भी है कनाडा में बसे उन सिखों की लिबरल पार्टी और विशेष कर प्रधानमंत्री ट्रूडो से इतनी नजदीकी क्यों है जो वहां बैठकर भारत विरोधी गतिविधियां चलाना चाहते हैं?

उल्लेखनीय है कि 1960 के दशक में वहां जब लिबरल पार्टी की सरकार बनी तो उसने प्रवासी नियमों में बदलाव किए, जिससे वहां भारतवंशियों की आबादी तेजी से बढ़ी और कुछ ही समय में सिख समुदाय वहां चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन गया. यह लिबरल पार्टी से सिखों की नजदीकी का एक कारण हो सकता है. लेकिन अलगावादियों से उनकी नजदीकी की क्या यही एक वजह हो सकती है?

जनसांख्यिकीय दृष्टि से देखें तो सिखों का प्रवासी समुदाय कनाडा की आबादी का 2.1 प्रतिशत है जो कनाडा का एक महत्वपूर्ण मतदाता समूह है और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली भी. यह पहला मौका नहीं है जब ट्रूडो भारत विरोधी नजरिया प्रकट कर रहे हैं. यह सिलसिला बहुत पुराना है. वर्ष 1982 की बात है तब सुरजन सिंह गिल नाम के एक शख्स ने वैंकूवर में ‘खालिस्तान सरकार इन एक्साइल’ का कार्यालय स्थापित किया था. उसने तब कनाडा में ही एक ब्लू खालिस्तानी पासपोर्ट और मुद्रा भी जारी की थी. 23 जून 1985 को एयर इंडिया की फ्लाइट-182 में बम विस्फोट में 329 लोग मारे गए थे.

यह हमला खालिस्तानी चरमपंथी समूह ‘बब्बर खालसा’ से जुड़ा हुआ था. इस घटना ने कनाडा में खालिस्तानी आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव को उजागर किया था. यह बात अब तक पूरी दुनिया जान चुकी है कि कुछ प्रमुख संस्थाएं न केवल कनाडा में बल्कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कुछ अन्य देशों से भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करती हैं.

इन संस्थाओं में पहली है ‘खालिस्तान लिबरेशन फोर्स’, जिसकी स्थापना 1980 के दशक में हुई थी. दूसरी संस्था है ‘खालिस्तान टाइगर फोर्स.’ यह एक उग्रवादी संगठन है जो खालिस्तान आंदोलन से जुड़ा रहा है. भारत सरकार ने 2023 में इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया था. निज्जर इसी संगठन से जुड़ा हुआ था.

तीसरी संस्था है ‘सिख फॉर जस्टिस.’ इसकी स्थापना 2007 में कनाडा में गुरपतवंत सिंह पन्नू ने की थी जो अलग खालिस्तान की वकालत करती है. पन्नू चूंकि अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता रखता है इसलिए इस संस्था का मायाजाल अमेरिका से कनाडा तक पसरा हुआ है जबकि भारत इसकी संस्था को 2019 में ही प्रतिबंधित कर चुका है.

हम 1980 के दशक तक यदि न भी जाएं तो कनाडा सरकार से नई रार 2018 में शुरू हुई, जब उसने ‘टेररिज्म रिस्क’ संबंधी रिपोर्ट से खालिस्तानी चरमपंथ के संदर्भों को हटा दिया था. यह फैसला कनाडा सरकार के सिख मंत्री नवदीप बैंस के दबाव के बाद लिया गया था, जिस पर भारत सरकार ने आलोचना भी की थी.

विशेष बात यह है कि जिस निज्जर को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत विरोधी मुहिम का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया है वे क्या यह बताएंगे कि वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को उनकी भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली द्वारा वांछित लोगों की एक सूची सौंपी गई थी जिसमें हरदीप सिंह निज्जर का नाम भी शामिल था, उस पर उन्होंने क्या कार्रवाई की थी?

एक बात और, क्या निज्जर मामले में कनाडा ‘क्लोज्ड डोर’ और ‘बैक चैनल’ डिप्लोमेसी के माध्यम से भारत के साथ समाधान खोजने की कोशिश नहीं कर सकता था? लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि ट्रूडो ने संसद में पहुंचकर दुनिया भर को यह बताने की कोशिश की कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंट थे.

सवाल है कि यह कनाडाई सरकार की बचकानी हरकत है या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने की साजिश? जस्टिन ट्रूडो ने ‘फाइव आइज’ एलायंस के सदस्य देशों को भी इस विषय पर अपनी ओर लाने की कोशिश की है. यह अलग बात है कि फाइव आइज अलायंस (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के अधिकांश देश कनाडा की तरफ झुकते हुए नहीं दिख रहे हैं लेकिन अमेरिकी प्रशासन जिस तरह से प्रतिक्रिया करता हुआ दिख रहा है, वह समझ से परे है. पिछले दिनों एक खबर आई थी कि अमेरिका के ‘डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस’ ने पाया है कि एक भारतीय अधिकारी पन्नू को एलिमिनेट करने की कोशिश कर रहा था. वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में विकास यादव नाम के एक भारतीय अफसर का नाम लिखा है.

उल्लेखनीय है कि अमेरिका में रहकर पन्नू ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम का संगठन चलाता है जो सिखों के लिए अलग खालिस्तान की मांग करता है. यह अमेरिकी प्रशासन को क्यों नहीं दिखता? अमेरिका भारत को अपना ‘मेजर स्ट्रेटेजिक पार्टनर’ घोषित कर चुका है उसके साथ ‘क्वाड’ जैसे डायलॉग फोरम का निर्माण कर चुका है ताकि इंडो-पैसिफिक में वह अपनी स्थिति मजबूत करने में भारत का सहयोग ले सके. लेकिन अमेरिका में बैठकर कुछ लोग, जिन्होंने अमेरिका की नागरिकता ले रखी है, वे भारत विरोधी गतिविधियां चला रहे हैं. यह मित्रता का कैसा उदाहरण है?

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