वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: श्रीलंका की नौटंकी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 16, 2018 05:40 PM2018-12-16T17:40:04+5:302018-12-16T17:40:04+5:30
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाल श्रीसेना की कितनी दुर्गति हो गई है
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाल श्रीसेना की कितनी दुर्गति हो गई है. श्रीसेना के फैसलों को श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय और संसद, दोनों ने रद्द कर दिया है. अदालत ने भंग की गई संसद को दुबारा जिंदा कर दिया और श्रीसेना द्वारा नियुक्त नए प्रधानमंत्नी महिंदा राजपक्षे को मजबूर कर दिया कि वे अपने पद से इस्तीफा दें.
संसद ने बर्खास्त पूर्व प्रधानमंत्नी रानिल विक्रमसिंघे को दुबारा प्रधानमंत्नी मान लिया. अब राजपक्षे ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी है. अब आशा की जाती है कि श्रीलंका का संवैधानिक संकट समाप्त हो जाना चाहिए. लेकिन श्रीसेना का कुछ पता नहीं, वे क्या कदम उठा लें. उन्होंने इस संकट के दौरान कहा है कि यदि संसद सर्वसम्मति से भी कहे कि वे रानिल के साथ सरकार की गाड़ी आगे बढ़ाएं तो भी वे नहीं बढ़ाएंगे.
संसद में रानिल का बहुमत कई बार सिद्ध होने पर भी उन्होंने 26 अक्तूबर को रानिल को बर्खास्त कर दिया था और संविधान का उल्लंघन करते हुए संसद को भी भंग कर दिया था. श्रीलंका की न्यायपालिका में अगर दम नहीं होता और वह श्रीसेना को सबक नहीं सिखाती तो श्रीलंका में अभी खून की नदियां बहतीं. अब श्रीसेना और राजपक्षे मिलकर अगले साल आम चुनाव लड़ेंगे. चार साल पहले तक राजपक्षे राष्ट्रपति थे और श्रीसेना उनके मंत्नी थे लेकिन दोनों में झगड़ा हुआ और दोनों ने एक-दूसरे के विरुद्ध राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा. उस चुनाव में श्रीसेना जीत गए और राष्ट्रपति बन गए लेकिन उनके दिमाग में सत्ता का गरूर छा गया.
उन्होंने संसद में बहुमत प्राप्त प्रधानमंत्नी के खिलाफ साजिशें करनी शुरू कर दीं. इस समय उनकी छवि चौपट हो चुकी है. अब राजपक्षे और श्रीसेना मिलकर भी लड़ेंगे तो रानिल विक्रमसिंघे को हराना मुश्किल होगा. सच्चाई तो यह है कि श्रीलंका पहले सिंहल-तमिल मुठभेड़ में अपना नुकसान करता रहा, अब सिंहलों के आपसी झगड़ों की वजह से उसकी अर्थव्यवस्था डगमगा गई है. श्रीलंका के आंतरिक मामलों में भारत हस्तक्षेप तो नहीं करेगा लेकिन पड़ोसी देश होने से उसके लिए यह चिंता का विषय तो है ही.