रहीस सिंह का ब्लॉग: रूस और ईरान के साथ भारत की साझेदारी के मायने
By रहीस सिंह | Published: September 12, 2020 03:09 PM2020-09-12T15:09:45+5:302020-09-12T15:09:45+5:30
हम अभी यह तो नहीं कह सकते कि नई दिल्ली-मास्को-तेहरान एक स्ट्रैटेजिक ट्रैंगल का आकार ग्रहण कर रहे हैं लेकिन यह अवश्य कह सकते हैं कि यह बॉन्डिंग एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है.
शंघाई सहयोग संगठन की मास्को समिट में जिस तरह से भारत को स्पेस मिला उससे इस बात का सहज अनुमान लगाया ही जा सकता है कि नई दिल्ली-मास्को की कम्पैटिबिलिटी संस्थापित है. परंतु रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का मास्को से नई दिल्ली रवाना होने के बजाय तेहरान पहुंचना और वहां अपने समकक्षी ब्रिगेडियर जनरल आमिर हाशमी से मुलाकात करना, इसके साथ ही विदेश मंत्री एस जयशंकर का मास्को के लिए रवाना होना लेकिन वाया तेहरान मास्को तक की यात्र संपन्न करना क्या वास्तव में नए रणनीतिक संकेतों की ओर इशारा नहीं करता?
हम अभी यह तो नहीं कह सकते कि नई दिल्ली-मास्को-तेहरान एक स्ट्रैटेजिक ट्रैंगल का आकार ग्रहण कर रहे हैं लेकिन यह अवश्य कह सकते हैं कि यह बॉन्डिंग एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है. गौर से देखें तो भारत और रूस स्ट्रैटेजिक एवं इकोनॉमिक पार्टनर हैं और दोनों देश न्यू वल्र्ड ऑर्डर में बेहतर सहयोगी के रूप में लगभग सभी क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाना चाहते हैं.
जबकि भारत और ईरान सभ्यतागत(सिविलाइजेशनल) संबंधों के साझीदार हैं जिनका इतिहास और संस्कृति एक दूसरे के काफी करीब रही है. तब क्या हम यह मान सकते हैं कि भारत मॉस्को और तेहरान के साथ एक ट्रैंगुलर स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप का निर्माण करता चाहता है?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग संगठन की मास्को बैठक में ही तेहरान की ओर कुछ इशारा कर दिया था. उन्हांेने फारस की खाड़ी के देशों से अपने मतभेदों को परस्पर सम्मान के आधार पर बातचीत से सुलझाने का अनुरोध किया था.
मास्को में उन्होंने फारस की खाड़ी के प्रति भारतीय संवेदनाओं को स्पष्ट करते हुए फारस की खाड़ी से जुड़ी भारत की चिंताओं से भी अवगत कराया था. दरअसल भारत चाहता है कि फारस की खाड़ी क्षेत्र में पिछले कुछ सप्ताह से ईरान, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच जो भी चल रहा है उसका हल बातचीत के आधार पर निकाला जाए अन्यथा इस क्षेत्र का युद्धोन्मादी वातावरण खाड़ी देशों के लिए ही नहीं बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदेह होगा.
मास्को में भारत-चीन के रक्षा मंत्रियों की मुलाकात और दोनों ओर से व्यक्त सक्रियता को देखें तो वहां पर जो वातावरण पनपा उसमें भारत न्यूक्लियस में रहा. दूसरे शब्दों में कहें तो रक्षा मंत्री मास्को से रवाना होते समय आत्मविश्वास से सम्पन्न दिख रहे थे. उनका मास्को से तेहरान रवाना होते समय किया गया ट्वीट इसकी गवाही भी देता है. क्या भारत ने मास्को में ऐसा कोई लाभांश अर्जित किया था, जो रक्षा मंत्री की बॉडी लैंग्वेज से प्रतीत हो रहा था?
दरअसल, मास्को में चीन को अपना संदेश देने में भारत सफल रहा था. रक्षा मंत्री ने अपने चीनी समकक्ष से स्पष्ट कहा था कि चीन को एुअल लाइन ऑफ कंट्रोल (एलएसी) का सही ढंग से सम्मान करना चाहिए और यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश नहीं करनी चाहिए. वहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि पैंगांग झील समेत गतिरोध वाले सभी बिंदुओं से सैनिकों की यथाशीघ्र पूर्ण वापसी के लिए चीन को भारतीय पक्ष के साथ मिलकर काम करना चाहिए.
रक्षा मंत्री ने चीनी समकक्ष से दृढ़तापूर्वक कहा कि भारत अपनी एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ेगा और वह अपनी संप्रभुता और अखंडता की हर कीमत पर रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है. चीनी पक्ष के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने चीन के झूठे दावों का खंडन किया और दुनिया को बताने में सफल रहे कि चीन द्वारा बातचीत के लिए यह उत्सुकता अगस्त के आखिरी हफ्ते में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पैंगांग क्षेत्र में रणनीतिक बिंदुओं और ऊंचाई पर कब्जे के बाद दिखाई गई है.
उन्होंने चीनी रक्षा मंत्री से स्पष्ट कहा कि बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों का जमावड़ा, आक्रामक व्यवहार और यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश जैसे चीन के कदम द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन हैं.
अब बात तेहरान की यात्र और महत्ता की करें. दरअसल इस समय चीन अविश्वास के वैश्विक संकट से गुजर रहा है और वह भारत के साथ संघर्षो को हवा देकर वैश्विक मनोविज्ञान को दूसरी दिशा देना चाहता है. ऐसे में भारत का कर्तव्य बनता है कि वह अपने परंपरागत मित्रों, रणनीतिक साझेदारों और समान उद्देश्यों के साथ काम करने वाले देशों को एक मंच पर लाकर आगे की रणनीति तय करे.
इस दृष्टि से ईरान बेहद महत्वपूर्ण ठहरता है. वर्तमान समय में जब लद्दाख में चीनी सेना की गतिविधियां बढ़ी हुई हैं, बीजिंग-इस्लामाबाद कनेक्ट पूरी तरह से भारतीय हितों के खिलाफ है तब नई दिल्ली-तेहरान कनेक्ट की महत्ता स्वयं ही बढ़ जाती है.