ब्लॉग : हिंसा की आग में झुलसता बलूचिस्तान

By राजेश बादल | Published: September 3, 2024 10:11 AM2024-09-03T10:11:02+5:302024-09-03T10:19:36+5:30

जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में तो बुगती खानदान के सबसे बड़े नेता नवाब अकबर बुगती को सेना ने मार डाला था. सेना ने अपने ही प्रदेश पर रॉकेटों से हमला किया था. तब से बलूचिस्तान आजादी के लिए उबल रहा है.

Blog Balochistan burning in the fire of violence Pakistan | ब्लॉग : हिंसा की आग में झुलसता बलूचिस्तान

हिंसा की आग में झुलसता बलूचिस्तान

Highlightsबीते 77 बरस में न उसने पाकिस्तान को अपनाया और न ही पाकिस्तान ने बलूचिस्तान कोबलूचिस्तान का हालिया घटनाक्रम बड़े क्रूर और हिंसक दौर का सामना कर रहा हैबलूचिस्तान भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान को नहीं मिला था

किसी भी मुल्क के सूबे के लिए यह विकट स्थिति होती है कि वह अपने को देश का हिस्सा ही नहीं माने और वह राष्ट्र भी उसे अपनाए नहीं. दोनों पक्षों के मन में बेगानेपन का भाव है. फिर भी वे साथ रहने के लिए मजबूर हैं. पाकिस्तान का बलूचिस्तान ऐसा ही इलाका है. बीते 77 बरस में न उसने पाकिस्तान को अपनाया और न ही पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को. वह अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए छटपटा रहा है और पाकिस्तान की फौज वहां की जन भावनाओं को बूटों तले रौंद रही है.

बलूचिस्तान का हालिया घटनाक्रम बड़े क्रूर और हिंसक दौर का सामना कर रहा है. बलूचिस्तान भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान को नहीं मिला था. पाकिस्तान ने विभाजन के बाद उसे जबरन हड़पा था. वह भी धोखा देकर. दरअसल स्वतंत्र देश बलूचिस्तान के साथ अंग्रेजों की रक्षा, विदेश नीति और व्यापार की संधि थी. जब गोरे गए तो यह संधि खत्म हो गई और बलूचिस्तान फिर दस अगस्त 1947 को एक स्वतंत्र देश के रूप में आ गया. लेकिन पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के नवाब बुगती को धोखा देकर वही संधि पाकिस्तान से करा ली, जो बरतानवी लोगों के साथ थी. इसके बाद धीरे-धीरे उसने समूचा बलूचिस्तान ही हड़प लिया. पाकिस्तान की इस हरकत के विरोध में वहां के सबसे बड़े सियासी बुगती परिवार की अगुआई में बलोच आजादी का आंदोलन चलाते रहे हैं.

संदर्भ के तौर पर बता दूं कि भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बलोचों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय थीं. जब बांग्लादेश बना तो बलोचों की आशाएं भारत से जगी थीं. पाकिस्तान बांग्लादेश के अलग होने के दर्द से दुखी था तो बलूचिस्तान में खुशियां मनाई जा रही थीं. वहां के नागरिक सड़कों पर इंदिरा गांधी और जनरल मानेक शॉ के पोस्टर लेकर जिंदाबाद के नारे लगाते हुए रैलियां निकाल रहे थे. वे चाहते थे कि भारत बांग्लादेश की तरह हस्तक्षेप करे और उन्हें पाकिस्तान से आजादी दिलाए. इसके बाद बलोची संघर्ष करते रहे और पाकिस्तान उन्हें सूली पर चढ़ाता रहा. 

जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में तो बुगती खानदान के सबसे बड़े नेता नवाब अकबर बुगती को सेना ने मार डाला था. सेना ने अपने ही प्रदेश पर रॉकेटों से हमला किया था. तब से बलूचिस्तान आजादी के लिए उबल रहा है. अलगाववादी पाकिस्तान सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुके हैं. वे अपने साथ अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. वे हक मांगते हैं तो उन्हें गोलियां मिलती हैं. गुजिश्ता 77 साल का अतीत इस बात का गवाह है. बलूची लोग हजारों माटी पुत्रों की बलि चढ़ा चुके हैं. पाकिस्तान की थल सेना ने उन पर टैंकों से हमला किया है. वायुसेना ने उन पर बम बरसाए हैं और ठीक वैसी ही जंग छेड़ी है जैसी इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच जारी है. 

पिछले एक महीने में बलूचिस्तान में जारी हिंसा में सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. मारे गए लोगों में से पंजाब सूबे के रहने वाले और सुरक्षाकर्मी हैं. एक स्वयंसेवी संगठन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि बीते 25 साल में 25 हजार से अधिक बलूची लापता हो गए. आरोप है कि पाकिस्तानी सेना ने उन्हें अपने यातनागृहों में मार डाला है.
लेकिन मौजूदा हिंसा के पीछे चीन भी एक बड़ा कारण है. उसने ग्वादर में बंदरगाह बनाया है. पाकिस्तान ने यह बंदरगाह उसे लीज पर दे दिया है. चूंकि बलूचिस्तान भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रदेश है और वहां खनिज संसाधनों से लेकर गैस तक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, इसलिए चीन वहां तक अपने गलियारे (सीपीईसी) का निर्माण कर रहा है. 

बलूचिस्तान को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. बलूची लोग इसलिए चीन से खफा हैं. दो दशक में चीन के कई इंजीनियर वहां मारे जा चुके हैं. चीनी मजदूरों ने भी जान गंवाई है. इससे चीन पाकिस्तान से नाराज है. उधर, पाकिस्तान जब तब आरोप लगाता रहता है कि बलूचिस्तान में अशांति और हिंसा के पीछे भारत का हाथ है. वह सोचता है कि बांग्लादेश की तरह भारत बलूचिस्तान को भी उससे अलग करा देगा. लेकिन पाकिस्तान यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि बलूचिस्तान में हिंसा के बीज उसके भीतर ही छिपे हुए हैं. वह तो मुल्क के बाशिंदों की रक्षा भी नहीं कर पा रहा है. यह सवाल अब वहां के आम नागरिकों को परेशान कर रहा है कि बलूचिस्तान में मतदाता सुरक्षित नहीं हैं. पंजाब के लोग सुरक्षित नहीं हैं. सिंध के निवासी मारे जा रहे हैं. अफगानिस्तान सीमा से सटे इलाके में लोग अपने को सुरक्षित नहीं मानते और पाक अधिकृत कश्मीर में भी लोग भयभीत हैं तो फिर इस पड़ोसी राष्ट्र में कौन सुरक्षित है?

दूसरी ओर पाकिस्तान के बलूचिस्तान से भारत की निकटता के कारण भी हैं. बलूचिस्तान के लोगों का स्वाभाविक मेलजोल पाकिस्तान की तुलना में भारतीय संस्कृति के ज्यादा निकट है. उस क्षेत्र का इतिहास हिंदू जीवन शैली और बौद्ध धर्म के साथ का रहा है. हड़प्पा सभ्यता के अवशेष आज भी बलूचिस्तान की घाटियों में बिखरे पड़े हैं. कभी यह इलाका कुषाणों के शासन का साक्षी रहा है. चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने राज्य का विस्तार बलूचिस्तान तक किया था और बाद में यहां से होते हुए बौद्ध धर्म का अफगानिस्तान तक गहरा असर देखा जा सकता था. 

आज के अफगानिस्तान और ईरान की सीमाओं तक बुद्ध की शिक्षाओं के निशान पाए जाते हैं. क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है कि हिंदुस्तान के पूरब, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में बौद्ध धर्म के शांति संदेश फैले हुए थे. पर, आज का पाकिस्तान न अपने अतीत के दस्तावेजों को सुरक्षित रखना चाहता है और न चीन ही अपने इतिहास के अध्याय को पढ़ना चाहता है, जब वहां बाकायदा बौद्ध राजधर्म स्थापित किया गया था.

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