वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: तालिबान से विचित्र समझौता

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 7, 2019 07:07 AM2019-09-07T07:07:56+5:302019-09-07T07:07:56+5:30

अफगानिस्तान की शांति से अमेरिका को क्या लेना-देना है. उसने ओसामा बिन लादेन को मारकर न्यूयॉर्कहमले का बदला ले लिया है. अब वह अफगानिस्तान में अरबों डॉलर क्यों बहाए और हर साल अपने दर्जनों फौजियों को क्यों दांव पर लगाए?

Bizarre settlement with Taliban | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: तालिबान से विचित्र समझौता

प्रतीकात्मक तस्वीर

अमेरिका की तरफ से जलमई खलीलजाद अफगानिस्तान के तालिबान नेताओं से पिछले डेढ़-दो साल से जो बात कर रहे थे, वह अब खटाई में पड़ती दिखाई पड़ रही है क्योंकि अमेरिकी विदेश मंत्नी माइक पोंपियो ने समझौते पर दस्तखत करने से मना कर दिया है. हालांकि अगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उस समझौते पर मुहर लगा दी तो पोंपिओ क्या करेंगे? लेकिन सवाल यह है कि ट्रम्प के दस्तखत के बावजूद क्या इस समझौते से अफगानिस्तान में शांति हो जाएगी?

इसका सीधा-सा जवाब यह है कि अफगानिस्तान की शांति से अमेरिका को क्या लेना-देना है. उसने ओसामा बिन लादेन को मारकर न्यूयॉर्कहमले का बदला ले लिया है. अब वह अफगानिस्तान में अरबों डॉलर क्यों बहाए और हर साल अपने दर्जनों फौजियों को क्यों दांव पर लगाए? ट्रम्प का तो चुनावी नारा यही था कि वे अगर राष्ट्रपति बन गए तो अफगानिस्तान से अमेरिका का पिंड छुड़ाकर ही दम लेंगे इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि वे इस समझौते पर दस्तखत कर दें. 

अभी तक हमें क्या, अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और प्रधानमंत्नी डॉ. अब्दुल्ला को ही पता नहीं कि खलीलजाद और तालिबान के बीच किन-किन मुद्दों पर समझौता हुआ है. सुना है कि गनी को समझौते का मूल पाठ अभी तक नहीं दिया गया है लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिकी फौज 5 अफगान अड्डों को खाली करेगी, 135 दिनों में. साढ़े आठ हजार फौजी वापस जाएंगे. यह पता नहीं कि अफगानिस्तान में 28 सितंबर को होनेवाला राष्ट्रपति-चुनाव होगा या नहीं? समझौते के बाद क्या वर्तमान सरकार हटेगी और उसकी जगह तालिबान की इस्लामी अमीरात आ जाएगी? 

यह भी पता नहीं कि तालिबान और गनी सरकार के बीच सीधी बातचीत होगी या नहीं. जो लोग पिछले 18 साल से तालिबान का विरोध कर रहे थे और हामिद करजई और गनी सरकार का साथ दे रहे थे, उनका क्या होगा? काबुल में तालिबान-विरोधी देशों के दूतावासों को क्या अब बंद करना होगा? यदि यह गोलमाल समझौता इसी तरह हो गया तो मानकर चलिए कि अफगानिस्तान एक बार फिर अराजकता का शिकार हो जाएगा.  इससे भारत भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा.

Web Title: Bizarre settlement with Taliban

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