बाइडन के दौर में कैसी रहेगी भारत नीति? शोभना जैन का ब्लॉग
By शोभना जैन | Published: February 13, 2021 11:21 AM2021-02-13T11:21:57+5:302021-02-13T11:24:22+5:30
अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने कहा कि ‘क्वाड’ स्वतंत्र एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत समेत अमेरिका के निकटतम सहयोगियों के साथ मिल कर काम करने की एक मिसाल है। ‘क्वाड’ चार देशों - ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का एक अनौपचारिक सुरक्षा समूह है.
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हाल की पहली टेलीफोन वार्ता से कुछ रोज पहले ही बाइडेन ने नई सरकार की विदेश नीति का व्यापक एजेंडा सार्वजनिक तौर पर साझा करते हुए कहा, ‘हम अपने परंपरागत गठबंधनों के साथ एक बार फिर से जुड़ेंगे. केवल अतीत की नहीं बल्कि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का हल निकालेंगे. बढ़ते अधिनायकवाद को खदेड़ देंगे.’
नए प्रशासन की विदेश नीति संबंधी प्राथमिकताओं वाले इस अहम संबोधन में उन्होंने चीन और रूस पर मानवाधिकारों का हनन करने, लोकतांत्रिक मूल्यों को आघात पहुंचाने तथा बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के चलते अमेरिका और विश्व के सम्मुख खड़ी की गई चुनौतियों के लिए उन दोनों को कस कर आड़े हाथों लिया. लेकिन इस भाषण में भारत का उल्लेख नहीं था, जिस पर भारत के विदेश नीति के जानकारों की निगाहें उठना स्वाभाविक ही है. सवाल ये भी उठे कि चीन की बढ़ती आक्रामकता को प्रमुखता देने की बजाय बाइडेन ने चीन के आर्थिक अतिक्रमण और मानवाधिकार हनन जैसी बातों को प्रमुखता दी.
हालांकि भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्नण रेखा पर विवाद को लेकर अपनी पहली प्रतिक्रि या में भारत के रुख का एक तरह से समर्थन करते हुए कहा- ‘बीजिंग द्वारा पड़ोसियों को डराने-धमकाने के निरंतर प्रयासों से अमेरिका चिंतित है. हिंद-प्रशांत क्षेत्न में साझा समृद्धि, सुरक्षा एवं मूल्यों को आगे ले जाने के लिए हम अपने मित्नों, साङोदारों और सहयोगियों के साथ खड़े हैं.’ बहरहाल, भारत में मानवाधिकारों के कथित हनन विशेष तौर पर कश्मीर की स्थिति को लेकर डेमोक्रेट्स के एक वर्ग की मुखरता रही है.
दरअसल अमेरिका और चीन के बीच चल रहे गहरे तनाव और क्वाड गठबंधन (हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्न के लिए बने भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के गठबंधन) को लेकर खास तौर पर अमेरिका भारत का साथ चाहता है. लेकिन डेमोक्रे टिक पार्टी के कुछ धड़ों विशेष तौर पर वाम रुझान वाले सदस्यों के भारत में मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के मद्देनजर बाइडेन प्रशासन को दबाव ङोलना पड़ सकता है. राहत की बात है कि आव्रजन नियमों को लेकर बाइडेन प्रशासन का रुख ट्रम्प से उलट यानी नरम है जो अमेरिका में रोजगार तलाशने के प्रार्थी भारतीय प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के साथ-साथ अमेरिका के उनकी दक्षता का लाभ लेने के नजरिये से दोनों के ही हित में है.
दरअसल भारत और अमेरिका दोनों ही संस्थागत रूप से जुड़े हुए हैं. दोनों की समान रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था है, सामरिक साङोदारी के साथ-साथ दोनों के बीच आर्थिक और भू-राजनैतिक संबंध हैं. इस संबोधन में भारत का उल्लेख नहीं होने पर एक वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार बाइडेन ने इस संबोधन में कहा था कि वे अमेरिका के प्रगाढ़ मित्नों के साथ सहयोग बढ़ाने और लोकतांत्रिक गठबंधनों के स्वरूप को मजबूत करने की परंपरा दोबारा शुरू कर रहे हैं जिन्हें नजरदांज कर दिया गया था.
ऐसे में संबोधन में भारत का उल्लेख नहीं होने के पीछे ज्यादा अर्थ नहीं ढूंढे जाने चाहिए, भारत अमेरिका का मित्न है न कि गठबंधन सहयोगी. ध्यान इस बात पर दिया जाना चाहिए कि अमेरिका के रक्षा मंत्नी जनरल लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि अमेरिका क्वाड रक्षा संवाद के जरिये तथा अन्य बहुपक्षीय मंचों से भारत का प्रमुख रक्षा सहयोगी का दर्जा व सामरिक हित बढ़ाएगा.
बहरहाल, द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने वाले कदमों के साथ लगता यही है कि बाइडेन के ‘अमेरिका इज बैक’ में भारत के प्रति नीति में ट्रम्प जैसा बड़बोलापन नहीं होगा लेकिन कोई बड़ा बदलाव भी नहीं होगा. हालांकि जलवायु परिवर्तन, नस्लीय संबंधों और आव्रजन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर फैसले ट्रम्प सरकार से उलट होंगे. बाइडेन सरकार के साथ व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे जटिल मुद्दों पर अगर सहमति हो जाती है तो दोनों के बीच रिश्तों में प्रगाढ़ता आने की गुंजाइश है.
पीएम मोदी और बाइडेन की हाल की टेलीफोन वार्ता और विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर की अमेरिकी विदेश मंत्नी सहित अन्य प्रमुख नेताओं की द्विपक्षीय बातचीत ‘सकारात्मक’ मानी जा रही है. मोदी-बाइडेन वार्ता ऐसे वक्त में हुई है जब भारत और अमेरिका की सेनाएं राजस्थान में युद्धाभ्यास कर रही हैं. संबंधों के इन समीकरणों को समङों तो नजर इस बात पर भी रहेगी कि भारत को रूस द्वारा एस-400 प्रक्षेपास्त्न प्रणाली की आपूर्ति पर अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया रहेगी.
ऐसी स्थिति में भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर अमेरिका क्या रुख अख्तियार करता है, क्योंकि अमेरिका कह चुका है कि भारत को भी ऐसे प्रतिबंधों से कोई छूट नहीं है. वैसे यह बात ध्यान देने वाली है कि भारतीय विदेश मंत्नालय ने जहां कुछ अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन का समर्थन किए जाने पर आधिकारिक बयान जारी कर कड़ा विरोध व्यक्त किया, वहीं अमेरिका द्वारा किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन करने और इंटरनेट पर पाबंदी लगाने की आलोचना पर उसने हल्की सी प्रतिक्रि या जताते हुए सिर्फयह कहा कि भारत ने अमेरिका के इस आशय के बयान पर गौर किया है. जाहिर है भारत इसे तूल नहीं देना चाहता था.