काबुल में अमेरिकी फौजें, 2500 जवानों को अफगानिस्तान से वापस बुलवाएगा, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 20, 2020 04:12 PM2020-11-20T16:12:07+5:302020-11-20T16:13:28+5:30
अफगानिस्तान में अमेरिका के एक लाख जवान थे, वहां सिर्फ 2 हजार ही रह जाएं तो उस देश का क्या होगा? 2002 से अभी तक अमेरिका उस देश में 19 बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसा बहा चुका है.
अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने घोषणा की है कि वह अपनी सेना के 2500 जवानों को अफगानिस्तान से वापस बुलवाएगा. यह काम क्रिसमस के पहले ही संपन्न हो जाएगा. जिस अफगानिस्तान में अमेरिका के एक लाख जवान थे, वहां सिर्फ 2 हजार ही रह जाएं तो उस देश का क्या होगा? 2002 से अभी तक अमेरिका उस देश में 19 बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसा बहा चुका है.
ट्रम्प का तर्क है कि अमेरिकी फौजों को काबुल में अब टिकाए रखने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि अब तो सोवियत संघ का कोई खतरा नहीं है, पाकिस्तान से पहले जैसी घनिष्ठता नहीं है और ट्रम्प के अमेरिका को दूसरों की बजाय खुद पर ध्यान देना जरूरी है.
ट्रम्प की तरह ओबामा ने भी अपने चुनाव अभियान के दौरान फौजी वापसी का नारा दिया था लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इस मामले में काफी ढील दे दी थी लेकिन ट्रम्प ने फौजों की वापसी तेज करने के लिए कूटनीतिक तैयारी भी पूरी की थी. उन्होंने जलमई खलीलजाद के जरिए तालिबान और काबुल की गनी सरकार के बीच संवाद कायम करवाया और इस संवाद में भारत और पाकिस्तान को भी जोड़ा गया. माना गया कि काबुल सरकार और तालिबान के बीच समझौता हो गया है लेकिन वह कागज पर ही अटका हुआ है. आए दिन हिंसक घटनाएं होती रहती हैं.
इस समय नाटो देशों के 12 हजार सैनिक अफगानिस्तान में हैं. अफगान फौजियों की संख्या अभी लगभग पौने दो लाख है जबकि उसके जैसे लड़ाकू देश को काबू में रखने के लिए करीब 5 लाख फौजी चाहिए. मैं तो चाहता हूं कि बाइडेन प्रशासन वहां अपने, नाटो और अन्य देशों के 5 लाख फौजी कम से कम दो साल के लिए संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में भिजवा दे तो अफगानिस्तान में पूर्ण शांति कायम हो सकती है.
ट्रम्प को अभी अपना वादा पूरा करने दें (25 दिसंबर तक). 20 जनवरी 2021 को बाइडेन जैसे ही शपथ लें, काबुल में वे अपनी फौजें डटा दें. बाइडेन खुद अमेरिकी फौजों की वापसी के पक्ष में बयान दे चुके हैं लेकिन उनकी वापसी ऐसी होनी चाहिए कि अफगानिस्तान में उनकी दुबारा वापसी न करना पड़े. यदि अफगानिस्तान आतंक का गढ़ बना रहेगा तो अमेरिका सहित भारत जैसे देश भी हिंसा के शिकार होते रहेंगे.