सत्ता परिवर्तन के बाद भी अमेरिका रहेगा भारत का स्वाभाविक दोस्त, रहीस सिंह का ब्लॉग

By रहीस सिंह | Published: November 25, 2020 03:42 PM2020-11-25T15:42:19+5:302020-11-25T15:44:22+5:30

अमेरिकी समाज आज ज्यादा विभाजित है और अमेरिका तरक्की में पिछड़ा हुआ एक देश. दूसरा यह कि अंतरराष्ट्रीय विचारकों को लग रहा है कि विश्वव्यवस्था में शक्ति संतुलन पश्चिम से पूरब की तरफ शिफ्ट करेगा.

America joe biden donald trump remain natural friend India even change power china Rahees Singh's blog | सत्ता परिवर्तन के बाद भी अमेरिका रहेगा भारत का स्वाभाविक दोस्त, रहीस सिंह का ब्लॉग

ऐसे में अहम सवाल यह है कि जो बाइडन अमेरिका को किस रास्ते पर लेकर चलंगे? (file photo)

Highlightsअमेरिकी जनता ने डोनाल्ड ट्रम्प को एक और कार्यकाल के लिए जनादेश नहीं दिया है.अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्रांड की साख धूमिल पड़ चुकी है.चीन अपने मॉडल को बेचने में सफल रहा है.

अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य में अब कुहासा कमोबेश छंट चुका है और यह सुनिश्चित हो चुका है कि अमेरिकी जनता ने डोनाल्ड ट्रम्प को एक और कार्यकाल के लिए जनादेश नहीं दिया है.

जो बाइडनअमेरिका की सत्ता संभालने जा रहे हैं लेकिन यह अमेरिका पहले के मुकाबले बदला हुआ है. एक बदलाव तो वही है जो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा कह रहे हैं अर्थात अमेरिकी समाज आज ज्यादा विभाजित है और अमेरिका तरक्की में पिछड़ा हुआ एक देश. दूसरा यह कि अंतरराष्ट्रीय विचारकों को लग रहा है कि विश्वव्यवस्था में शक्ति संतुलन पश्चिम से पूरब की तरफ शिफ्ट करेगा.

कारण यह है कि अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्रांड की साख धूमिल पड़ चुकी है. तीसरा- दुनिया का ट्रस्ट डेफिसिट बढ़ने और चीनी अर्थव्यवस्था में बन रहे बड़े बुलबुले के संकेतों के बीच भी चीन अपने मॉडल को बेचने में सफल रहा है.

कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से अमेरिका के अलग होने और रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) का नेतृत्व हासिल करने के बाद चीन अपेक्षाकृत अधिक स्पेस बनाने में सफल हो गया है. ऐसे में अहम सवाल यह है कि जो बाइडन अमेरिका को किस रास्ते पर लेकर चलंगे?

सवाल यह भी है कि बाइडेन की रीसेट या फारवर्ड पॉलिसी, जो भी बनती है उसमें भारत के लिए कितनी और किस प्रकार की जगह होगी? जहां तक भारत के साथ रिश्तों की बात है तो राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती को कुछ विचारकों ने असामान्य परिधियों तक देखा और माना, जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत अमेरिका का नेचुरल पार्टनर या मेजर डिफेंस पार्टनर बनने में सफल रहा.

लेकिन ऐसा नहीं कि इस दौर में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति नहीं बनी. ट्रम्प ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को जब एकतरफा निरस्त किया था तो उसके साथ ही भारत पर ईरान से कारोबार को बंद करने संबंधी दबाव भी बनाया था. उस समय ट्रम्प प्रशासन ने जिन 8 देशों को ईरान से अपने कारोबार को बंद करने के लिए अल्टीमेटम दिया था उनमें भारत भी था.

इससे पहले ही भारत को जीएसपी से बाहर कर दिया गया था जिसका लाभ भारत को 1976 से ही मिल रहा था. ट्रम्प प्रशासन द्वारा जो एच-1 बी वीजा को लेकर जो नया नियम जारी किया गया, उसे भी भारतीय प्रोफेशनल्स को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना बताई जा रही है.

भारत अमेरिका के साथ एक अहम व्यापार संधि पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद लगाए बैठा रहा लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प भारत पर अमेरिका की व्यापार नीतियों का गलत फायदा उठाने का आरोप लगाते रहे. यह अलग बात है इस दौर में डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के साथ भारत के बहुत अच्छे रिश्ते नहीं रहे. विशेषकर प्रमिला जयपाल जैसी डेमोक्रेट सांसद ने कश्मीर पर प्रस्ताव पेश किया था जिसमें भारत सरकार से अपील की गई थी कि वो कश्मीर में संचार माध्यम पर से पाबंदियां हटाए, राजनीतिक बंदियों को रिहा करे और सभी कश्मीरियों की धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा करे.

इस पर भारत ने कड़ा ऐतराज भी जताते हुए भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया था. इसलिए इस बात की संभावना है कि जो बाइडन प्रशासन आने वाले समय में चीन और रूस में मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाए और फिर इसे धीरे से भारत का विस्तार दे दे. चूंकि डेमोक्रेट्स का पाकिस्तान के प्रति सॉफ्ट कार्नर रहता है इसलिए इस बात की भी संभावना है कि बाइडेन प्रशासन भारत का साथ पाकिस्तान मसले पर उस तरह से न दे जैसे कि ट्रम्प ने दिया. चीन के संबंध में भी जो बाइडन सॉफ्ट कार्नर लेकर आगे बढ़ सकते हैं.

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि इस बात की संभावना अधिक है कि जो बाइडेन विदेश नीति को ओबामा ट्रैक पर चलाएंगे. ध्यान रहे कि बराक ओबामा अपने कार्यकाल के दौरान जब चीन गए थे तो उन्होंने बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कहा था कि चीन दक्षिण एशिया का नेता है, इसलिए उसे इसका नेतृत्व करना चाहिए जबकि ओबामा जैसे नेता को यह बात अच्छी तरह से मालूम होगी कि चीन दक्षिण एशियाई देश नहीं है.

फिर सवाल यह उठता है कि चीन से दक्षिण एशिया का नेतृत्व करने जैसी बात कहने के पीछे ओबामा की मंशा क्या थी? चीन का तुष्टिकरण या भारत को सबकांटिनेंटल पॉवर के रूप में स्वीकार न करने की मनोग्रंथि? चूंकि अमेरिका और चीन के बीच लव-हेट गेम चलता रहता है इसलिए यह भी हो सकता है कि यह ओबामा का असली प्यार न हो लेकिन ऐसे वक्तव्य भारत के हित में नहीं हैं.

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