व्हाइट हाउस की रेस में भारतवंशियों पर निगाहें, शोभना जैन का ब्लॉग
By शोभना जैन | Published: October 31, 2020 05:11 PM2020-10-31T17:11:41+5:302020-10-31T17:11:41+5:30
तीन नवंबर को मतदान के बाद निर्धारित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार अगले रोज या कुछ रोज बाद अमेरिका और दुनिया भर को यह पता लग जाएगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति निवास, व्हाइट हाउस की चाबी किसे मिलेगी.
कोविड की भयावह छाया और उसकी वजह से ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बीच दुनिया का सबसे शक्तिशाली पद माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रि या शुरू हो चुकी है और अगले हफ्ते मंगलवार यानी तीन नवंबर को मतदान के बाद निर्धारित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार अगले रोज या कुछ रोज बाद अमेरिका और दुनिया भर को यह पता लग जाएगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति निवास, व्हाइट हाउस की चाबी किसे मिलेगी.
यह चुनाव ऐसे वक्त हो रहा है जबकि दुनिया भर में अमेरिका कोविड की मार सबसे ज्यादा ङोल रहा है और दुनिया भर में सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था होने के बावजूद वहां की अर्थव्यवस्था गहरे दबाव से गुजर रही है. वर्तमान राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रे ट पार्टी के उम्मीदवार तथा दो बार उपराष्ट्रपति रह चुके जो बिडेन इस चुनाव में आमने-सामने हैं.
ट्रम्प इन सवालों से घिरे हैं कि कोविड की गंभीर चुनौती से उनका प्रशासन सक्षमता से निपट नहीं पाया, जिसकी वजह से देश गंभीर आर्थिक चुनौतियों से घिर गया. दूसरी तरफ बिडेन और उपराष्ट्रपति पद के लिए भारतीय मूल की उनकी सहयोगी उम्मीदवार कमला हैरिस के लिए ‘ट्रम्प की यही अक्षमता’ मुख्य चुनावी मुद्दा है.
डोनाल्ड ट्रम्प तीखी बयानबाजी से जो बिडेन पर व्यक्तिगत हमला कर रहे हैं. ट्रम्प खुद को सबसे बेहतर राष्ट्रपति बता रहे हैं और बिडेन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को लगातार नाकाम राष्ट्रपति के तौर पर दिखाने में लगे हुए हैं. इन्हीं सवालों के बीच झूल रही है व्हाइट हाउस में अगले चार वर्ष तक रहने वाली हस्ती की दावेदारी. विश्व पटल पर अमेरिका की अहम भूमिका के मद्देनजर भारत सहित दुनिया भर की नजरें उत्सुकता से इस बात पर हैं कि यह हस्ती कौन होगी.
लेकिन इस चुनाव के बाद विश्व कूटनीति पर पड़ने वाले प्रभाव से अलग हट कर अगर चुनावों में ‘अमेरिकी भारतीय वोट बैंक’ की बात करें तो इस बार के राष्ट्रपति चुनाव की एक खासियत यह है कि अमेरिका की राजनीति में भारतवंशियों की बढ़ती सक्रियता के मद्देनजर भारतीय मूल के मतदाताओं पर भी दोनों ही दलों की नजरें लगी हैं.
हाल ही में वहां हुए एक ओपिनियन पोल में यह बात सामने आई है कि भारतीय मूल के मतदाताओं में से 72 प्रतिशत ने बिडेन को वोट देने की मंशा जताई जबकि ट्रम्प प्रशासन द्वारा ‘भारतीय अमेरिकी’ यानी भारतीय मूल के मतदाताओं को लुभाने के प्रयासों के बावजूद ट्रम्प प्रशासन इन लोगों का 22 प्रतिशत ही समर्थन जुटा पाया.
बड़बोलेपन के लिए पहले से ही सुर्खियों में रहे ट्रम्प की संभवत: विदेशियों के लिए विवादास्पद वीजा नीति (जिसका विशेष तौर पर भारत के आईटी प्रोफेशनल्स, आईटी कंपनियों के कारोबार पर बुरा असर पड़ा), भारत के अमेरिका के लिए बड़ा बाजार होने के बावजूद ट्रम्प का आयात शुल्क को लेकर भारत के प्रतिकूल रवैया जैसे कदम भी इस असहजता की कुछ वजहें रही हैं. देखना दिलचस्प होगा कि आखिर अमेरिकियों के साथ-साथ विशेष तौर पर भारतीय मूल के मतदाता अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में किसे अपने अनुकूल मानते हैं.
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाएं तो दरअसल अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने कभी अपनी प्रतिद्वंद्वी रहीं, भारतीय मूल की सीनेटर कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुन कर न केवल एक ऐतिहासिक कदम उठाया है बल्कि अमेरिका के दूसरे सर्वोच्च पद के लिए कमला को उम्मीदवार बना कर बदलते अमेरिका का सूचक भी बना दिया है. इसीलिए माना जा रहा है कि आगामी राष्ट्रपति/ उपराष्ट्रपति चुनाव में निश्चय ही इससे डेमोक्रे ट पार्टी को अफ्रीकी अमेरिकी, भारतीय अमेरिकी, महिलाओं और उदारवादियों का समर्थन पाने में मदद मिल सकती है.
जो बिडेन ने हाल ही में कहा भी कि वे जानते हैं कि कमला के इस पद के लिए नामांकन से भारतीय मूल के लोगों ने बहुत गौरवान्वित महसूस किया है क्योंकि वे जानते हैं कि ये उन सबकी कहानी है, अमेरिका की कहानी है. भारतीय मूल के अमेरिकियों ने बिडेन के साथ कमला को उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में लाने को कैसे लिया, उनके विचारों को संभवत: हाल के इस सर्वेक्षण से समझा जा सकता है जिसमें 49 प्रतिशत अमेरिकी भारतीयों ने कहा कि कमला के साथ आने से उनका उत्साह बिडेन की उम्मीदवारी को लेकर बढ़ गया है.
देखा जाए तो हैरिस का यह चयन खास कर ऐसे वक्त में अहम है जबकि अमेरिका हाल ही में अश्वेतों के खिलाफ रंगभेद के व्यापक जन असंतोष ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के दौर से गुजरा है. न केवल अश्वेत बल्किवहां बसे लैटिन अमेरिकी सहित अन्य नस्ल वाले और खास कर बड़ी तादाद में युवा अमेरिकियों ने भी इस जन-असंतोष, पुलिस ज्यादतियों की घटनाओं से निपटने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कार्यशैली की आलोचना की थी.
‘भारतीय अमेरिकी’ अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा अप्रवासी समूह है. राजनीति में सक्रियता से जुड़े होने के साथ ही अब वह स्थानीय इकाइयों से लेकर कांग्रेस तक में सदस्य के रूप में हिस्सेदारी कर रहे हैं और उनका आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक योगदान काफी प्रभावी माना जाता है.