कालका टू शिमलाः मेरी पहली टॉय ट्रेन यात्रा, ट्रेन हो तो ऐसी
By खबरीलाल जनार्दन | Published: June 10, 2018 02:18 PM2018-06-10T14:18:20+5:302018-06-10T14:18:20+5:30
पहली बार ट्रेन की देरी खली नहीं, बल्कि लगा थोड़ी और देर हो जाए।
रात में सोए नहीं थे। क्योंकि सुबह साढ़े पांच बजे सब्जी मंडी दिल्ली रेलवे से हिमाचल क्वीन पकड़नी थी। आईआरसीटी से जानकारी मिली थी यह हिमाचल क्वीन दिल्ली से कालका जाएगी। सुबह-सुबह मौसम ठंडा होता है। हमने 2S कैटेगरी की टिकट कराई। इस कैटेगरी में दिल्ली से कालका के 100 रुपये टिकट हैं। चेयर की फीलिंग एकदम राजधानी वाली।
इतना पता था कि कालका से कोई टॉय ट्रेन शिमला जाती है। पर कब जाती है, कैसे जाती है, टिकट कहां से मिलेगा, स्टेशन वही होगा या कोई और नहीं पता था। दोपहर करीब साढ़े 11 बजे हम कालका स्टेशन पहुंच गए। पूछताछ काउंटर जाकर पूछा तो बोले हिमाचल क्वीन प्लेटफॉर्म पर खड़ी है। मैंने दोबारा पूछा, क्योंकि मैं अभी-हिमाचल क्वीन से आया था। उन्होंने कहा टॉय ट्रेन का नाम भी हिमाचल क्वीन है।
मैंने टिकट की जानकारी ली तो पता चला टिकट पहले से बुक होते हैं। बस दो डिब्बे जनरल हैं। उनकी टिकट 250 रुपये है। हमने जाकर उन दो डिब्बों की हालत देखी तो उनमें बैठने की जगह नहीं। पहले टॉय ट्रेन देखकर ही उसमें बैठने का मन हो गया। छोटी सी ट्रेन। पटरियां भी मुख्यधारा की ट्रेन से पतलीं। एकदम साफ। दोनों तरफ खिड़की के थोड़ी और नीचे से छत तक पारदर्शी शीशे की दीवार। एकदम शीश महल की तरह। उसमें बैठे लोग बड़े सभ्य। साफ-सुथरे। उनके लगेज भी साफ-सुदर बैग।
असल में इसका नाम ही खिलौना ट्रेन है। इसमें बैठने के बाद एकदम ऐसा ही अहसास होता है। खिलौना। जोर से हिला दो पूरा डिब्बा हिल जाता है। दोनों तरफ हरी पहाड़ियां। और बड़े स्वच्छ, प्रकृति के करीब के छोटे-छोटे रेलवे स्टेशन। किसी एक स्टेशन ठहर जाने के बाद दूर से आती दूसरी टॉय ट्रेन एकदम सांप की तरह पहाड़ों में खोती और फिर नजर आने लगती है।
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गुफाएं आती हैं। उसके अंदर जाते ही कंपार्टमेंट में अंधेरा हो जाता। नये बच्चे चिल्लाते हैं। तब तक जब तक गुफा में ट्रेन में रहे। बाहर निकलने के बाद एक-दूसरे की शक्ले देखते हैं और मुस्कुराते हैं। मैंने भी कई बार ऐसा ही किया। जैसे-जैसे टॉय ट्रेन पहाड़ों पर चढ़ती जाती है वैसे पहाड़ों के विहंगम दृश्य दिखने लगते हैं।
दोपहर करीब 12 बजे चली टॉय ट्रेन, उस दिन अपने समय से थोड़ी देर थी। शाम करीब नौ बजे शिमला पहुंची। वक्त थोड़ा ज्यादा लगा। लेकिन पहली बार ट्रेन की देरी खली नहीं, बल्कि लगा थोड़ी और देर हो जाए।