अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: चीनी मोबाइल फोन से जासूसी के खतरे का भी रखना होगा ध्यान
By अभिषेक कुमार सिंह | Published: June 22, 2020 06:15 AM2020-06-22T06:15:16+5:302020-06-22T06:15:16+5:30
देश में मोबाइल फोन, खासतौर से स्मार्टफोन और उनके जरिए होने वाला सूचनाओं का आदान-प्रदान जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है. आम जिंदगी में कोई भी इसकी कल्पना नहीं कर सकता है कि वह किसी दिन स्मार्टफोन और उसमें मौजूद रहने वाले एप्लीकेशंस यानी एप्स के बिना रह सकता है.
वैसे तो स्मार्टफोन ने जिस तरह हमारी जिंदगी का सुख-चैन छीना है, समाजशास्त्री उसे एक खतरनाक बात मानते हैं, लेकिन इधर खास तौर से चीनी मोबाइल कंपनियों के हैंडसेट और एप्स को लेकर सोशल मीडिया पर बाकायदा एक अभियान चल रहा है. इसकी एक तात्कालिक वजह पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेना के बीच हुई झड़प है. इसके बाद से ही लोगों में चीन को लेकर काफी गुस्सा है और लोग वहां के उत्पादों के बॉयकॉट की अपील कर रहे हैं. लेकिन सरकार और उसकी एजेंसियों को ये स्मार्टफोन एक अन्य कारण से चिंता की वजह लगते रहे हैं. चिंता है कि कहीं ये स्मार्टफोन हमारे देश की जासूसी करने में मददगार तो साबित नहीं हो रहे हैं!
हमारे देश में ऐसी चिंताएं काफी समय से रही हैं. इंटेलिजेंस ब्यूरो इससे पहले भी (2018 में) ऐसी आशंकाएं जता चुका है कि चीन के 40 से ज्यादा एप्लीकेशन हमारे स्मार्टफोनों को हैक कर सकते हैं. आईबी ने कहा था कि ये एप्लीकेशन असल में चीन की तरफ से विकसित किए गए जासूसी के एप्प हैं और इनकी मदद से जो भी सूचना, फोटो, फिल्म एक-दूसरे से साझा की जाती है, उसकी जानकारी चीन के सर्वरों तक पहुंच जाती है. इ
न आशंकाओं के बीच एप्लीकेशन शेयरइट ने जासूसी की बात से इनकार किया था और कहा था कि वे अपनी विश्वसनीयता को साबित करने के लिए सरकार व मीडिया के साथ बातचीत को तैयार है. सिर्फ एप्स ही नहीं, स्मार्टफोनों को भी हमारी सरकार संदेह के घेरे में ले चुकी है. अगस्त 2018 में, केंद्र सरकार ने स्मार्टफोन बनाने वाली चीन सहित कई अन्य देशों की 21 कंपनियों को इस बारे में नोटिस जारी किया था.
चीनी एप्लीकेशंस और स्मार्टफोनों को जासूसी के लिए संदेह के घेरे में लेने के पीछे बड़ा सवाल यह है कि सरकार ऐसे कदम क्या सिर्फ इसलिए उठाती है क्योंकि चीन से कभी डोकलाम, तो कभी गलवान घाटी में सीमा को लेकर विवाद उठते रहते हैं? इस सवाल का एक जवाब 2018 में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्नी रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में लिखित रूप से दिया था. उन्होंने बताया था कि देश की एक खुफिया एजेंसी की तरफ से सरकार को वीचैट (वीफोन एप्प) को प्रतिबंधित करने की अपील मिली थी. इस अपील का मुख्य कारण यह है कि यह एप्प अपने उपभोक्ताओं को वीओआईपी प्लेटफार्म के जरिए कॉलिंग लाइन आइडेंटिफिकेशन (सीएलआई) को चकमा देने की सुविधा प्रदान करता है. सीएलआई को छिपाने से कॉलर की पहचान उजागर नहीं हो पाती है. ऐसे में फर्जी कॉल्स करने में वीचैट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
खास बात यह है कि इस एप्लीकेशन के जरिए होने वाली कोई भी कॉल विदेश में स्थित सर्वर से होकर आती है, इसलिए कॉलिंग नंबर की पहचान या उसके स्थान का पता लगाना मुश्किल होता है. आम लोगों की निजी जिंदगी से जुड़ी सूचनाओं और देश की जासूसी की घटनाओं के मद्देनजर, स्मार्टफोनों और एप्लीकेशंस का संदेह में आना एक बड़ी चिंता की बात है. भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 एक्ट के मुताबिक ऐसी जासूसी का कृत्य दंडनीय हो सकता है, पर समस्या यह है कि इसे साबित करना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है. सरकार को चाहिए कि वह विदेशी मोबाइल कंपनियों और उनके एप्स पर पाबंदी के साथ देसी हैंडसेट उद्योग को बढ़ावा दे और इंटरनेट के देसीकरण के प्रयासों को बढ़ावा दे.