ब्लॉग: अभय की प्रतिष्ठा और शक्ति के जागरण का पर्व है विजयादशमी

By गिरीश्वर मिश्र | Published: October 5, 2022 10:02 AM2022-10-05T10:02:34+5:302022-10-05T10:02:34+5:30

आज के दौर में जब नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, विजयादशमी एक भरोसा जगाती है. यह दिन शांति और धर्म की व्यवस्था बनाए रखने और राम राज्य स्थापित करने की प्रेरणा देता है।

Vijayadashami is the festival of awakening of prestige and power | ब्लॉग: अभय की प्रतिष्ठा और शक्ति के जागरण का पर्व है विजयादशमी

अभय की प्रतिष्ठा और शक्ति के जागरण का पर्व है विजयादशमी

आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि को मनाया जाने वाला ‘विजयादशमी’ का उत्सव लोक-मंगल के लिए शक्ति के आवाहन का भव्य अवसर है. यह अपने ढंग का अकेला त्योहार है जो शारदीय नवरात्र और भगवान श्रीराम की विजय-गाथा के पावन स्मरण से जुड़ा हुआ है. पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल आदि में इन दिनों दुर्गा-पूजा की धूम मची रहती है. 

यह उत्सव स्वयं को शुद्ध कर मातृ-शक्ति का आह्वान करने और अपनी सामर्थ्य के संवर्धन का अवसर देता है. भारतीय उपमहाद्वीप की यह अत्यंत प्राचीन आध्यात्मिक संकल्पना है जिसके संकेत सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी मिलते हैं. भारत के बाहर बांग्लादेश, नेपाल, कम्बोडिया और इंडोनेशिया तक देवी दुर्गा की उपस्थिति मिलती है.

‘दुर्गा’ शब्द का अर्थ अजेय होता है और तैत्तिरीय आरण्यक में इसका उल्लेख मिलता है. देवी की आठ से अठारह भुजाओं तक का वर्णन मिलता है. वे दुष्ट दैत्यों के नाश के लिए नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से युक्त रहती हैं.  मार्कंडेय पुराण में ही ‘दुर्गा सप्तशती’ है जो तेरह अध्यायों में देवी के माहात्म्य का सरस काव्यात्मक वर्णन है.

देश के अनेक भागों में नवरात्र की अवधि में शक्ति, सुरक्षा, बल और मातृत्व की देवी दुर्गा, जो ‘जगदम्बा’ के रूप में लोक मानस में विराजती हैं, उनकी आराधना बड़े उत्साह और निष्ठा के साथ की जाती है. 
हमारा सारा अस्तित्व ही देवी द्वारा अनुप्राणित है. ऐसा इसलिए भी है कि माता कभी बच्चे का अनभला नहीं सोचती या चाहती है, बच्चा तो कुपुत्र हो सकता है पर माता कभी कुमाता नहीं होती. ऐसे में देवी की सत्ता अत्यंत व्यापक ढंग से परिकल्पित की गई है. देवी-कवच में नव दुर्गा के वर्णन में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मान्डा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री का उल्लेख किया गया है.  

आयोजन की परिणति श्रीराम द्वारा लंकापति प्रतापी राक्षस रावण के विनाश के प्रतीक रावण-दहन में होती है. इस दिन के पहले अनेक क्षेत्रों में राम-लीला का आयोजन होता है  शांति और धर्म की व्यवस्था को नष्ट करने को तत्पर आसुरी शक्ति से पार पाने और सत्य धर्म पर टिका राम राज्य स्थापित करने के लिए सन्नद्ध श्रीराम की कथा सतत संघर्ष, परीक्षा और मर्यादा की रक्षा के लिए युगों-युगों से प्रेरित करती आ रही है. 

आज के जीवन में जब नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, विजयादशमी आश्वस्त करती है. इसकी पूरी की पूरी संकल्पना जीवन में अभय की प्रतिष्ठा और शक्ति के जागरण के महान अनुष्ठान के रूप में परिचालित है और तब आशा बंधती है – होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन!

Web Title: Vijayadashami is the festival of awakening of prestige and power

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