नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: जीवन मूल्यों का पाठ पढ़ाया गुरु तेग बहादुर जी ने
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: May 1, 2021 10:52 AM2021-05-01T10:52:26+5:302021-05-01T10:56:28+5:30
सिखों के गुरु श्री गुरु तेगबहादुर की आज जयंती है। ऐसे में 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवन काल में कुल 59 शब्द तथा 57 श्लोकों की रचना की थी।
गुरु तेग बहादुर जी वे महान गुरु थे जिन्होंने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर दिया. उनका जन्म पिता श्री गुरु हरगोबिंद जी तथा माता नानकी जी के गृह सन् 1621 में हुआ. केवल पांच वर्ष की उम्र में वे कई बार समाधि लगा कर बैठ जाते थे तो माता जी बहुत चिंता प्रकट करतीं.
पिता हरगोबिंद जी कहते, हमारे इस पुत्र को महान कार्य करने हैं इसलिए अभी से तैयारी कर रहा है.
अपने पिता की निगरानी में ही गुरुजी ने गुरबाणी तथा धर्म ग्रंथों की शिक्षा ली. पढ़ाई के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाना, घुड़सवारी सीखा. करतारपुर की जंग में केवल 13 वर्ष की उम्र में पिता के साथ गुरु तेग बहादुर जी ने तलवार के जौहर दिखाए. उस समय उनका नाम त्याग मल था लेकिन पिताजी ने जब उनके तलवार के जौहर देखे तो उन्होंने उन्हें तेग बहादुर अर्थात तलवार के धनी नाम देकर सम्मानित किया.
गुरु तेग बहादुर जी का विवाह माता गुजरी जी के साथ हुआ था, जिससे उनके घर एकमात्र पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ. गुरुजी के मन में गुरु पद की तनिक भी लालसा नहीं थी इसीलिए जब हरगोबिंद साहब ने गुरु हर राय जी को गुरता गद्दी सौंपी तो गुरु तेग बहादुर जी के मन में तनिक भी ईर्ष्या, लालसा नहीं आई.
उसके बाद गुरु हरकृष्ण जी गुरु बने. पिता के ज्योति जोत समाने के बाद गुरु तेग बहादुर जी अपनी पत्नी तथा माता जी के साथ अमृतसर के पास बकाला गांव में आध्यात्मिक साधना में लीन हो गए. उन्होंने 21 वर्षों तक गहन साधना की, जिससे वे निर्भीक, संयमी, दृढ़ निश्चय, अडोलता, शांति, सहनशीलता तथा त्याग जैसे जीवन मूल्य से भरपूर हो गए.
कालांतर में अपने इन्हीं गुणों के कारण मुगल सल्तनत का उन्होंने सामना किया तथा मानवता, धर्म की रक्षा के लिए शहादत दी.
गुरु जी को 1665 में गुरु पद की प्राप्ति हुई. गुरुगद्दी प्राप्त करने के बाद गुरुजी कुछ महीने बाबा बकाला में सिखों को दर्शन उपदेश देने के बाद सत्य धर्म का उपदेश, प्रचार तथा जीवों का उद्धार करने हेतु यात्राओं पर निकले. उन्होंने कई स्थानों पर कुएं, सरोवर बनवाए.
गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवन काल में कुल 59 शब्द तथा 57 श्लोकों की रचना की जो गुरु ग्रंथ साहिब में 15 रागों में दर्ज हैं. उनकी बानी के मुख्य विषय संसार की नश्वरता, माया की क्षुद्रता, सांसारिक बंधनों की असारता और जीवन की क्षणभंगुरता हैं. उनका वैराग्य संसार त्याग वाला वैराग्य नहीं है बल्कि संसार में रहकर समरस जीवन बिताने वाला वैराग्य है.
इन सभी जीवन मूल्यों के साथ गुरु तेग बहादुर जी ने जीवन जिया और मानवता के लिए मिसाल बन गए. आज उनकी 400 वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन.