नईम कुरैशी का ब्लॉग: खुशियां बांटने का बेहतरीन मौका

By नईम क़ुरैशी | Published: May 25, 2020 10:34 AM2020-05-25T10:34:08+5:302020-05-25T10:34:08+5:30

भारतीय संस्कारों ने हर धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं, रीति-रिवाजों को अपने आंचल में जगह दी है. यही वजह है कि मुसलमानों के सबसे महत्वपूर्ण पर्व ईद को दुनिया में मनाए जाने से इतर भारत इसे अद्भुत बनाता है.

Naeem Qureshi's Blog: Great chance to share happiness | नईम कुरैशी का ब्लॉग: खुशियां बांटने का बेहतरीन मौका

सांकेतिक तस्वीर

पवित्न रमजान माह में भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वाले मुसलमानों के लिए ईद से बड़ा कोई त्यौहार नहीं. ईद मनाने का हुक्म आसमानी था. बुखारी शरीफ की हदीस नं. 1793 के मुताबिक ये संदेश खुद पैगंबर-ए-इस्लाम मोहम्मद (स.) ने उम्मत को दिया था.

ऐतिहासिक जंग-ए-बद्र के बाद 1 शव्वाल 2 हिजरी में मुसलमानों ने पहली ईद मनाई. यानी 1440 साल पहले शुरू हुआ ईद मनाने का सिलसिला अब भी जारी है. ईद जिसका तात्पर्य ही खुशी है, तो फिर खुशियां बांटने का इससे बेहतर मौका क्या हो सकता है!

भारतीय संस्कारों ने हर धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं, रीति-रिवाजों को अपने आंचल में जगह दी है. यही वजह है कि मुसलमानों के सबसे महत्वपूर्ण पर्व ईद को दुनिया में मनाए जाने से इतर भारत इसे अद्भुत बनाता है. ये त्यौहार न केवल समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्न है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द के संदेश को भी पुरअसर तरीके से हरेक तक पहुंचाता है.

इसमें कोई शक नहीं कि अरब के सेहरा से आई मीठी ईद सदियों से भारतीय समाज की सब्ज गंगा-जमुनी तहजीब में घुल-मिलकर हिंदुस्तानी भाईचारे की वाहक बनी हुई है.

अरबी भाषा का शब्द है ईद-उल-फितर. ईद का तात्पर्य है खुशी. फितर का अभिप्राय है दान. ईद ऐसा दान-पर्व है जिसमें खुशियां बांटी जाती हैं और जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन्हें फितरा (दान) दिया जाता है. रमजान इस्लामिक कैलेंडर का 9वां माह है. इसमें सभी मुस्लिम रोजे रखते हैं. रमजान को इस्लाम में इबादत का सर्वश्रेष्ठ महीना कहा गया है. इसके पूरे होने की खुशी में 1 शव्वाल को ईद-उल-फितर मनाई जाती है.

उमदतुल कारी हदीस के मुताबिक जकात सन 4 हिजरी में फर्ज की गई. यानी अपनी जमा पूंजी का 2.5 प्रतिशत गरीबों को देना अनिवार्य है. इसे ईद से पहले देना जरूरी है.

हदीस के अनुसार गरीबों को फितरा दें. फितरा एक निश्चित वजन में अनाज या उसकी मौजूदा कीमत में पैसा हर मुसलमान को देना होता है. एक दिन के बच्चे का फितरा उसके पिता को देना होगा. पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.) ने फरमाया कि ईद सबकी है. इसलिए अपने यहां काम करने वाले मुलाजिमों के साथ अच्छा व्यवहार और सम्मान करें. इस्लाम में मुलाजिमों की जरूरतों का ध्यान रखने को कहा गया है.

 

Web Title: Naeem Qureshi's Blog: Great chance to share happiness

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