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प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: शिव के अर्धनारीश्वर, रूप का रहस्य  

By प्रमोद भार्गव | Updated: February 21, 2020 07:20 IST

कथा में यह भी है कि इसी दिन शिव अत्यंत क्रोधित हुए और संपूर्ण ब्रह्मांड के विनाश के लिए विश्व प्रसिद्ध तांडव नृत्य करने लगे. शिव स्वयं यह मानते हैं कि स्त्री-पुरुष समेत प्रत्येक प्राणी की ब्रह्मांड में स्वतंत्र सत्ता स्थापित है.

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पुराणों में शिव की कल्पना ऐसे विशिष्ट रूप में की गई है, जिनका आधा शरीर स्त्री का तथा आधा पुरुष का है. शिव का यह स्त्री व पुरुष मिश्रित शरीर अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है. शिव पुराण के अनुसार शिव को इस रूप-विधान में परम पुरुष मानकर और ब्रह्मा से भिन्न उसकी शक्ति माया को स्त्री के आधे रूप में चित्रित किया गया है. शिव का रूप अग्नि एवं सोम अर्थात् सूर्य एवं चंद्रमा के सम्मिलन का भी स्वरूप है. यानी पुरुष का अर्धाश सूर्य और स्त्री का अर्धाश चंद्रमा के प्रतीक हैं. यह भी पुराण सम्मत मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन शिव और शक्तिरूपा पार्वती हुए थे.

कथा में यह भी है कि इसी दिन शिव अत्यंत क्रोधित हुए और संपूर्ण ब्रह्मांड के विनाश के लिए विश्व प्रसिद्ध तांडव नृत्य करने लगे. शिव स्वयं यह मानते हैं कि स्त्री-पुरुष समेत प्रत्येक प्राणी की ब्रह्मांड में स्वतंत्र सत्ता स्थापित है. इसे ही वैयक्तिक रूप में ब्रहात्मक या आत्मपरक माना गया है.

अर्धनारीश्वर के संदर्भ में जो प्रमुख कथा प्रचलन में है, वह है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि के विधान को आगे बढ़ाने की बात सोची और इसे साकार करना चाहा तो उन्हें इसे अकेले पुरुष रूप में आगे बढ़ाना संभव नहीं लगा. तब उन्होंने शिव को बुलाकर अपना मंतव्य प्रगट किया. शिव ने ब्रह्मा के मूल भाव को समझते हुए उन्हें अर्धनारीश्वर में दर्शन दिए. अर्थात् स्त्री और पुरुष के सम्मिलन से सृष्टि के विकास की परिकल्पना दी. इस सूत्र के हाथ लगने के बाद ही ब्रह्मा सृष्टि के क्रम को निरंतर गतिशील बनाए रखने का विधान रच पाए. 

सच्चाई भी यही है कि स्त्री व पुरुष का समन्वय ही सृष्टि का वास्तविक विधान है. इसीलिए स्त्री को प्रकृति का प्रतीक भी माना गया है. अर्थात् प्रकृति में जिस तरह से सृजन का क्रम जारी रहता है, मनुष्य-योनि में उसी सृजन प्रक्रिया को स्त्री गतिशील बनाए हुए है. अर्धनारीश्वर यानी आधे-आधे रूपों में स्त्री और पुरुष की देहों का आत्मसात हो जाना, शिव-गौरी का वह महा-सम्मिलन है, जो सृष्टि के बीज को स्त्री की कोख अर्थात् प्रकृति की उर्वरा भूमि में रोपता है. सृष्टि का यह विकास क्रम अनवरत चलता रहे, इसीलिए सृष्टि के निर्माताओं ने इसमें आनंद की सुखानुभूति भी जोड़ दी है.

टॅग्स :महाशिवरात्रिभगवान शिव
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