ललित गर्ग का ब्लॉग: भाग-दौड़ भरी जिंदगी में पर्यूषण पर्व की प्रासंगिकता बनाए रखें
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 21, 2020 03:07 PM2020-08-21T15:07:59+5:302020-08-21T15:07:59+5:30
पर्यूषण पर्व जैन धर्म से जरूर जुड़ा है लेकिन साथ ही ये पूरे विश्व के लिए भी एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है. यह एकमात्र आत्मोत्कर्ष का प्रेरक पर्व है. इसीलिए यह पर्व ही नहीं, महापर्व है.
पर्यूषण जैन समाज का एक ऐसा महान पर्व है, जो प्रति वर्ष सारी दुनिया में जैन धर्म के सभी पंथों एवं परंपराओं में आत्मशुद्धि एवं आपसी प्रेम-मैत्री जैसे विशिष्ट आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए मनाया जाता है. यह एक सार्वभौम पर्व है, मानव मात्र का पर्व है.
पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना करते हुए आत्मशुद्धि एवं आत्मसिद्धि के व्यापक प्रयत्न किए जाते हैं. आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है और अपनी गलतियों पर सोचता है और उन्हें सुधारने का प्रयास करता है, जिससे वर्षभर में हम जहां-जहां गिरें वहां संभलें और नए संकल्प के साथ सुकृत्य का दीप जलाएं.
आत्मा से आत्मा का मिलन ही पर्यूषण की मौलिकता है. त्याग एवं तप की आधारभित्ति पर मनाया जाने वाला यह दुनिया का पहला पर्व है, जिसकी अलौकिकता, आध्यात्मिकता एवं तेजस्विता न केवल प्रभावी बल्कि चमत्कारी है.
कोरोना महामारी में इस पर्व की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता अधिक है, क्योंकि यह पर्व आत्मा को ही नहीं, शरीर को भी सशक्त एवं रोग मुक्त बनाता है, यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्राप्त करने का अनूठा एवं विलक्षण प्रयोग है. संपूर्ण जैन समाज का यह महाकुंभ पर्व है.
भौतिकवादी परिवेश में अध्यात्म यात्र के इस पथ पर जैसे-जैसे चरण आगे बढ़ते हैं, उलझन सुलझती चली जाती है. समाधान होता जाता. जब हम अंतिम बिंदु पर पहुंचते हैं, तब वहां समस्या ही नहीं रहती. सब स्पष्ट हो जाता है. एक अपूर्व परिवेश निर्मित हो जाता है और इस पर्व को मनाने की सार्थकता सामने आ जाती है.
आज हर आदमी बाहर ही बाहर देखता है, जब किसी निमित्त से भीतर की यात्र प्रारंभ होती है और इस सच्चाई का एक कण अनुभूति में आ जाता है कि सार सारा भीतर है, सुख भीतर है, आनंद भीतर है, आनंद का सागर भीतर लहराता है, चैतन्य का विशाल समुद्र भीतर उछल रहा है, शक्ति का अजस्र स्नेत भी भीतर है, अपार आनंद, अपार शक्ति, अपार सुख- यह सब भीतर है, तब आत्मा अंतरात्मा बन जाती है. यही कारण है कि यह पर्व स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अलौकिक अवसर है.
जैन धर्म की त्याग प्रधान संस्कृति में पर्यूषण पर्व का अपना और भी अपूर्व एवं विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है. यह एकमात्र आत्मोत्कर्ष का प्रेरक पर्व है. इसीलिए यह पर्व ही नहीं, महापर्व है. पर्यूषण पर्व- जप, तप, साधना, आराधना, उपासना, अनुप्रेक्षा आदि अनेक प्रकार के अनुष्ठानों का अवसर है.
भगवान महावीर ने क्षमा यानि समता का जीवन जीया. वे चाहे कैसी भी परिस्थिति आई हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे. ‘क्षमा वीरों का भूषण है’- महान् व्यक्ति ही क्षमा ले व दे सकते हैं. पर्यूषण पर्व क्षमा के आदान-प्रदान का पर्व है. इस दिन सभी अपने मन की उलझी हुई ग्रंथियों को सुलझाते हैं, अपने भीतर की राग-द्वेष की गांठों को खोलते हैं व एक दूसरे से गले मिलते हैं. पूर्व में हुई भूलों को क्षमा के द्वारा समाप्त करते हैं व जीवन को पवित्र बनाते हैं.
भगवान महावीर ने कहा- ‘मित्ती में सव्व भूएसु, वेरंमज्झण केणइ’. सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ वैर नहीं है. मानवीय एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, नैतिक मूल्यों की स्थापना, अहिंसक जीवन, आत्मा की उपासना शैली का समर्थन आदि तत्व इस पर्व के मुख्य आधार हैं.
ये तत्व जन-जन के जीवन का अंग बन सकें, इस दृष्टि से इस महापर्व को जन-जन का पर्व बनाने के प्रयासों की अपेक्षा है. पर्यूषण पर्व आत्म उन्नति, अहिंसा, शांति और मैत्री का पर्व है. अहिंसा और मैत्री के द्वारा ही शांति मिल सकती है. आज जो हिंसा, आतंक, आपसी-द्वेष, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, कोरोना महाव्याधि जैसी ज्वलंत समस्याएं न केवल देश के लिए बल्कि दुनिया के लिए चिंता का बड़ा कारण बनी हुई है और सभी कोई इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं.
उन लोगों के लिए पर्यूषण पर्व एक प्रेरणा है, पाथेय है, और अहिंसक, निरोगी, शांतिमय जीवन शैली का प्रयोग है. आज भौतिकता की चकाचौंध में, भागती जिंदगी की अंधी दौड़ में इस पर्व की प्रासंगिकता बनाए रखना ज्यादा जरूरी है.
इसके लिए जैन समाज संवेदनशील बने। विशेषत: युवा पीढ़ी पर्यूषण पर्व की मूल्यवत्ता से परिचित हो और वे सामायिक, मौन, जप, ध्यान, स्वाध्याय, आहार संयम, इन्द्रिय निग्रह, जीवदया आदि के माध्यम से आत्मचेतना को जगाने वाले इन दुर्लभ क्षणों से स्वयं लाभान्वित हो और जन-जन के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करे.