लाइव न्यूज़ :

यह ईद-उल-फितर भी साथ लाई है एक नया इम्तिहान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 14, 2021 12:48 IST

ईद का त्योहार पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना महामारी के साये में मनाया जा रह है. यह समय इम्तिहान का है और धैर्य और संयम के साथ इससे सभी को पार पाना है.

Open in App

जावेद आलम

पिछले साल की तरह इस साल भी ईद-उल-फितर पर वही इम्तिहान सामने है. एक बीमारी है, जिसमें जिस्मानी फासला बनाए रखना है. सामने ईद की नमाज है. साल भर में एक बार पढ़ी जाने वाली. रमजान की इबादतों का इनाम. रमजान का महीना बहुत पाबंदियों वाला होता है. ऐहतियात भी बहुत करना पड़ता है यानी खाने-पीने की पाबंदियों के साथ हाथ-पैर, आंखों, कान व जुबान तक का रोजा.

यह जीवन भर का प्रशिक्षण है कि इस्लामी जिंदगी ऐसे गुजारना है. इसी प्रशिक्षण काल की समाप्ति का नाम ईद-उल-फितर है, जिसमें अल्लाह के नेक बंदे एक जगह जमा होकर इज्तिमाई (सामूहिक) तौर पर उसका शुक्र अदा करते हैं कि रब्बे-करीम ने उन्हें रमजान जैसा मुबारक माह अता किया. शुक्र अदा करने का सबसे हसीन तरीका नमाज है. यह हसीन शुक्राना अदा करने से पहले सदका-ए-फितर निकालने का हुक्म है. 

सदका-ए-फितर एक निश्चित राशि है जो समर्थ मुसलमानों द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर मुसलमानों तक ईद की नमाज से पहले पहुंचानी होती है  ताकि वे भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें. इसी निस्बत से इस ईद का नाम ‘ईद-उल-फितर’ है.

सदका-ए-फितर निकालने के साथ ज्यादातर मुसलमान जकात निकालने का सिलसिला भी रमजान में पूरा कर लेते हैं कि इस पाक महीने में एक नेकी का सवाब सत्तर गुना तक बढ़ा दिया जाता है. सो रमजान में मुसलमानों द्वारा दान-पुण्य खूब किया जाता है. यह असल में आर्थिक व सामाजिक असमानता दूर करने का प्रायोगिक तरीका भी है. इसीलिए देखने में आता है कि ईद पर गरीब-गुरबा भी ठीक-ठाक ढंग से तैयार हो कर ईदगाह तक पहुंचते हैं.

मगर पिछले साल की तरह ही इस बार फिर कोरोना का इम्तिहान सामने हैं. जगह-जगह लॉकडाउन लगा है. ऐसे हालात में नमाजे-ईद रूपी शुक्राना अदा करने के लिए जमा नहीं हो सकते. 

यह सब देखते हुए ही देश के शीर्ष इस्लामी संस्थानों, मुस्लिम संगठनों ने पिछले साल की ही तरह इस साल भी यह अपील जारी की कि ईद-उल-फितर की नमाज का सिलसिला स्थानीय प्रशासन के आधार पर तय कर लिया जाए. यानी स्थानीय प्रशासन जैसी अनुमति दे वैसे नमाज अदा कर लें.  

यह वक्त दरअसल रब्बे-अजीम की जानिब से एक इम्तिहान है. इस्लाम में इम्तिहान व आजमाइश का बड़ा मुकाम है. ऐसे वक्ते-इम्तिहान में शुक्र का मुकाम है कि कोरोना जैसी वबा के बीच मुसलमानों ने कई जगह अपनी खिदमात के दिल छू लेने वाले नमूने पेश किए. 

ऐसे माहौल में वक्त एक बार फिर पुकार रहा है कि अपनी ख्वाहिशात कुर्बान करते हुए मौके के लिहाज से शुक्राना अदा कर लिया जाए. जिंदगी रही तो अगली ईदें बहुत धूमधाम से मनाई जाएंगी, इंशा अल्लाह.

टॅग्स :ईदइस्लाम
Open in App

संबंधित खबरें

भारत'अगर ज़ुल्म हुआ तो जिहाद होगा': जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रेसिडेंट मौलाना महमूद मदनी यह कहकर विवाद खड़ा किया

भारतपाकिस्तान में लापता हुई सरबजीत ने कबूला इस्लाम, स्थानीय शख्स से किया निकाह

पूजा पाठईश्वरीय चेतना जुबान ही नहीं, कर्मों से भी झलके

कारोबारBank Holiday: क्या कल, 5 सितंबर को बैंक खुले रहेंगे या बंद? चेक करें डिटेल

विश्वसीरिया में सांप्रदायिक संकट गहराया, संघर्ष विराम जारी रहने के कारण स्वेदा में 940 लोगों की मौत

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठगोवा अग्निकांड: कौन हैं सौरभ लूथरा? अरपोरा के बर्च नाइट क्लब के संस्थापक आग में 25 लोगों की मौत के बाद अब पुलिस जांच के दायरे में

पूजा पाठPanchang 07 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 07 December 2025: आज इन 3 राशियों के लिए दिन रहेगा चुनौतीपूर्ण, वित्तीय नुकसान की संभावना

पूजा पाठसभ्यता-संस्कृति का संगम काशी तमिल संगमम

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 06 December 2025: आज आर्थिक पक्ष मजबूत, धन कमाने के खुलेंगे नए रास्ते, पढ़ें दैनिक राशिफल