ब्रह्मकुमारी शिला का ब्लॉगः आध्यात्मिक क्रांति के अग्रदूत ब्रह्मबाबा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 18, 2019 09:13 PM2019-01-18T21:13:54+5:302019-01-18T21:13:54+5:30
सन् 1936-37 में पिताश्री प्रजापिता ब्रह्म बाबा के माध्यम से, एक छोटे से पारिवारिक सत्संग के रूप में सर्व आत्माओं के निराकार पिता परमात्मा शिव बाबा ने इसका प्रारंभ किया. पिताश्री प्रजापिता ब्रह्म बाबा स्वतंत्नतापूर्व काल में, सिंध प्रांत के हीरे जवाहरात के एक धनाढ्य व्यापारी थे.
ब्रह्मकुमारी शिला
इस संसार में समय-समय पर अनेक क्रांतियां होती आई हैं. क्रांति के पीछे लक्ष्य यही होता है कि इससे व्यापक पैमाने पर बदलाव आएगा और पीड़ित मानवता को शांति मिलेगी. परंतु सभी क्रांतियों के परिणाम स्पष्ट रूप से देख लेने के बाद हम लक्ष्य से भिन्न निष्कर्ष पर ही पहुंचे हैं. उदाहरण के लिए यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई और नए-नए कारखाने स्थापित होने लगे. नए-नए आविष्कार हुए और बटन दबाने भर की देरी में मानव को सब प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होने लगीं. परंतु परिणाम क्या निकला? मानव मशीन बन गया, उसने मानवता के कई अमूल्य गुण खो दिए.
हर वर्ग और विचारधारा के लोगों ने अपने-अपने तौर पर क्रांति लाने की कोशिश की, परंतु इन सभी क्रांतियों के माध्यम से जिस शांति रूपी पंछी को पकड़ने की कोशिश की गई वह हाथ नहीं आया क्योंकि यह पंछी केवल आध्यात्मिक क्रांति से ही हाथ आ सकता है. इसकेफलस्वरूप मानवता शांति के शाश्वत आगोश में समा सकती है और इस क्रांति की शुरुआत अब हो चुकी है.
सन् 1936-37 में पिताश्री प्रजापिता ब्रह्म बाबा के माध्यम से, एक छोटे से पारिवारिक सत्संग के रूप में सर्व आत्माओं के निराकार पिता परमात्मा शिव बाबा ने इसका प्रारंभ किया. पिताश्री प्रजापिता ब्रह्म बाबा स्वतंत्नतापूर्व काल में, सिंध प्रांत के हीरे जवाहरात के एक धनाढ्य व्यापारी थे.
वे भक्ति-पूजा में अटूट लगनशील और सात्विक जीवन-व्यवहार वाले थे. आयु के छह दशक पार होने पर उन्हें परमपिता परमात्मा शिव के द्वारा अलौकिक साक्षात्कार कराए गए, जिनमें उन्होंने इस पुरानी दुनिया के महाविनाश और आने वाली दुनिया के नजारे देखे. इस नई दुनिया अर्थात सत्य और पवित्नता से ओत-प्रोत दुनिया को लाने के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया और साथ ही एक ऐसी आध्यात्मिक क्रांति का सूत्नपात किया जिसके द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक उपलब्धियां माताओं, बहनों, बच्चों, निम्न वर्ग से लेकर, उच्च वर्ग तक सभी के लिए सहज हो गईं.
आरंभ काल में उन्हें विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ा परंतु उन्होंने इन सबका सामना अत्यंत अहिंसापूर्वक किया. उन्होंने जिस गति और रीति से सफलता हासिल की, वह अपने आप में अद्भुत और अद्वितीय है. आज विश्व के सातों महाद्वीपों में बिंदु से सिंधु रूप धारण किए हुए यह क्रांति, अशांति का मूलोच्छेदन कर सद्गुणों की सुगंध फैला रही है. ऐसे आध्यात्मिक क्रांति के अग्रदूत प्रजापिता ब्रह्मबाबा को 18 जनवरी 2019 को उनके 50वें स्मृति दिवस पर हम सभी की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि.