प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: जनहितैषी स्वतंत्र मूल्यों के पक्षधर श्रीकृष्ण

By प्रमोद भार्गव | Published: August 23, 2019 07:05 AM2019-08-23T07:05:21+5:302019-08-23T07:05:21+5:30

Blog of Pramod Bhargava: Sri Krishna advocates for public values independent | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: जनहितैषी स्वतंत्र मूल्यों के पक्षधर श्रीकृष्ण

प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: जनहितैषी स्वतंत्र मूल्यों के पक्षधर श्रीकृष्ण

प्राचीन संस्कृत साहित्य की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण दस अवतारों में से एकमात्र सोलह कलाओं में निपुण पूर्णावतार हैं. कृष्ण को लोक मान्यताएं प्रेम और मोह का अभिप्रेरक मानती हैं. इसीलिए मान्यता है कि कृष्ण के सम्मोहन में बंधी हुई गोपियां अपनी सुध-बुध और मर्यादाएं भूल जाया करती थीं. कृष्ण गोपियों को ही नहीं समूचे जनमानस को अपने अधीन कर लेने की अद्भुत व अकल्पनीय नेतृत्व क्षमता रखते थे.

अतएव उन्होंने जड़ता के उन सब वर्तमान मूल्यों और परंपराओं पर कुठाराघात किया, जो स्वतंत्रता को बाधित करते थे. यहां तक कि जिस इंद्र को जल का देवता और तीनों लोकों का अधिपति माना जाता था, उन्हें भी  कृष्ण ने चुनौती दी और उनकी पूजा को ब्रजमंडल में बंद करा दिया. वे कृष्ण ही थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र के रण-प्रांगण में अजरुन को आसक्ति रहित कर्म करने का उपदेश दिया.      

कृष्ण बाल जीवन से ही जीवनर्पयत सामाजिक न्याय की स्थापना और असमानता को दूर करने की लड़ाई इंद्र की देव व कंस की राजसत्ता से लड़ते रहे. वे गरीब की चिंता करते हुए खेतिहर संस्कृति और दुग्ध क्रांति के माध्यम से ठेठ देशज अर्थव्यवस्था की स्थापना और विस्तार में लगे रहे. सामरिक दृष्टि से उनका श्रेष्ठ योगदान भारतीय अखंडता के लिए उल्लेखनीय है. इसीलिए कृष्ण के किसान और गौपालक कहीं भी फसल व गायों के क्रय-विक्रय के लिए मंडियों में पहुंचकर शोषणकारी व्यवस्थाओं के शिकार होते दिखाई नहीं देते.

भारतीय मिथकों में कृष्ण के अलावा कोई दूसरी ईश्वरीय शक्ति ऐसी नहीं है, जो राजसत्ता से ही नहीं, उस पारलौकिक सत्ता के प्रतिनिधि इंद्र से विरोध ले सकती हो, जिसका जीवनदायी जल पर नियंत्रण था. यदि हम इंद्र के चरित्र को देवतुल्य अथवा मिथक पात्र से परे मनुष्य रूप में देखें तो वे जल प्रबंधन के विशेषज्ञ थे. 

लेकिन कृष्ण ने उस देवसत्ता से विरोध लिया, जिस सत्ता ने इंद्र को जल प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी हुई थी और इंद्र जल निकासी में पक्षपात बरतने लगे थे. किसान को तो समय पर जल चाहिए, अन्यथा फसल चौपट हो जाने का संकट उसका चैन हराम कर देता है. 

कृष्ण के नेतृत्व में कृषक और गौपालकों के हित में यह शायद दुनिया का पहला आंदोलन था, जिसके आगे प्रशासकीय प्रबंधन नतमस्तक हुआ और जल वर्षा की शुरुआत किसान हितों को दृष्टिगत रखते हुए शुरू हुई. 

Web Title: Blog of Pramod Bhargava: Sri Krishna advocates for public values independent

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