पांच हज़ार वर्ष पहले के ज्ञान में छिपा है जीवन में चमत्कारी बदलाव लाने का राज़, अयोध्या के इस लड़के के साथ कुछ ऐसा ही हुआ

By रोहित कुमार पोरवाल | Published: June 5, 2019 02:20 PM2019-06-05T14:20:55+5:302019-06-05T16:28:02+5:30

पांच हज़ार वर्ष पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन के ज़रिए संसार को श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान के रूप में अमृत दिया, जो कि आज भी उतना ही प्रसांगिक है लेकिन पढ़े कौन! ज़्यादातर युवाओं का तर्क होता है कि ये चीज़ें बुढ़ापे में पढ़ने वाली हैं...

Bhagavad-Gita Wisdom, Spiritual Quotient can bring miraculous change in life, Ayodhya Guy Experienced | पांच हज़ार वर्ष पहले के ज्ञान में छिपा है जीवन में चमत्कारी बदलाव लाने का राज़, अयोध्या के इस लड़के के साथ कुछ ऐसा ही हुआ

धनंजय (दाएं) की कहानी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायी हो सकती है।

Highlightsमहाभारत के युद्ध में जिस समस्या ने अर्जुन को घेरा था, आज भी लोग उससे घिरे हैं।पांच हज़ार साल पहले श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए ज्ञान में जीवन में चमत्कारी बदलाव लाने का संदेश निहित है।

कौन कितना बुद्धिमान है इसकी जांच के लिए वैज्ञानिकों ने एक तरीका निकाला- आई क्यू जांचने का। विस्तार में इसे इंटेलीजेंस कोशंट कहते हैं। खाली बुद्धिमत्ता से काम नहीं चलने वाला, कई बार दिल की भी सुननी पड़ती है, इसलिए जज़्बात जांचने की खोज हो गयी। जिसे ई क्यू यानी इमोशनल कोशंट कहा गया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के पास दोनों भरपूर मात्रा में था लेकिन फिर भी वह विचलित हो उठे। लड़ाइयां इससे पहले भी उन्होंने लड़ी थीं लेकिन विचलित कभी नहीं हुए थे। रण में अपनों को सामने देखा तो अर्जुन का आई क्यू काम नहीं आया औए ई क्यू हद से ज़्यादा बढ़ गया। दोनों को बैलेंस करने या कहिए कि बाहर निकलने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें एस क्यू दिया। एस क्यू यानी स्प्रिच्युअल कोशंट, जिसे श्रीमद् भगवद् गीता के ज्ञान के रूप में दिया। तब जाकर अर्जुन जीवन-मृत्यु से ऊपर उठकर युद्ध में धर्म की राह पर चल पाए।

कमोवेश आज दुनिया में ज़्यादातर लोगों के पास आई क्यू और ई क्यू तो है लेकिन एस क्यू की घोर कमी है। परिणामस्वरूप वे सुख की लालसा में भौतिक प्रयास तो ख़ूब करते हैं लेकिन सुखी हो नहीं पाते हैं। 

बीते शनिवार नोएडा स्थित अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भवनामृत संघ (ISKCON) की यूथ क्लास में गया तो टॉपिक एस क्यू ही था। लगभग हमारी उम्र के व्रजजन रंजन दास प्रभु क्लास ले रहे थे और इस बारे में समझा रहे थे। हॉल में 50 के करीब युवा मौजूद थे, जिनमें कुछ नए और कुछ पुराने भी थे। 

युवाओं को आध्यात्मिक स्तर में ऊपर उठने के लिए मदद करते व्रजजन रंजन दास जी।
युवाओं को आध्यात्मिक स्तर में ऊपर उठने के लिए मदद करते व्रजजन रंजन दास जी।

क्लास शुरू हुई। व्रजजन रंजन दास प्रभु ने पूछा, वह क्या है जो कॉमन और अनअवॉइडेबल है? कुछ ने कहा, डिप्रेशन, कुछ ने बताया ओवर थिंकिंग और वगैरह-वगैरह..

महाराज ने बताया जो चीज़ कॉमन और अनअवॉइडेबल है, वो है डेथ, यानी मृत्यु।

बात सही है।

फिर बात हुई प्रॉब्लम की। एक वीडियो के माध्यम से दिखाया गया कि संसार में किसी जीव द्वारा शरीर लेकर आते रहना समस्या है। 

जन्म की प्रक्रिया के दौरान कैसा लगा, इस प्रश्न के जवाब में कोई भी यही कहेगा कि उसे क्या पता, कुछ याद नहीं..  वीडियो में गर्भ में भ्रूण के विकास के दौरान उसे होने वाली घोर तकलीफों से रूबरू कराया गया। दिखाया गया कि पांचवें महीने में जब त्वचा भी नहीं बनी होती है तो माँ के कुछ तीखा खा लेने पर कभी-कभार गर्भ में तकलीफ़ के कारण भ्रूण बेहोश तक हो जाता है। कभी सिर नीचे और गर्दन टेढ़ी बनी रहती है। बाहर आता है तो ख़ून से लथपथ। 

कहने का मतलब है कि जीवन की कठिन और कष्टदायी प्रक्रिया जिस उद्देश्य के लिए है, उसकी प्राप्ति बिना एस क्यू संभव नहीं। 

व्रजजन रंजन दास जी ने बताया कि जब हम मोबाइल या लैपटॉप पर इंटरनेट चलाकर कुछ काम करने बैठते है तो बीच-बीच में कई तरह के लुभावने पॉप अप आते रहते हैं, जिनसे ध्यान भटकता है और आपका काम रुक जाता है। उसी प्रकार हमारा जीवन भी इन पॉप अप्स से घिरा है। 

किसी को सिगरेट पीते देखा तो लगने लगी लत। किसी को शराब पीते देखा तो मूड बन गया। सुंदर लड़की को देखा तो कामासक्त हो गए। ये सब पॉप अप्स ही तो हैं जो हमें भटका देते हैं और जीवन का स्तर गिरता जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे पास अपना आई क्यू और ई क्यू बैलेंस करने का लिए एस क्यू नहीं होता है।

लोगों के बीच जाकर श्रीमद् भगवद् गीता पढ़ने के लिए उन्हें प्रोस्ताहित करते व्रजजन रंजन दास और साथी भक्तगढ़।
लोगों के बीच जाकर श्रीमद् भगवद् गीता पढ़ने के लिए उन्हें प्रोस्ताहित करते व्रजजन रंजन दास और साथी भक्तगढ़।

एस क्यू आएगा कहां से?

5000 साल पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन के ज़रिए संसार को श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान के रूप में अमृत दिया, जो कि आज भी उतना ही प्रसांगिक है लेकिन पढ़े कौन! 

ज़्यादातर युवाओं का तर्क होता है कि ये चीज़ें बुढ़ापे में पढ़ने वाली हैं। 

वृजरंजन दास जी कहते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर में नई शेल्स का बनना कम होता जाता है और फिर बन्द हो जाता है। हमारा शरीर रोज़ बूढ़ा हो रहा है। कई वैज्ञानिकों ने कोशिश कि लेकिन बूढ़े होने की प्रक्रिया को नहीं रोक सके। बूढ़े होने पर शरीर साथ नहीं देता है। सही दिखाई-सुनाई नहीं देता है, दिमाग़ भी उतना नहीं चलता जितना किशोरावस्था या युवावस्था में चलता है, सोचने की शक्ति ख़त्म हो जाती है। इसलिए, बुढ़ापा आने से पहले उम्र और शरीर का सदुपयोग करना चाहिए। श्रीमद् भगवद् गीता का अध्ययन बुढ़ापे में नहीं, युवावस्था में ही कर लेना चाहिए और श्रीकृष्णभवनामृत से ख़ुद का और जगत का कल्याण करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर व्रजजन रंजन दास जी ने क्लास में मौजूद एक युवा धनंजय से मिलवाया। 

प्रेरणादायी है 28 वर्ष के युवा धनंजय की कहानी

धनंजय ने बताया कि मूल रूप से वह अयोध्या के रहने वाले हैं। 24 वर्ष की उम्र में दोस्तों वगैरह के बीच सिगरेट पीना शुरू किया। फिर गांजा, शराब और स्मैक। हालत ऐसी हो गयी थी कि बिना नशे के रहा नहीं जाता था। धनंजय बताते हैं कि गांजा की तलब में झुग्गी बस्ती का रुख करता था तो लोगों को लगा कि पैसे वाला हूं तो वे सम्भवतः गांजे में स्मैक मिला देते थे ताकि लत लग जाए और फिर पैसा ऐंठा जाए। उनकी पुलिस से मिलीभगत होती थी। कई बार पुलिस नशे में धुत हालत में पकड़ कर ले गयी और हर बार पैसा लेकर छोड़ देती थी।

घरवालों ने निकाल दिया

धनंजय के मुताबिक नशे में बुरे से बुरे काम किए। एकबार घर गया तो शक्ल देखकर घरवाले हैरान हुए। शाम को तालब लगी तो 15 किलोमीटर दूर शहर में जाकर नशा लिया। कहते हैं कि गाँव में आप कुछ छिपा नहीं सकते हैं अगर नशा किया हो, कोई न कोई तो घर पर बता ही देगा। घरवाले नशे की लत के बारे में जानकर नाराज़ हुए। खरी-खोटी सुनाईं और घर से निकाल दिया। फिर दिल्ली आ गए। नशा चालू रहा। हालत इतनी ख़राब हो गयी कि नौकरी छोड़ दी। कमरे में बंद रहने लगा। तभी बाहर निकलता था जब नशे का सामान लेना हो। 

नशामुक्ति केंद्र का नंबर जुटाया लेकिन कभी नहीं गया

कहीं से नशामुक्ति केंद्र का नम्बर मिला तो समेट कर रख लिया लेकिन कभी वहां जा नहीं पाए। धनंजय बताते हैं कि उन्हें लगने लगा कि अब नहीं बच पाएंगे। वह कभी ठीक नहीं हो पाएंगे। मन में ख़्याल आते कि घरवालों, दोस्तों में से ऐसा कोई नहीं बचा जो हमदर्दी जता सके, सबको खो दिया। 

मंदिर में जाकर बदल गया जीवन

धनंजय कहते हैं कि उन दिनों अक्सर इस्कॉन के सामने से फ्लाई ओवर से अक्सर गुजरता था लेकिन कभी यहां आया नहीं  था। एक दिन प्यास लगी थी और नीचे से गुज़र रहा था। मंदिर के बाहर प्याऊ देखकर रुख गया। पानी पी रहा था तो अंदर से कीर्तन की आवाज़ आ रही थी। झांककर देखा तो कुछ लोग नाचते हुए दिखे। उस दिन वहीं से लौट गया। एक दिन फिर पानी पी रहा था तो अंदर जाने की जिज्ञासा हुई। फिर सोचा कि रहने देता हूं, नहाया हूं नहीं और ऐसी हालत में मंदिर के भीतर जाना ठीक नहीं होगा। फिर हिम्मत करके अंदर आया। भजन चल रहा था। भजन खत्म हुआ तो चलने को हुआ। इतने में प्रभु (व्रजजन रंजन दास) ने इशारा कर रुकने के लिए कहा तो बैठ गया। प्रभु ने बात की तो अपनी हालत के बारे में उन्हें बताया। 

जप मेडिटेशन
जप मेडिटेशन

प्रभु ने कहा कि कोई नहीं, मंदिर आते-जाते रहो, सब ठीक हो जाएगा लेकिन घर जाकर नशे को रोक नहीं पाता था। प्रभु ने कहा कि जब लत लगे तब हरे कृष्ण महामंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) के साथ माला करने लगो। ऐसा ही किया और आज एक साल है कि किसी नशे को हाथ नहीं लगाया। ज़िन्दगी बदल गयी। पटरी पर लौट आई। अब घरवाले भी प्यार करने लगे हैं। ढेर सारे नए दोस्त बन गए हैं। अब हर शनिवार और रविवार को मंदिर आता हैं। कीर्तन करते हैं, क्लास एटेंड करते हैं, प्रसादम पाते हैं। 

अब नौकरी नहीं करते है, बल्कि खुद का ग्लू का एक छोटा सा प्लांट लगा लिया है। बाल सुधार गृह जाते हैं और भटके हुए बच्चों को सही दिशा दिखाने का प्रयास करते हैं।

धनंजय ने बताया, इसी के साथ श्रीमद् भगवद् गीता का अध्ययन कर रहे हैं और अभी दूसरा अध्याय पढ़ रहे हैं।

आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़कर धनंजय आज हंसी-खुशी जीवन जी रहे हैं।
आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़कर धनंजय आज हंसी-खुशी जीवन जी रहे हैं।

धनंजय की कहानी जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ और ईश्वरीय शक्ति के प्रति विश्वास और दृढ़ हुआ क्योंकि धनंजय को मैं नाम से तो नहीं जानता था लेकिन शक्ल से कई बार देखा था हरे कृष्ण कीर्तन पर धोती कुर्ता पहने हुए और ज़ोर-ज़ोर से उछलकर नाचते हुए। मुझे वह किसी कॉलेज का चंचल छात्र जान पड़ता था। यह बात मैंने उससे भी कही और वह बस आंखों में अजब सा ठंडा ठहराव लिए मुस्करा उठा था। 

प्रसाद पाते समय व्रजजन रंजन दास जी ने बताया कि धनंजय जैसे कुछ और लोग हैं जिनके जीवन में अभूतपूर्व बदलाव आया है। मैंने कहा कि संपादक जी से अनुमति लेकर सबकी वीडियो डॉक्यूमेंट्री बना लूंगा।

कुलमिलाकर धनंजय को जब मंदिर में प्रवेश करने के बाद लगातर भक्तों द्वारा एस क्यू मिलता रहा तब वह असंभव लग रही नारकीय जीवनशैली से ख़ुद को बचा पाया और जीवन में  निखार ला पाया।

व्रजजन रंजन दास जी ने बताया कि युवाओं के कल्याण के लिए उन्हीं की शैली में मंदिर उमंग फेस्टिवल का आयोजन करता है। इस बार उमंग फेस्टिवल की तारीख 21 जुलाई (रविवार) निर्धारित की गई है। 15 से 30 वर्ष के लोग इसमें शामिल हो सकते हैं। इसमें आईआईटी कानपुर से एमटेक किए एचजी कल्पवृक्ष दास की मोटिवेशनल क्लास होगी। इसके अलावा स्पेशल ड्रामा, रॉक कीर्तन और डिनर फीस्ट होगा। उमंग फेस्टिवल में शामिल होने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इसके लिए 100 रुपये की फीस भी रखी गयी है। कार्यक्रम शाम को पांच बजे से शुरू होगा। आप इस्कॉन मंदिर जाकर या इंटरनेट के जरिये पूरी जानकारी जुटा सकते हैं। 

मैं एक बार उमंग और एक बार इन्हीं का उद्गार फेस्टिवल जॉइन कर चुका हूं। मुझे दोनों ही बहुत ही प्रेरणाप्रद और जीवन को एक नई दिशा देने वाले जान पड़े। मैं तो कहूंगा कि अगर आप इस उम्र ग्रुप में आते हैं तो एस क्यू विकसित होने का यह सुनहरा मौक़ा हाथ से नहीं जाने दें। धन्यवाद!

Web Title: Bhagavad-Gita Wisdom, Spiritual Quotient can bring miraculous change in life, Ayodhya Guy Experienced

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे