राजस्थान सियासी संग्रामः बगावत के बीज से नहीं खिला कमल! गहलोत से पायलट तक किसने क्या खोया, क्या पाया?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: August 11, 2020 03:15 PM2020-08-11T15:15:57+5:302020-08-11T15:15:57+5:30
राजस्थान में पिछले कई दिनों से चले आ रहे सियासी ड्रामे का अब पटाक्षेप होता नजर आ रहा है. कांग्रेस के लिए ये पूरा प्रकरण कई मायनों में नई सीख देने वाला रहा. अन्य नेताओं की भूमिक पर भी नजर डालना जरूरी है.
करीब एक माह पहले राजस्थानकांग्रेस में बगावत के बीज जरूर पनपे, लेकिन आपरेशन लोटस का कमल नहीं खिल पाया और बागी स्वर खत्म हो गए. आइए, देखते हैं कि इस दौरान किसने क्या खोया और क्या पाया....
अशोक गहलोतः इस सियासी संग्राम में सीएम अशोक गहलोत विजेता बनकर जरूर उभरे हैं और उनका सियासी कद भी बढ़ा है, लेकिन अब उनके लिए कांग्रेस के अंदर पनपा असंतोष समाप्त करना और सबको साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती है.
उन्होंने सियासी जंग तो जीत ली है, परन्तु जनता की बिजली बिल माफी, स्कूल-अभिभावक विवाद, मकान मालिक-किराएदार उलझन, कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण के साथ-साथ बंद पड़े काम-धंधों को फिर से शुरू करवाना, राजस्थान आ गए मजदूरों के लिए स्थानीय रोजगार की व्यवस्था करना, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना, पेट्रोल-डीजल के रेट पर नियंत्रण जैसे अनेक मुद्दों के प्रायोगिक और व्यवहारिक समाधान तलाशने होंगे, क्योंकि केन्द्र सरकार की इन मुद्दों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है और प्रदेश सरकार को केन्द्र से किसी खास सहायता की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए.
वसुंधरा राजेः इस पूरे सियासी संग्राम के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खामोश रहीं, लेकिन समय आने पर उन्होंने राजस्थान में अपनी सियासी पकड़ का अहसास करवा ही दिया, जिसने यह साफ संदेश दे दिया कि अभी केन्द्र के पास राजस्थान में वसुंधरा राजे की जगह लेने वाला कोई सशक्त नेता नहीं है.
सचिन पायलटः इस सारे प्रकरण में प्रत्यक्ष तौर पर बगावत का नेतृत्व करनेवाले पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का सबसे ज्यादा नुकसान जरूर हुआ है, परन्तु उन्हें राजनीति के दिखनेवाले और नहीं दिखनेवाले, दोनों पक्ष साफ तौर पर नजर आ गए. अब वे भविष्य में सियासी खेल बेहतर तरीके से खेल सकेंगे.
उन्होंने राजस्थान में कांग्रेस के लिए मेहनत तो बहुत की और भविष्य के मुख्यमंत्री के तौर पर चर्चित भी हुए, लेकिन उनमें राजनीतिक धैर्य का अभाव रहा और वे असली-नकली समर्थकों की ठीक से पहचान नहीं कर पाए जिसके नतीजे में उन्हें सियासी नुकसान उठाना पड़ा है.
भंवरलाल शर्मा: इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक चर्चित वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा ही सबसे पहले सीएम गहलोत से मिले और दोनों खेमों के बीच सुलह का रास्ता निकला. देश के प्रमुख ब्राह्मण नेता भंवरलाल शर्मा ने राजस्थान में तो कांग्रेस को सियासी फायदा दिलाया ही है, यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका देखी जा रही है.
गजेन्द्र सिंह शेखावतः इस सियासी घटनाक्रम के दौरान केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत भी काफी चर्चा में रहे और गहलोत सरकार गिरने की हालत में उनके सीएम बनने की बातें भी होती रहीं, लेकिन उन्होंने इसे हास्यापद करार दिया.
सियासी सारांश यही है कि राजस्थान के इस सियासी संग्राम के बाद यह राजनीतिक तथ्य उभर कर आया है कि सीएम अशोक गहलोत अभी भी कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जिनके पास बहुमत है, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीतिक जगह लेने की स्थिति में अभी बीजेपी का कोई नेता नहीं है जिसका प्रभाव और पहचान पूरे प्रदेश में हो, तो सचिन पायलट को नए राजनीतिक अनुभव के साथ अपनी सियासी पारी फिर से शुरू करनी होगी!