पवन के. वर्मा का ब्लॉग: पार्टी के एजेंडे को नहीं, देश के संविधान को तरजीह दें

By पवन के वर्मा | Published: December 15, 2019 09:33 AM2019-12-15T09:33:43+5:302019-12-15T09:33:43+5:30

2019 के चुनाव में जीत के बाद से भाजपा के एजेंडे को देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है. देश के लिए अच्छा हो या नहीं, पार्टी के घोषणापत्र में कही गई बातों को बहुत जल्दबाजी में लागू किया जा रहा है.

Pawan K. Verma blog Give priority to the country's constitution, not the party's agenda | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: पार्टी के एजेंडे को नहीं, देश के संविधान को तरजीह दें

पवन के. वर्मा का ब्लॉग: पार्टी के एजेंडे को नहीं, देश के संविधान को तरजीह दें

जब राजनीतिक पार्टियां अप्रत्याशित चुनावी जीत हासिल कर लेती हैं तो प्राय: अपनी शक्तियों के बारे में भ्रमित हो जाती हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि 2019 के संसदीय चुनावों में सफलता पाने के बाद भाजपा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. वह मानने लगी है कि अकेले उसे ही यह तय करने का अधिकार है कि देश के लिए क्या अच्छा है और अन्य किसी को इस पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है. उसे लगता है कि पार्टी का घोषणापत्र देश के संविधान से अधिक महत्वपूर्ण है.

अमित शाह द्वारा दिए गए इस बयान की और किसी भी तरीके से व्याख्या नहीं की जा सकती कि ‘इसे (नागरिकता संशोधन विधेयक, सीएबी को) 130 करोड़ नागरिकों का समर्थन हासिल है क्योंकि यह 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा था.’ बयान का आशय स्पष्ट है. चूंकि भाजपा ने 2019 के संसदीय चुनावों में जीत हासिल की, मानना चाहिए कि जो कुछ भी पार्टी के घोषणापत्र का हिस्सा है उसे भारत के सभी नागरिकों का समर्थन हासिल है.

किसी को भी असहमत होने का अधिकार नहीं है. पार्टी देश की भलाई के बारे में सोचने की एकमात्र अधिकारी है और भाजपा का विरोध करने वाला कोई भी व्यक्ति देश के हितों के खिलाफ है. 2019 के चुनाव में जीत के बाद से भाजपा के एजेंडे को देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है. देश के लिए अच्छा हो या नहीं, पार्टी के घोषणापत्र में कही गई बातों को बहुत जल्दबाजी में लागू किया जा रहा है.

अनुच्छेद 370 को पर्याप्त चर्चा के बिना हटा दिया गया. ऐसा ही ट्रिपल तलाक बिल के साथ भी हुआ और लोगों के रचनात्मक सुझावों को भी नहीं माना गया. यह पार्टी के कार्यो में अहंकार को स्पष्ट तौर पर दिखाता है जिससे बहस, असहमति और यहां तक कि नेक इरादे रखने वाले आलोचकों के लिए भी बहुत कम जगह बचती है.

इस तरह का दृष्टिकोण देश में अस्थिरता का एक बड़ा कारण है. संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन विधेयक को भी ऐसा ही एक अनावश्यक विभाजनकारी विधान मानना चाहिए. यदि उद्देश्य आश्रय मांगने वालों के मूल देश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत की नागरिकता प्रदान करना था तो पहले से मौजूद नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित किया जा सकता था. लेकिन विधेयक का वास्तविक उद्देश्य कुछ और था.

यह केवल तीन देशों - पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश- के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करना था, जबकि श्रीलंका, नेपाल या म्यांमार जैसे देशों को छोड़ दिया गया. सीएबी और इससे भी अधिक खतरनाक राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का उद्देश्य भारत को विभाजित करना तथा उसके शांति व सद्भाव को बाधित करना है.

एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट ने असम के लिए अनिवार्य किया था. लेकिन वहां भी इसने केवल कलह, उत्पीड़न और अस्थिरता ही पैदा की है और विडंबना यह है कि वहां के भाजपा नेताओं ने खुद इसे खारिज किया है. एनआरसी को पूरे देश में विस्तारित करने के लिए कोई न्यायिक जनादेश नहीं है. लेकिन भाजपा जोर देकर कहती है कि वह ऐसा करेगी. किस आधार पर? और इसका अंत कहां होगा?

एक खतरनाक एकपक्षीयता भाजपा के कार्यो को सूचित करती है, जहां अपनी पार्टी के एजेंडे के तहत पक्षपातपूर्ण लक्ष्यों को देश के हितों पर तरजीह दी गई है. देश की जनता को सद्भाव और कलह, शांति और संघर्ष, समानता और भेदभाव, लोकतंत्र और तानाशाही, स्थिरता और अस्थिरता, आर्थिक प्रगति और सामाजिक विभाजन के बीच चुनाव करना है.

Web Title: Pawan K. Verma blog Give priority to the country's constitution, not the party's agenda

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